Tuesday, April 16, 2024

टीआरपी मामलाः बॉम्बे हाई कोर्ट ने अर्नब को गिरफ्तारी से संरक्षण देने की मांग की खारिज

बॉम्बे हाई कोर्ट ने सोमवार को मुंबई पुलिस को टेलीविजन रेटिंग प्वाइंट (टीआरपी) हेरफेर मामले के आरोप में दर्ज एफआईआर में आरोपी बनाने से पहले रिपब्लिक टीवी के एडिटर-इन-चीफ अर्नब गोस्वामी को समन भेजने का निर्देश दिया। जस्टिस एसएस शिंदे और जस्टिस एमएस कर्णिक की एक पीठ ने गोस्वामी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे द्वारा दिए गए बयान को दर्ज किया कि वह इस तरह का समन मिलने पर जांच में शामिल होंगे और सहयोग करेंगे। पीठ ने रिपब्लिक एंड आर भारत चलाने वाली कंपनी एआरजी आउटलियर मीडिया लिमिटेड और अर्नब गोस्वामी द्वारा धोखाधड़ी, आपराधिक विश्वासघात और आपराधिक साजिश के अपराधों के लिए कांदिवली पुलिस स्टेशन में टीआरपी घोटाले के लिए दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने की मांग करने वाली याचिका पर नोटिस जारी किया।

खंडपीठ ने कहा कि यदि ऐसा कोई समन जारी किया जाता है तो फिर अर्नब गोस्वामी को पुलिस के समक्ष पेश होना होगा और जांच में सहयोग करना होगा। हाई कोर्ट ने मुंबई पुलिस को निर्देश दिया कि मामले की जांच से संबंधित दस्तावेज अदालत के अवलोकन के लिए पांच नवंबर तक सीलबंद लिफाफे में दिए जाएं। अदालत में इसी दिन मामले पर सुनवाई भी होनी है। खंडपीठ ने कहा कि एफआईआर में संपूर्ण विवरण नहीं होता। हम जांच के दस्तावेज देखना चाहते हैं और जानना चाहेंगे कि आज से लेकर सुनवाई की अगली तारीख तक क्या जांच होती है।

खंडपीठ ने याचिका पर 5 नवंबर को दोपहर तीन बजे से अंतिम सुनवाई शुरू करने पर सहमति जताई है। खंडपीठ ने मुंबई पुलिस को 4 नवंबर को सीलबंद कवर में अन्वेषण (इन्वेस्टिगेशन) के दस्तावेज पेश करने का भी निर्देश दिया। हालांकि साल्वे ने गिरफ्तारी से अंतरिम सुरक्षा देने की मांग की, लेकिन इस पर पीठ ने कहा कि इस समय इस तरह के आदेश को पारित करना मुश्किल है जबकि अभी तक गोस्वामी को अभियुक्त के रूप में नामित नहीं किया गया है।

इस पर महाराष्ट्र सरकार और मुंबई पुलिस की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि गोस्वामी केवल इसलिए विशेषाधिकार के हकदार नहीं हैं, क्योंकि वह एक पत्रकार हैं और उन्हें गिरफ्तारी के लिए आशंका होने पर अग्रिम जमानत लेने के लिए दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 438 के तहत उपाय का लाभ उठाना चाहिए।

याचिका में यह मामला निष्पक्ष एवं पारदर्शी जांच की खातिर सीबीआई को ट्रांसफर करने का निर्देश देने की भी मांग की गई। याचिका में कहा गया है कि हाई कोर्ट जांच पर रोक लगाए और पुलिस को याचिका के लंबित रहने के दौरान याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कोई भी दंडात्मक कदम उठाने से रोके। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने अदालत से गोस्वामी को गिरफ्तारी से संरक्षण देने की मांग की। साल्वे ने कहा कि मुंबई पुलिस उन्हें (गोस्वामी) निशाना बना रही है और ऐसी आशंका है कि उन्हें गिरफ्तार किया जा सकता है।

कपिल सिब्बल ने कहा कि चूंकि मामले के आरोपियों में अब तक गोस्वामी का नाम नहीं है, इसलिए उन्हें गिरफ्तारी से संरक्षण देने का कोई आदेश नहीं दिया जा सकता। सिब्बल ने कहा कि पुलिस ने TRP मामले के सिलसिले में अब तक आठ लोगों को समन जारी कर उनसे पूछताछ की है। उन्होंने कहा कि इनमें से किसी को भी गिरफ्तार नहीं किया गया है।

प्रतीकात्मक फोटो।

खंडपीठ ने कहा कि गोस्वामी का नाम आरोपियों में नहीं है, इसलिए वह उन्हें संरक्षण देने या पुलिस को उनके खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई करने से रोकने जैसा कोई आदेश नहीं दे सकती है। हाई कोर्ट ने यह सवाल भी उठाए कि मुंबई पुलिस या उसके आयुक्त परमवीर सिंह द्वारा ऐसे मामलों में प्रेस कॉन्फेंस करना कहां तक उचित था। सिब्ब्ल ने अदालत की इस बात से सहमति जताते हुए भरोसा दिलाया कि आगे से पुलिस टीआरपी घोटाला मामले में मीडिया से बात नहीं करेगी।

साल्वे ने यह कह कर अपनी दलील जारी रखी कि मुंबई पुलिस ने गोस्वामी से दुर्व्यवहार किया है और वे गोस्वामी को किसी भी समय गिरफ्तार कर सकते हैं। पीठ ने उल्लेख किया कि पुलिस ने रिपब्लिक टीवी के सात कर्मचारियों को समन जारी किया है और उनमें से किसी को भी अब तक गिरफ्तार नहीं किया गया है। कपिल सिब्बल ने सहमति व्यक्त की कि गोस्वामी को पहले समन जारी किया जाएगा। हालांकि उन्होंने कहा कि वह कोई वचन नहीं दे रहे हैं कि गोस्वामी को गिरफ्तार नहीं किया जाएगा।

पीठ ने टिप्पणी की कि यदि कोई समन जारी किया जाता है, तो गिरफ्तारी का सवाल नहीं उठता। साल्वे ने कहा कि मुंबई पुलिस आयुक्त रिपब्लिक टीवी और गोस्वामी के खिलाफ प्रेस बयान देकर सख्ती से पेश आ रहे हैं, हालांकि उन्हें एफआईआर में आरोपी नहीं बनाया गया है। साल्वे ने कहा कि गोस्वामी द्वारा पालघर मामले की रिपोर्टिंग विवाद की जड़ है। साल्वे ने पालघर और बांद्रा की घटनाओं पर गोस्वामी के खिलाफ दर्ज एफआईआर को एक साथ करने पर आधारित सुप्रीम कोर्ट के आदेश का ज़िक्र किया। साथ ही बॉम्बे हाई कोर्ट की एफआईआर पर रोक लगाने के आदेश का भी उल्लेख किया।

साल्वे ने तर्क दिया कि वर्तमान एफआईआर महाराष्ट्र प्रशासन द्वारा रिपब्लिक टीवी की पत्रकारिता की स्वतंत्रता को टारगेट करने और दबाने के लिए की गई कार्रवाई की एक नई कड़ी है। सिब्बल ने कहा कि याचिका अपरिपक्व है और शुरुआती अवस्था में जांच में हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि आपराधिक सामग्री होने पर आपराधिक जांच में दुर्भावना की कोई प्रासंगिकता नहीं है।

इससे पहले याचिकाकर्ताओं ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दाखिल की थी। उच्चतम न्यायालय के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया और याचिकाकर्ताओं को बॉम्बे उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने के लिए कहा। याचिका में गोस्वामी ने कहा कि प्राथमिकी रिपब्लिक टीवी के खिलाफ राजनीतिक साजिश का एक हिस्सा थी और मुंबई पुलिस ने उसके खिलाफ दुर्भावना के तहत काम किया।

8 अक्टूबर को मुंबई पुलिस ने प्रेस को बताया कि उसने टीआरपी हेरफेर की धोखाधड़ी के बारे में पता लगाया है। रिपब्लिक टीवी और दो मराठी चैनलों को एफआईआर में आरोपी बनाया गया है। पुलिस ने कहा कि उन्होंने हंसा रिसर्च ग्रुप प्राइवेट लिमिटेड से जुड़े एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया, जो प्रसारण दर्शकों की सहायता कर रहा था।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं। वह इलाहाबाद में रहते हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles