Tuesday, April 16, 2024

उर्मिलेश

कांशीराम स्मरणः खवासपुर के फकीर का राजनीतिक सफर और आज की बहुजन राजनीति!

हिंदी-भाषी क्षेत्र में बहुजन-राजनीति के नायक और बेमिसाल संगठक कांशीराम जी का आज परिनिर्वाण दिवस है। सन् 2006 में आज ही के दिन उन्होंने दिल्ली में अंतिम सांस ली। एक संगठक और राजनीतिज्ञ के रूप में कांशीराम जी को...

हिंदी दिवस सिर्फ एक फालतू कर्मकांड ही नहीं, राष्ट्रीय क्षति भी!

लंबे समय तक मैं हिंदी दिवस के कार्यक्रमों में जाया करता था। एक हिंदी पत्रकार होने के नाते मुझे इस मौके पर हर साल कभी कोई सरकारी संस्थान बुलाता, कभी किसी महाविद्यालय या विश्वविद्यालय का हिंदी विभाग तो कभी...

हमेशा जनता के आदमी बन कर रहे स्वामी अग्निवेश

स्वामी अग्निवेश का जाना बेहद दुखद! वह ऐसे समय गये हैं, जब उन जैसे लोगों की हमारे समाज को आज ज्यादा जरूरत है। स्वामी जी से मेरा परिचय सन् 1978 हुआ.. उन्हीं के यहां पहली दफा किसी वक्त कैलाश...

महामारी के बीच स्वतंत्रता दिवस और राष्ट्र के स्वास्थ्य पर प्रधानमंत्री के नये ऐलान का मतलब

भारत के स्वतंत्र देश बनने के बाद पहली बार हमने अपना स्वतंत्रता दिवस एक भयावह महामारी के बीच मनाया। ऐसी महामारी बीते 73 वर्षों में कभी नहीं आई। अनेक देशवासियों को लग रहा था कि प्रधानमंत्री इस महामारी से...

उर्मिलेश की कलम से: सपा-बसपा के परशुराम!

महामारी के इस भयावह दौर में जब सरकारें अपनी चौतरफा विफलताओं से लोगों का ध्यान हटाने की हर चंद कोशिश कर रही हैं, उत्तर प्रदेश के दो प्रमुख विपक्षी दल  बिल्कुल अनोखे अंदाज में पेश आ रहे हैं। ऐसा...

कश्मीर के विशेष दर्जा प्रावधान खत्म होने का एक सालः अंधेरी-बंद सुरंग में धरती का स्वर्ग!

यह बात सही है कि पिछले वर्ष 5 अगस्त को नरेंद्र मोदी सरकार ने जम्मू कश्मीर का बचा-खुचा विशेष दर्जा खत्म करने के लिए अनुच्छेद-370 के सम्बद्ध प्रावधान को खत्म करने का जो फैसला किया, वह सत्ताधारी दल का...

अमर सिंह: मुलायम सिंह के संकट मोचक, जो उनके सबसे बड़े संकट भी थे

इस वक्त मुझे साल-महीना नहीं याद आ रहा है पर वो समाजवादी पार्टी की बुलंदी के दिन थे और पार्टी से भी ज्यादा अमर सिंह की बुलंदी के दिन थे। उन दिनों मैं हिन्दुस्तान टाइम्स ग्रुप के हिंदी अखबार...

कांग्रेसः विचारहीनता और नेतृत्वहीनता का संकट

कर्नाटक और मध्य प्रदेश में ‘ऑपरेशन कमल’ की कामयाबी के बाद भारतीय जनता पार्टी को इस बार राजस्थान से उम्मीद है। यहां भी वह मध्य प्रदेश वाले फार्मूले को आजमाने की कोशिश कर रही है। ऐन मौके पर आईटी-ईडी...

विशेष आलेख: प्रचंड बहुमत से उभरती निरंकुशता और जनतंत्र का जमीनी सच

25 जून, 1975 को संविधान का सहारा लेकर इस देश के संवैधानिक लोकतंत्र और अवाम के साथ जो किया गया, क्या इन बीते 45 सालों में हमारे समाज और हमारी सियासत ने कोई सबक लिया? क्या आपातकाल यानी इमरजेंसी...

कोविड-19 से निपटने में भारत की नाकामियां राजनीतिक से ज्यादा सामाजिक क्यों हैं?

पिछले दिनों पूरी दुनिया ने देखा। अमेरिका के बाद यूरोप ने भी नस्लभेद-रंगभेद के विरुद्ध झंडा उठा लिया। महामारी के दौर में ये दोनों महाद्वीप अंदर से बदलते-संवरते नजर आ रहे हैं। एक तरफ लोग ज़िंदगी बचाने की जंग...

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चंद्रशेखर आजाद: हिंदी पट्टी में एकमात्र मुखर आंबेडकरवादी राजनीतिक स्वर संसद में गूंजना ही चाहिए

19 अप्रैल को पश्चिमी उत्तर प्रदेश के नगीना लोकसभा (सुरक्षित) निर्वाचन क्षेत्र में मतदान है। यहां आजाद समाज पार्टी...