Saturday, April 20, 2024

गोगोई कांड: जस्टिस इंदिरा बनर्जी बोलीं-अगर कोई सहमति से आगे कदम बढ़ाता है, तो क्या मैं इसे उत्पीड़न कह सकती हूं?

सुप्रीम कोर्ट की पूर्व न्यायाधीश इंदिरा बनर्जी ने  एक लीगल वेब पोर्टल को दिए गये साक्षात्कार में तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट की एक कर्मचारी द्वारा लगाये गये यौन उत्पीडन के आरोपों को यह कहकर नया आयाम दे दिया कि ‘काश जाँच रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाता। इससे उनसे (पूर्व सीजेआई गोगोई) और हमसे जुड़े संदेह साफ हो जाते। अगर कोई सहमति से आगे कदम बढ़ाता हैतो क्या मैं इसे उत्पीड़न कह सकती हूंइस बात को बहुत सावधानीपूर्वक देखने की जरूरत है कि उन्होंने अपनी शिकायत में क्या कहा था क्योंकि इसमें न्यायपालिका शामिल है। मैं यह जताने की कोशिश नहीं कर रही हूं कि कुछ भी सहमति से हुआ था

जस्टिस बनर्जी के इस वक्तव्य से यह ध्वनि निकल रही है कि जो कुछ भी जस्टिस गोगोई और उस पीड़िता के बीच हुआ था वह दोनों की सहमति से हुआ था तो फिर सवाल यह है कि ऐसा कौन सा घटनाक्रम हुआ, जिससे इस पूरे मामले में यौन उत्पीडन का कीचड़ उठा। आखिर यह खबर क्यों आई कि पीड़िता को जस्टिस गोगोई की पत्नी के पैर पर गिरकर माफ़ी मंगवाई गयी? किस बात की माफ़ी। जस्टिस गोगोई के घर में बंद दरवाजों के पीछे क्या घटा था वह कभी सामने नहीं आ पायेगा।   

गौरतलब है कि पीड़िता ने अपने शपथपत्र में लिखा था कि जब उसे जस्टिस गोगोई की पत्नी के सामने माफी मांगने के लिए ले जाया गया तो उन्होंने कहा था “नाक रगड़ो और जाओ”। तिलक मार्ग पुलिस स्टेशन के एसएचओ नरेश सोलंकी पीड़िता को वहां लेकर गए थे और उस वक्त सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार दीपक जैन भी वहां उपस्थित थे। सोलंकी ने उसे निर्देश दिया था कि मुख्य न्यायाधीश के घर जाने के बाद मैं सॉरी के अलावा एक शब्द भी नहीं बोलूंगी। उसने कहा था, “तुम एक भी सवाल नहीं पूछ सकतीं”। मैं उनसे पूछना चाहती थी कि मैं वहां क्यों लाई गई हूं, जबकि मेरे साथ ही कितना गलत हो रहा है।

बीते 23 सितंबर 22 को सेवानिवृत्त हुईं जस्टिस बनर्जी ने अप्रैल 2019 में सुप्रीम कोर्ट की एक कर्मचारी द्वारा तत्कालीन सीजेआई रंजन गोगोई पर लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोपों की जांच के बारे में विस्तार से बात की। जस्टिस बनर्जी, पूर्व सीजेआई एसए बोबडे  और जस्टिस इंदु मल्होत्रा इन आरोपों की जांच के लिए शीर्ष अदालत द्वारा गठित आंतरिक समिति का हिस्सा थे। जस्टिस बनर्जी ने दावा किया कि गोगोई ‘मुसीबत में इसलिए पड़े’ क्योंकि वह स्टाफ के साथ कड़ाई के साथ पेश आते थे।

अब साक्षात्कार में जस्टिस बनर्जी ने कहा कि जांच कमेटी में हम यह तय करने के लिए नहीं बैठे थे कि उत्पीड़न हुआ है या नहीं। सवाल यह था कि क्या सीजेआई ने कोई ऐसा कृत्य किया जिसके लिए उन्हें पद से हटाया जा सकता है या नहीं। यह भी जोड़ा कि जांच को कभी भी खारिज नहीं किया गया लेकिन कर्मचारी द्वारा गोगोई के खिलाफ लगाए गए ‘आरोप सिद्ध नहीं’ हुए।

पूर्व न्यायाधीश ने बताया कि उन्होंने जांच रिपोर्ट लिखी थी और जांच समिति के अध्यक्ष जस्टिस एसए बोबडे ने उन्हें व्याकरण और वर्तनी की चूकों को लेकर ज्यादा परेशान न होने की बात कहते हुए कहा था कि रिपोर्ट कभी प्रकाशित नहीं होगी। बनर्जी के अनुसार, तब उन्होंने इस बात पर जोर दिया था कि वे यही मानकर लिखेंगी कि इसे प्रकाशित होना है। ‘आज नहीं तो कल, मेरे सर्विस में रहते हुए नहीं तो मेरे रिटायरमेंट के बाद। अगर मेरे जीते जी नहीं तो मेरे गुजरने के बाद। लेकिन किसी को यह कहने का मौका नहीं मिलना चाहिए कि इसे यूं ही रफा-दफा कर दिया गया क्योंकि वे चीफ जस्टिस थे।

मद्रास उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश रह चुकीं बनर्जी ने यह भी स्वीकार किया कि आरोपों वाली रिपोर्ट मीडिया में प्रकाशित होने वाले दिन ही सीजेआई गोगोई की अगुवाई में सुप्रीम कोर्ट में हुई विशेष सुनवाई से बचा जा सकता था। गोगोई द्वारा उनके ही खिलाफ लगे आरोपों को सुनने वाली पीठ की अगुवाई करने की खासी आलोचना हुई थी। इस सुनवाई में उन्होंने दावा किया था कि ‘इन आरोपों के पीछे सीजेआई के कार्यालय को निष्क्रिय बनाने की साज़िश है।

जस्टिस बनर्जी ने कहा कि तत्कालीन सीजेआई गोगोई की अध्यक्षता में हुई सुनवाई से बचना चाहिए था। यह बिल्कुल ठीक नहीं था। यदि अन्य न्यायाधीशों के साथ थोड़ा और परामर्श किया गया होता, जो तब नहीं किया गया, तो मैंने कहा होता कि प्रेस को जवाब देने की बिल्कुल भी जरूरत नहीं थी।जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट ने गोगोई के खिलाफ मामले को देखा था, उसकी नागरिक समाज और जानकारों ने कड़ी आलोचना की थी। प्रेस ने यह कहते हुए हमारी आलोचना की कि मुझे सीजेआई गोगोई की अध्यक्षता वाले कॉलेजियम ने नियुक्त किया है। लेकिन जस्टिस मल्होत्रा और मुझे सीजेआई दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाले कॉलेजियम ने नियुक्त किया था। जांच समिति ने गोगोई को क्लीन चिट दे दी थी और पूर्व सीजेआई के सेवानिवृत्त होने के दो महीने बाद महिला को उनके पद पर बहाल कर दिया गया था।

गौरतलब है कि 2019 के अप्रैल महीने में द वायर समेत चार मीडिया संस्थानों ने इस महिला कर्मचारी द्वारा शीर्ष अदालत के 22 जजों को भेजे हलफनामे को प्रकाशित किया था, जहां उन्होंने आरोप लगाया था कि तत्कालीन चीफ जस्टिस  जस्टिस रंजन गोगोई ने अक्टूबर 2018 में उनका यौन उत्पीड़न किया था।

35 वर्षीय यह महिला अदालत में जूनियर कोर्ट असिस्टेंट के पद पर काम कर रही थीं। उनका कहना था कि चीफ जस्टिस द्वारा उनके साथ किए ‘आपत्तिजनक व्यवहार’ का विरोध करने के बाद से ही उन्हें, उनके पति और परिवार को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा था।

महिला के अनुसार, उन पर दिल्ली पुलिस द्वारा धोखाधड़ी का एक मामला भी दर्ज किया गया था, जिसमें हरियाणा के रहने वाले एक व्यक्ति ने उन पर आरोप लगाया था कि 2017 में इस महिला ने उन्हें सुप्रीम कोर्ट में नौकरी दिलाने के एवज में 50 हज़ार रुपये की रिश्वत ली थी, लेकिन नौकरी नहीं मिली। महिला का कहना था कि यह मामला झूठा और बेबुनियाद है। आरोप गलत हैं और वे इस व्यक्ति को जानती भी नहीं हैं। महिला का यह भी दावा था कि सीजेआई के खिलाफ शिकायत करने के कारण उन्हें परेशान किया जा रहा है।

मामले की सुनवाई शुरू होने के कुछ दिन बाद पीड़ित ने आंतरिक समिति के माहौल को डरावना बताते हुए समिति के समक्ष पेश होने से इनकार कर दिया था। शिकायतकर्ता महिला ने अदालत में अपने वकील की मौजूदगी की अनुमति नहीं दिए जाने समेत अनेक आपत्तियां जताते हुए आगे समिति के समक्ष नहीं पेश होने का फैसला किया था ।इसके बाद उसी साल मई महीने में आंतरिक जांच समिति द्वारा मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को क्लीनचिट दे दी गई थी। समिति ने कहा था कि महिला द्वारा लगाए गए आरोपों में कोई दम नहीं है।

महिला की बहाली के बाद अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ने हिंदुस्तान टाइम्स से कहा था, ‘सुप्रीम कोर्ट की कर्मचारी सही साबित हुईं। पूरे वेतन के साथ उनकी बहाली होना उनके हलफनामे की सच्चाई, यौन उत्पीड़न की शिकायत और उनके द्वारा भोगे गए दुखों की स्वीकृति है।

जस्टिस गोगोई के खिलाफ यौन उत्पीडन  का आरोप अप्रैल 2019 में सामने आया था, जब 4 समाचार पोर्टल, स्क्रॉल, लीफ़लेट, वायर और कारवां, ने रंजन गोगोई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के एक कर्मचारी की शिकायत का विवरण प्रकाशित किया। कर्मचारी ने आरोप लगाया था कि अक्टूबर 2018 में जूनियर कोर्ट असिस्टेंट के रूप में काम करते वक्त चीफ जस्टिस  गोगोई ने उसका यौन उत्पीड़न किया था।

पीड़िता ने एक साक्षात्कार में कहा था कि उसे दलित होने की सजा मिली है।  मुझे इंसाफ चाहिए, नौकरी नहीं जब मैं कार्यवाही के लिए आई तीन या चार महिला पुलिसकर्मियों ने मेरी तलाशी ली और मेरे साथ आतंकवादियों जैसा व्यवहार किया। उन्होंने मेरी हर चीज की जांच की, मुझे केश खोलने के लिए कहा, मेरे कपड़ों की तलाशी ली और वह भी बहुत ही रफ तरीके से। मैं रो और चिल्ला रही थी। वृंदा ग्रोवर मैडम के आने के बाद मुझे भीतर ले जाया गया।

कार्यवाही के पहले दिन जजों ने मुझसे कहा, “हम यौन उत्पीड़न समिति और विभागीय तथा इन-हाउस कार्यवाही भी नहीं है। उन्होने कहा कि हम यहां केवल आपकी शिकायत पर काम करने के लिए बैठे हैं। वह बहुत अनौपचारिक किस्म की कार्यवाही थी।

उन्होंने मुझसे कहा कि हम यह सुनिश्चित करते हैं कि भविष्य में आपको कोई खतरा नहीं होगा। न्यायाधीश बोवडे ने यह भी पूछा कि क्या आप जानती हैं कि आपकी नौकरी वापस मिल सकती है। इसके जवाब में मैंने कहा, “नहीं लॉर्डशिप मुझे नौकरी वापस नहीं चाहिए, मुझे न्याय चाहिए। मैं यह सब नौकरी वापस पाने के लिए नहीं कर रही हूं। उस घटना के बाद जिस तरह से मुझे परेशान किया जा रहा है वह रुकना चाहिए। मैंने उनसे कहा, “लॉर्डशिप मैं सुप्रीम कोर्ट में अपनी नियुक्ति के दिन से आपको बताना चाहती हूं। उसके बाद मैंने उन्हें न्यायाधीश गोगोई के बारे में सब कुछ बताया। यह पहले दिन हुआ। मैंने उन्हें पूरी बात बता दी।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार एवं कानूनी मामलों के जानकार हैं और प्रयागराज में रहते हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

जौनपुर में आचार संहिता का मजाक उड़ाता ‘महामानव’ का होर्डिंग

भारत में लोकसभा चुनाव के ऐलान के बाद विवाद उठ रहा है कि क्या देश में दोहरे मानदंड अपनाये जा रहे हैं, खासकर जौनपुर के एक होर्डिंग को लेकर, जिसमें पीएम मोदी की तस्वीर है। सोशल मीडिया और स्थानीय पत्रकारों ने इसे चुनाव आयोग और सरकार को चुनौती के रूप में उठाया है।

AIPF (रेडिकल) ने जारी किया एजेण्डा लोकसभा चुनाव 2024 घोषणा पत्र

लखनऊ में आइपीएफ द्वारा जारी घोषणा पत्र के अनुसार, भाजपा सरकार के राज में भारत की विविधता और लोकतांत्रिक मूल्यों पर हमला हुआ है और कोर्पोरेट घरानों का मुनाफा बढ़ा है। घोषणा पत्र में भाजपा के विकल्प के रूप में विभिन्न जन मुद्दों और सामाजिक, आर्थिक नीतियों पर बल दिया गया है और लोकसभा चुनाव में इसे पराजित करने पर जोर दिया गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने 100% ईवीएम-वीवीपीएटी सत्यापन की याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा

सुप्रीम कोर्ट ने EVM और VVPAT डेटा के 100% सत्यापन की मांग वाली याचिकाओं पर निर्णय सुरक्षित रखा। याचिका में सभी VVPAT पर्चियों के सत्यापन और मतदान की पवित्रता सुनिश्चित करने का आग्रह किया गया। मतदान की विश्वसनीयता और गोपनीयता पर भी चर्चा हुई।

Related Articles

जौनपुर में आचार संहिता का मजाक उड़ाता ‘महामानव’ का होर्डिंग

भारत में लोकसभा चुनाव के ऐलान के बाद विवाद उठ रहा है कि क्या देश में दोहरे मानदंड अपनाये जा रहे हैं, खासकर जौनपुर के एक होर्डिंग को लेकर, जिसमें पीएम मोदी की तस्वीर है। सोशल मीडिया और स्थानीय पत्रकारों ने इसे चुनाव आयोग और सरकार को चुनौती के रूप में उठाया है।

AIPF (रेडिकल) ने जारी किया एजेण्डा लोकसभा चुनाव 2024 घोषणा पत्र

लखनऊ में आइपीएफ द्वारा जारी घोषणा पत्र के अनुसार, भाजपा सरकार के राज में भारत की विविधता और लोकतांत्रिक मूल्यों पर हमला हुआ है और कोर्पोरेट घरानों का मुनाफा बढ़ा है। घोषणा पत्र में भाजपा के विकल्प के रूप में विभिन्न जन मुद्दों और सामाजिक, आर्थिक नीतियों पर बल दिया गया है और लोकसभा चुनाव में इसे पराजित करने पर जोर दिया गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने 100% ईवीएम-वीवीपीएटी सत्यापन की याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा

सुप्रीम कोर्ट ने EVM और VVPAT डेटा के 100% सत्यापन की मांग वाली याचिकाओं पर निर्णय सुरक्षित रखा। याचिका में सभी VVPAT पर्चियों के सत्यापन और मतदान की पवित्रता सुनिश्चित करने का आग्रह किया गया। मतदान की विश्वसनीयता और गोपनीयता पर भी चर्चा हुई।