Friday, March 29, 2024

शख्सियत: गांधी के विचार, विनोबा का सानिध्य और जयप्रकाश का साथ पाए अमरनाथ भाई की दास्तान

सार-

-अमरनाथ भाई कहते हैं कि गांधी के विचार, विनोबा का सानिध्य और जयप्रकाश नारायण के साथ रह कर उनका जीवन धन्य हुआ।
-वर्तमान परिस्थितियों से अमरनाथ भाई खिन्न हैं, वह कहते हैं आज़ादी तक तो भारतीय जनता ने संघर्ष किया पर पहले लोकसभा चुनाव के बाद -भारतीय जनता निश्चिंत हो गई कि अब सब काम सरकार करेगी, जनता तब सोई और अब तक उठी नहीं है।
-देश का निर्माण आयातित है, पंचवर्षीय योजना रूस की तो शिक्षा मैकाले वाली चल रही है।

विस्तार-

कोरोना के बाद रोज़गार के अवसर समाप्त हो गए हैं और देश की स्थिति डांवाडोल चल रही है। अगर हम पीछे मुड़ कर देखें तो आज़ादी के बाद हमने बहुत सी गलतियां की हैं, गांधी को बिना पढ़े उन पर चर्चा करने वाले लोग अगर उन्हें थोड़ा सा भी पढ़ते तो वह समझ जाते कि उनके जल्दी जाने से देश को कितना नुकसान हुआ। महात्मा गांधी का सपना ग्राम स्वराज़ अगर पूरा हुआ होता तो आज का भारत बेरोजगारी की इतनी विकराल समस्या से जूझ नहीं रहा होता।
महात्मा गांधी के जाने के बाद उनके गांधीवादी विचारों को आगे ले जाने वाले लोगों में विनोबा और जयप्रकाश को याद किया जाता है। गांधी के विचार, विनोबा का सानिध्य और जयप्रकाश का साथ पाए अमरनाथ भाई की कहानी आज की पीढ़ी के लोगों को बहुत कम पता है और गांधीवादी लोगों से जुड़ी ऐसी बहुत सी कहानी हमारे युवाओं को पता नहीं हैं। यही कारण भी है कि आज का युवा ‘गोडसे जिंदाबाद’ का ट्वीट ट्रेंड करवा रहा है।
अपना पूरा जीवन ग्राम स्वराज़ के लिए समर्पित करने वाले और सर्व सेवा संघ के दो बार अध्यक्ष रहे अमरनाथ भाई से मेरा मिलना देहरादून में सम्भव हुआ।

अमरनाथ भाई के साथ

(सर्व सेवा संघ महात्मा गांधी द्वारा या उनकी प्रेरणा से स्थापित रचनात्मक संस्थाओं तथा संघों का मिलाजुला संगठन है, जो उनके बलिदान के बाद आचार्य विनोबा भावे के मार्गदर्शन में अप्रैल 1948 में गठित किया गया। संशोधित नियमों के सन्दर्भ में यह देशभर में फैले हुए “लोकसेवकों का एक संयोजक संघ” भी बन गया है। इसे अखिल भारत सर्वोदय मण्डल के नाम से भी जाना जाता है।)

अमरनाथ भाई का जन्म वर्ष 1933 के जुलाई माह में वाराणसी के चोलापुर ब्लॉक में हुआ। वह एक धर्मपरायण परिवार में जन्मे, उनके पिता का नाम रामसुमेर मिश्र और माता का नाम सरताजी था। बचपन से ही अमरनाथ भाई अपने ननिहाल में ज्यादा रहे और उनको वहां होने वाला सामाजिक भेदभाव पसन्द नहीं आता था। वह हलवाहे के साथ खेलते तो उनके घर वालों को पसन्द नहीं आता था, वह देखते थे कि उनके पालतू कुत्ते की थाली तो घर के अंदर आ जाती थी पर हलवाहे की थाली नहीं आती थी।

नवीं कक्षा में पढ़ते हुए ही अमरनाथ भाई रुस्तम सैटिन के सम्पर्क में आए। (जनसत्ता में मदन मोहन मालवीय के पौत्र श्री लक्ष्मीधर मालवीय संस्मरण लिख रहे थे। उनमें से एक संस्मरण में उन्होंने रुस्तम सैटिन की चर्चा की, जिनके छात्र जीवन में किये जा रहे स्वतंत्रता आन्दोलनों से प्रभावित होकर मालवीय जी ने स्वयं उन्हें बीएचयू में लाने और पढ़ाई जारी रखने के लिए छात्रवृत्ति की व्यवस्था की थी। यह व्यवस्था उनके यह कहने के बाद भी की थी कि वे कम्युनिस्ट हैं। बाद में कॉमरेड रुस्तम सैटिन बनारस से विधायक भी चुने गये थे और चरण सिंह के नेतृत्व में बनी सरकार में पुलिस विभाग के उपमंत्री रहे थे।)

कम्युनिस्टों से अमरनाथ भाई का यह लगाव उनके 1954 में बीएचयू छोड़ने तक रहा। जब अमरनाथ भाई 17-18 साल के थे तब उनकी बनारस से शादी हुई और उनकी पत्नी का नाम माधुरी है। 1951 में जब से भूदान आंदोलन शुरू हुआ तब से ही अमरनाथ भाई इस आंदोलन की खबरों पर अपनी नज़र जमाए हुए थे, 1953-54 में जब विनोबा बनारस से गुज़र रहे थे तब अमरनाथ भाई की उनसे मुलाकात हुई।

इसी बीच सर्वोदय के प्रदेश नेता अक्षय कुमार कर्ण उन्हें 1954 में सेवापुरी स्थित सर्वोदय संस्था में ले आए, वहां अमरनाथ भाई ने कताई, बुनाई करते एक साल तक गांधी दर्शन सीखा, इसके बाद वहीं 5-6 साल उन्होंने कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण की जिम्मेदारी भी संभाली।

अब उन्होंने यह निर्णय ले लिया था कि ग्राम स्वराज़ का प्रयोग वह अपने गांव में जाकर करेंगे, यह बात धीरेंद्र मजूमदार को मालूम चली। धीरेंद्र तब सर्व सेवा संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी थे, वह अमरनाथ भाई को किसी तरह मना कर दो साल तक अपने साथ ले आए। अमरनाथ भाई कहते हैं कि मजूमदार ‘शास्त्री’ भी थे और ‘मिस्त्री’ भी। उनमें महात्मा गांधी की तरह खासियत थी कि वह जो बोलते थे वो करते भी थे।
वह दूरदर्शी भी थे और जो होने वाला है उसे समझते थे, 1954-55 में गांव वालों को समझाते हुए कहते थे मुकदमा जीते हो, कागज़ हाथ में नहीं आया। कब्ज़ा नहीं हुआ, कब्ज़ा कर लो नहीं तो जिन वकीलों ने मुकदमा लड़ कब्ज़ा दिलाया है, वो कब्ज़ा कर लेंगे। बाबू लोगों के कपड़े सफेद नहीं रहने वाले हैं, समझदारी है कि उसे मिट्टी के रंग में रंग लें वरना खून के छींटे पड़ने से कोई नहीं रोक सकता।

अमरनाथ भाई के जीवन में धीरेंद्र का हमेशा बड़ा प्रभाव बना रहा। कुछ समय बाद सर्व सेवा संघ की शाखा के तौर पर अखिल भारत शांति सेना मंडल बना, जिसके अध्यक्ष जयप्रकाश नारायण और मंत्री ‘महात्मा गांधी’ के पर्सनल सेक्रेटरी महादेव देसाई के पुत्र नारायण देसाई थे। यह लोग अमरनाथ भाई को अपने साथ ले आए और उन्हें शांति सेना विद्यालय में प्रशिक्षण का कार्य दिया गया, अमरनाथ भाई इससे 1975 तक जुड़े रहे।
शांति सेना का कार्य सामान्य दिनों में सेवा करना था और दंगों में भी उसे कार्य करना होता था। वर्ष 1974 में वह शांति सेना के साथ साइप्रस में ग्रीस और तुर्की के बीच हो रही लड़ाई में भी गए। 1974 में ही हुए बिहार आंदोलन के दौरान वह जयप्रकाश नारायण के साथ रहे और इमरजेंसी के दौरान तीन-चार बार जेल भी गए। इसी दौरान वह जाबिर हुसैन और कुमार प्रशांत के साथ ‘तरुण क्रांति’ पत्रिका निकालते थे।

इसके बाद वह सर्व सेवा संघ में मंत्री, महामंत्री और दो बार अध्यक्ष रहे। अमरनाथ भाई के तीन बेटे और एक लड़की हैं, उनके दो लड़के सर्वोदय से ही जुड़े हैं। वह कहते हैं कि उन्होंने फैसला लिया था कि 75 साल के बाद किसी संस्था से नही जुड़ेंगे, अब वह ऐसी जगह घूमते हैं जहां जल, जंगल ,जमीन को लेकर कोई संघर्ष चल रहा हो।
वह ऐसी जगह भी जाते हैं जहां ग्राम स्वराज़ की दृष्टि से रचना के कार्य चल रहे हों। उनका मानना है कि आजकल गांधी विचार के लोग बहुत हैं और युवाओं को भी गांधी के विचारों में भविष्य दिख रहा है पर गांधी को समझाने वाले लोग अब बहुत कम बचे हैं और गांधी से जुड़ी संस्थाएं अब थक चुकी हैं।

वह कहते हैं कि गांधी के विचार, विनोबा का सानिध्य और जयप्रकाश नारायण के साथ रह कर उनका जीवन धन्य हुआ। वर्तमान परिस्थितियों से अमरनाथ भाई खिन्न हैं, वह कहते हैं आज़ादी तक तो भारतीय जनता ने संघर्ष किया पर पहले लोकसभा चुनाव के बाद भारतीय जनता निश्चिंत हो गई कि अब सब काम सरकार करेगी, जनता तब सोई और अब तक उठी नहीं है। देश का निर्माण आयातित है, पंचवर्षीय योजना रूस की तो शिक्षा मैकाले वाली चल रही है।

वह बोलते हैं कि जयप्रकाश कहते थे कि ग्राम स्वराज़ के लिए उल्टे पिरामिड को सीधा करना है। सारी शक्तियां उल्टे पिरामिड की तरह ऊपर से नीचे आ रही हैं, जबकि गांव स्वावलंबी बन सब कुछ कर सकते हैं। गांव में ही होने वाली वस्तुओं का मूल्य दिल्ली द्वारा निर्धारित किया जाता है, ऐसा क्या है जो गांव में नहीं हो सकता! राजनीतिक, शैक्षणिक और सामाजिक अधिकार गांव वालों को सौंप देने चाहिए।

उन्होंने ‘पेसा कानून’ और उस पर दिग्विजय सिंह के विचारों की भी चर्चा की, जिन्होंने आदिवासियों को उनके अधिकार देने के लिए ग्राम स्वराज और विशेष क़ानून ‘पेसा’ के ज़रिए एक प्रयास किया था। दिग्विजय नक्सलवाद समस्या का समाधान पेसा कानून को बताते थे पर वह कानून आज लगभग भुला दिया गया है और उस पर कोई अधिक कार्य नहीं हुआ। इस दो अक्टूबर अमरनाथ भाई चम्पारण में किसान आंदोलन के समर्थन में हो रही पदयात्रा में शामिल होने गए थे।

(हिमांशु जोशी लेखक और समीक्षक हैं और आजकल उत्तराखंड में रहते हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles