Thursday, March 28, 2024

जस्टिस फॉर जज-2: जस्टिस कुरियन जोसेफ के आरोपों पर जस्टिस गोगोई ने कोई सफाई नहीं दी

अपने निजी जीवन और पेशेवर कारणों से विवादों में रह चुके पूर्व चीफ जस्टिस  रंजन गोगोई अपने संस्मरण ‘जस्टिस फॉर जज’ को लेकर एक बार फिर विवादों में घिर गये हैं। जस्टिस गोगोई ने इस किताब में अपने से जुड़े विवादों को लेकर सफाई दी है जिससे और नये सवाल खड़े हो गये हैं। जस्टिस गोगोई के विवादों से जुड़े सभी पात्र जीवित हैं और सभी का विवादों को लेकर अपना अपना वर्जन है। जस्टिस गोगोई ने सभी मामलों में अपने को पाक-साफ प्रदर्शित करने की कोशिश की है जबकि तथ्य इसके विपरीत हैं। जस्टिस गोगोई ने अपनी आत्मकथा में यह नहीं लिखा कि उनके साथ प्रेस कन्फ्रेन्स करने वाले चार जजों में से एक पूर्व न्यायाधीश जस्टिस कुरियन जोसेफ ने जस्टिस गोगोई पर न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता के महान सिद्धांतों से समझौता करने का आरोप क्यों लगाया था? 

उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस कुरियन जोसेफ ने पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई द्वारा राज्यसभा सीट स्वीकार करने पर अपनी प्रतिक्रिया दी है। जस्टिस कुरियन ने कहा कि 12 जनवरी 2018 को हम तीनों के साथ न्यायमूर्ति रंजन गोगोई द्वारा दिया गया बयान “हमने राष्ट्र के लिए अपने ऋण का निर्वहन किया है। मुझे आश्चर्य है कि जस्टिस रंजन गोगोई जिन्होंने एक बार न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए दृढ़ विश्वास और साहस का परिचय दिया था, उन्होंने कैसे न्यायपालिका, की स्वतंत्रता पर निष्पक्ष सिद्धांतों और न्यायपालिका की निष्पक्षता से समझौता किया है”।

जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस जे चेलमेश्वर, जस्टिस कुरियन जोसेफ और जस्टिस मदन लोकुर ने जनवरी 2018 में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित कर कुछ विशिष्ट बेंचों को महत्वपूर्ण मामलों के मनमाने आवंटन का आरोप लगाया था। भारत के राष्ट्रपति ने सोमवार को न्यायमूर्ति रंजन गोगोई को राज्यसभा के लिए मनोनीत सदस्य के रूप में नामित किया। 3 अक्टूबर 2018 को भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किए गए न्यायमूर्ति गोगोई 17 नवंबर 2019 को सेवानिवृत्त हो गए थे। उनकी अध्यक्षता वाली पीठ ने अयोध्या, सबरीमाला, राफेल आदि मामलों में महत्वपूर्ण निर्णय सुनाए थे।

जस्टिस कुरियन जोसेफ ने लाइव लॉ से बातचीत में कहा था कि हमारा महान राष्ट्र बुनियादी संरचनाओं और संवैधानिक मूल्यों पर मजबूती से टिका हुआ है, मुख्य रूप से स्वतंत्र न्यायपालिका के लिए धन्यवाद। जिस पल लोगों का यह विश्वास हिल गया है, उस पल यह धारणा है कि न्यायाधीशों के बीच एक वर्ग पक्षपाती हो रहा है। ठोस नींव पर निर्मित राष्ट्र का ढांचा हिल गया है। केवल इस एलाइनमेंट को मजबूत करने के लिए, उच्चतम न्यायालय द्वारा 1993 में न्यायपालिका को पूरी तरह से स्वतंत्र और अन्योन्याश्रित नहीं बनाने के लिए कॉलेजियम प्रणाली की शुरुआत की गई थी।

जस्टिस जोसेफ ने कहा कि भारत के एक पूर्व मुख्य न्यायाधीश द्वारा राज्यसभा के सदस्य के रूप में नामांकन की स्वीकृति ने निश्चित रूप से न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर आम आदमी के विश्वास को हिला दिया है, जो कि भारत के संविधान की बुनियादी संरचनाओं में से एक है। जस्टिस जोसेफ ने कहा, मैं जस्टिस चेलमेश्वर, जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस मदन बी लोकुर के साथ एक अभूतपूर्व कदम के साथ सार्वजनिक रूप से देश को यह बताने के लिए सामने आया था कि इस आधार पर खतरा है और अब मुझे लगता है कि खतरा बड़े स्तर पर है। जस्टिस जोसेफ ने कहा कि यही कारण था कि मैंने सेवानिवृत्ति के बाद कोई पद नहीं लेने का फैसला किया।

इसी तरह पूर्व जज जस्टिस मदन लोकुर ने कहा कि इस बात को लेकर कुछ समय से अटकलें लगाई जा रही थीं कि जस्टिस गोगोई को अब क्या सम्मान मिलेगा, इसलिए इस अर्थ में यह नामांकन आश्चर्यजनक नहीं है, लेकिन जो आश्चर्य की बात है, यह इतनी जल्दी हो गया। यह स्वतंत्रता, निष्पक्षता और अखंडता को फिर से परिभाषित करता है। न्यायपालिका का क्या आखिरी गढ़ गिर गया है? जस्टिस एपी शाह ने कहा कि इन पांच छह सालों में सुप्रीम कोर्ट की स्वतंत्रता पर जमकर बट्टा लगा है।

सीनियर एडवोकेट संजय हेगड़े कहते हैं कि मुख्य न्यायाधीश के कार्यकाल के दौरान गोगोई के पास ऐसे अनेक मामले आए जिन पर उनके रुख को देख कर लोग हैरान होते थे कि क्या यह वही जज है जो दीपक मिश्रा के खिलाफ प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित करने वालों में से एक था। रफ़ाल मामले के अलावा जिन अनेक मामलों की उन्होंने सुनवाई की उनमें सब कुछ वैसा ही होता रहा जो सरकार के लिए काफी सुकून पहुंचाने वाला था। इसमें अयोध्या मंदिर विवाद, जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 से संबद्ध मामला, सीबीआई के निदेशक पद से आलोक वर्मा के हटाए जाने का मामला और ऐसे कई मामले शामिल हैं।

गुवाहाटी हाईकोर्ट के एक वकील ने गोगोई पर आरोप लगाया कि उन्होंने अपने बचपन के मित्र और सहकर्मी अमिताभ राय की नियुक्ति में विलंब किया ताकि यह सुनिश्चित हो जाए कि दोनों की पदोन्नतियां एक साथ न हो सकें। चौधरी ने बताया कि सन 2000 में दोनों के नामों की सिफारिश साथ-साथ हुई। गोगोई 2001 में जज बन गए और इसके 17 महीनों बाद 2002 में अमिताभ राय की नियुक्ति हुई। अगर फाइलों की प्रक्रिया साथ-साथ चली होती तो कुल मिला कर अमिताभ राय गोगोई से वरिष्ठ हो जाते और सुप्रीम कोर्ट में पहुंचने का मौका उन्हें नहीं मिल पाता। ऐसी हालत में शायद अमिताभ राय भारत के मुख्य न्यायाधीश पद से और गोगोई गौहाटी हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पद से रिटायर होते। हाईकोर्ट के एक पूर्व जज ने भी इस बात की पुष्टि की कि गोगोई की पदोन्नति से संबंधित जिन परिस्थितियों का जिक्र किया जा रहा है वे सही हैं। उन्होंने इसमें एक और बात जोड़ी कि तत्कालीन कानून मंत्री अरुण जेटली और गोगोई अच्छे मित्र थे और जेटली ने गोगोई को आश्वासन दिया था कि अमिताभ राय कभी भी गोगोई से वरिष्ठ नहीं होंगे।

चीफ जस्टिस के रूप में भी गोगोई की देखरेख में अनेक विवादास्पद नियुक्तियां हुईं। सौमित्र सैकिया को गौहाटी हाईकोर्ट में अतिरिक्त न्यायाधीश के पद पर नियुक्त किया गया जो किसी जमाने में गोगोई के जूनियर थे। इसी तरह जज सूर्यकांत की नियुक्ति की गई, जबकि उनके खिलाफ भ्रष्टाचार और टैक्स चोरी के आरोप थे। संजीव खन्ना की नियुक्ति की गई और यह नियुक्ति करते समय कोलेजियम के उस प्रस्ताव की अनदेखी की गई जिसमें दिल्ली हाईकोर्ट में खन्ना के वरिष्ठ प्रदीप नंदराजोग को प्रोन्नति देने की बात कही गई थी। इसी प्रकार दिनेश माहेश्वरी को सुप्रीम कोर्ट में प्रवेश मिल गया जबकि उन पर आरोप थे कि वह कार्यपालिका के प्रभाव में काम करते हैं।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

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