Saturday, April 20, 2024

समस्याओं के अंबार में डूबा हुआ है आदिम जनजाति क्षेत्र लातेहार का बरवाडीह प्रखंड

आजादी के 75 साल बीत जाने और अलग राज्य गठन के 22 साल के बाद भी आज झारखंड के आदिम जनजाति समुदाय के लोग राशन, पेंशन, आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य, शुद्ध पेयजल जैसी कई बुनियादी जरूरतों से वंचित हैं। लिहाजा आज उन्हें अपनी बुनियादी जरूरतों की मांग को लेकर एक तरफ सरकारी कार्यालयों का चक्कर लगाना पड़ता है वहीं कोई सुनवाई या कार्रवाई नहीं होने पर इन कार्यालयों के सामने धरना-प्रदर्शन भी करना पड़ता है।

बता दें कि इसी क्रम में गत 06 दिसम्बर को लातेहार जिला अंतर्गत बरवाडीह प्रखण्ड मुख्यालय पर सैकड़ों की तादाद में प्रखंड के आदिम जनजाति कोरवा के लोगों ने आदिम जनजाति संघर्ष समिति बरवाडीह लातेहार का बैनर लेकर एक दिवसीय धरना-प्रदर्शन किया एवं प्रखंड विकास पदाधिकारी (बीडीओ) के जरिये जिला प्रशासन यानी लातेहार के उपायुक्त को एक मांग पत्र भी दिया।

इन क्षेत्रों में बुनियादी समस्याओं की लंबी फेहरिश्त है। बता दें कि बरवाडीह प्रखण्ड के ग्राम पंचायत चुंगरू के गांव चहल का टोला जामुनटांड के आदिम जनजाति का कोरवा परिवार आज भी चुवाड़ी (नदी के किनारे या बीच में किया गया गड्ढा) का पानी पीते हैंl यहाँ तक जाने की न तो सड़क है और न ही नदी पर पुल है जिसके कारण बरसात के दिनों में बीमार लोगों को अस्पताल ले जाना काफी कठिन होता है, प्रायः बीमार व्यक्ति रास्ते में ही दम तोड़ देता है। शिक्षा का आलम यह है कि बेन्दवही टोला/जामुन टांड/नवाटोली के स्कूलों के अन्य स्कूलों में मर्ज होने के कारण बच्चों को दूसरे स्कूल में जाना पड़ता है और स्कूल दूर हो जाने के कारण बच्चों ने स्कूल जाना छोड़ दिया है। जाहिर है वे पूरी तरह शिक्षा से वंचित हो रहे हैं।

प्रखण्ड के हरातु पंचायत के हरातु गाँव के आचार टोला आदिम जनजाति के लोगों को आज तक राज्य सरकार द्वारा घोषित बिरसा आवास का अता पता नहीं है। यहां भी सड़क, बिजली, स्वास्थ्य, राशन, शिक्षा की स्थिति जर्जर है। यहां के भी आदिम जनजाति के लोग चुवाड़ी का पानी पीने को मजबूर हैं। आंगनबाड़ी दूर होने के कारण यहां आंगनबाड़ी की सुविधा बच्चों को नहीं मिल पा रही है।

डाकिया योजना के तहत मिलने वाले राशन का लाभ भी यहां नहीं मिल पा रहा है। इस वजह से 7 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। अक्तूबर / नवम्बर का खाद्यान्न नहीं मिला है। सरकारी राशन दुकान से केरोसिन तेल के साथ चीनी, नमक सुविधा होने बाद भी किसी को अभी तक नहीं दिया गया है। हरातु पंचायत के ही गेठा टोला व लादी में बिजली का खम्भा लगा हुआ है लेकिन मीटर नहीं लगा हुआ है और घरों में वायरिंग भी नहीं किया गया है।

ग्राम पंचायत लात ग्राम तन्वाई में बिजली का खम्भा लगा हुआ है, लेकिन बिजली नहीं है, सड़क की भी समस्या है, शुद्ध पीने के पानी की व्यवस्था नहीं है। ग्राम हरहे कोरवा टोला में पानी पीने की सुविधा नहीं है, रोड नहीं है, आवास नहीं है, बिजली खम्भा गड़ा हुआ है, लेकिन बिजली तार नहीं है। सिंचाई के साधन के अभाव में लोग बरसात पर ही निर्भर हैं। राशन नियमित नहीं मिलता है। नमक, गेहूं, चीनी नहीं मिल रही है। ग्राम बेरे में राशन का नियमित नहीं मिलना व बिजली की घोर समस्या है पीने के पानी की सुविधा नहीं है।

ग्राम पंचायत चुंगरू, ग्राम चहल टोला महुआ टांड में बिजली का खम्भा लगा हुआ है, लेकिन बिजली नहीं आ रही है, सड़क की समस्या है, शुद्ध पीने के पानी की व्यवस्था नहीं है। प्रधान मंत्री गरीब कल्याण योजना का राशन सितम्बर और अक्तूबर का नहीं मिला है व केरोसिन तेल भी नहीं दिया गया है।

पंचायत चूगरू गांव नवाडीह टोला चक्लवा टोला सभी घरों में बिजली नहीं है, सड़क भी नहीं है। हरातू पंचायत के रमनदाग में आदिम जनजाति परिवारों को डाकिया योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है।

उक्का माड़ पंचायत के लुहुर गांव टोला सोनंबरसा आदिम जनजाति परिवारों के खेतों में सिंचाई का साधन नहीं है और सड़क जर्जर है जिससे आवागमन में बहुत परेशानी होती है।

ग्राम पंचायत हारातु के लाभार गांव में सिंचाई एवं पीने के लिए कुंआं नहीं है, शुक्रदाहा टोला जाने के लिए रोड नहीं है। लोगों के पास खेत एवं जमीन है, आवागमन के लिए कोई रोड नहीं है, राशन हर महीने नहीं दिया जाता है और लोगों को आवास का लाभ भी नहीं मिल पा रहा है।

ग्राम पंचायत हारातु लादी में बिरसा आवास मिला हुआ तो है, लेकिन सब अधूरा है, रहने के लायक नहीं है।

ग्राम पंचायत मोरवाई कला में शुद्ध पानी का साधन नहीं है। कच्चा रोड तलाब से होकर गुजरता है, तालाब भर जाने के कारण बरसात में पहाड़ से होकर गुजरना पड़ता है, बिजली भी नहीं है। मोरवाई में ही भेल्वाहा टोला में रोड नहीं होने के कारण हर महीने राशन नहीं मिल पाता है।

मोरवाई पंचायत के मंडल कोरवा टोली में 33 घर है, जिसमें केवल दो आदिम जनजाति परिवार को आवास मिला है, पेयजल की सुविधा नहीं होने के कारण कोयल नदी से पानी पीने के लिए लोग मजबूर हैं। बिजली भी सभी जगह पर नहीं है। कोरवा टोली में एक साल से ट्रांसफार्मर खराब है, लेकिन कोई सुधार का नाम ही नहीं है। 11 परिवारों के पास राशनकार्ड भी नहीं है। 4 लोगों का पेंशन कार्ड भी नहीं बना है।

आदिम जनजाति परिवारों के लिए निर्गत सभी ग्रीन कार्डों को सर्वोच्च न्यायालय के आदेशानुसार अन्त्योदय कार्ड में परिवर्तित होना चाहिए लेकिन सभी कार्ड अभी ज्यों का त्यों हैं।

सभी आदिम जनजाति परिवारों की पेंशन लंबित रहती है। वह भी हर महीने नियमित नहीं मिल पाती है।

खाद्य सुरक्षा योजनाओं यथा पीडीएस, आंगनबाड़ी एवं मध्यान्ह भोजन योजना में फोर्टीफाइड चावल दिए जा रहे हैं, जबकि फोर्टीफाइड चावल से थैलीसिमिया व सिकलसेल एनीमिया पीड़ितों की संख्या लगातार बढ़ रही है।

रांची के रिम्स के चिकित्सकों ने बताया है कि राज्य में 60 से 70 हजार ऐसे पंजीकृत मामले हैं जो थैलीसिमिया व सिकलसेल एनीमिया से पीड़ित हैं। स्कूल आधारित स्क्रीनिंग से 10-20% स्क्रीनिंग के परिणाम पॉजिटिव हो रहे हैं। यह स्थिति तब है जब राज्य में जिला अस्पतालों और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में ऐसे गंभीर बीमारियों की जांच की कोई माकूल व्यवस्था नहीं है। इतनी बड़ी आबादी को सरकारें फोर्टीफाइड चावल खिलाकर उनके स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर रही हैं।

ये तमाम बातें एक फैक्ट फाइंडिंग में रिपोर्ट में उभरकर सामने आई हैं।

फैक्ट फाइंडिंग टीम ने झारखंड के जमशेदपुर के एमजीएम अस्पताल में पूर्वी सिंहभूम के चाकुलिया के बोडामचट्टी गांव के क्रमश: 12  और 7 साल के दो भाइयों से मुलाकात की थी। उन दोनों नौनिहालों को रक्त विकार संबंधी आनुवंशिक बीमारी है, जिन्हें एक नियत अन्तराल में खून चढ़ाया जाता रहा है। उनके माता-पिता ने बताया था कि हाल के दिनों में बच्चों को साप्ताहिक रक्त चढ़ाना पड़ रहा है। जबकि यह अन्तराल पहले लगभग एक माह हुआ करता था। परिवार इतना गरीब है कि उनके सामने पीडीएस चावल के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं है।

दूसरी तरफ समूचे झारखण्ड में सुखाड़ एवं अकाल की गंभीरता के मद्देनजर राहत कार्य बड़ा शिथिल है।

(झारखंड से विशद कुमार की रिपोर्ट।)

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