Thursday, April 18, 2024

निरस्त हो चुकी आईटी एक्ट की धारा 66ए के तहत अभी भी हो रहा है एफआईआर

उच्चतम न्यायालय ने 24 मार्च, 2015 को, श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ के मामले में सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 66ए को पूरी तरह से रद्द कर दिया और फैसला सुनाया कि यह अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को राज्यों द्वारा सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66 ए के तहत अपराधों के लिए एफआईआर दर्ज करना जारी रखने पर “गंभीर चिंता” व्यक्त की, जबकि अदालत ने इसे 2015 में असंवैधानिक ठहराया था।

चीफ जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस एस रवींद्र भट की पीठ ने कहा कि यह गंभीर चिंता का विषय है कि इस अदालत द्वारा आधिकारिक घोषणा के बावजूद, धारा 66 ए आईटी अक्त के प्रावधान के तहत अभी भी प्राथमिकियां दर्ज की जा रही हैं। पीठ ने गुरुवार को केंद्र सरकार को उन राज्यों के मुख्य सचिवों से संपर्क करने के लिए कहा जहां 2015 में कोर्ट द्वारा असंवैधानिक घोषित किए जाने के बावजूद सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66 ए के तहत प्राथमिकी दर्ज की जा रही है। पीठ ने केंद्र सरकार से ऐसे राज्यों पर “जल्द से जल्द उपचारात्मक उपाय” करने के लिए दबाव डालने को कहा।

पीठ पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) द्वारा दायर उस रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ (2015) 5 SC 1 में कोर्ट के फैसले के बावजूद धारा 66 ए आईटी अधिनियम लागू करने के मुद्दे पर प्रकाश डाला गया। पीठ ने कहा कि मामला बेहद गंभीर है और राज्यों और हाईकोर्ट को नोटिस जारी किया गया है। अब इस मामले की सुनवाई तीन हफ्ते बाद होनी है।

शुरुआत में, याचिकाकर्ता के लिए सीनियर एडवोकेट संजय पारिख ने श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ के फैसले के बाद भी आईटी अधिनियम की धारा 66ए के तहत पुलिस/कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा दर्ज मामलों का विवरण प्रस्तुत किया।

दलीलें सुनने के बाद पीठ ने कहा कि इस आवेदन में आधारित शिकायत इस अदालत द्वारा श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ में आईटी अधिनियम की धारा 66ए को रद्द करने के निर्देशों के कार्यान्वयन के बारे में है। यह कहा गया है कि इस अदालत के निर्देशों के बावजूद, विभिन्न अपराधों के संबंध में अपराध 66ए के उल्लंघन का आरोप अभी भी लगाया जा रहा है। इस संबंध में उदाहरण दिए गए हैं। इसलिए यह अदालत सभी राज्यों को नोटिस जारी करती है। सभी राज्य हमारे सामने हैं।

पीठ ने यह भी नोट किया कि अधिकांश राज्यों ने स्पष्ट रूप से प्रस्तुत किया कि न्यायालय द्वारा जारी निर्देशों का पालन किया गया है और वर्तमान में 66ए के तहत अपराध के संबंध में कोई मामला लंबित नहीं है। मौखिक सुनवाई में, यूपी, सिक्किम, हिमाचल, मेघालय और पश्चिम बंगाल राज्यों के सरकारी वकीलों ने पीठ को बताया कि इन राज्यों में कोई मामला लंबित नहीं है।

पीठ ने कहा कि हालांकि, अभी भी कुछ ऐसे उदाहरण हैं जहां संबंधित प्रावधान लागू किया गया है और उस संबंध में अपराध अभी भी विचाराधीन हैं। यह गंभीर चिंता का विषय है कि इस अदालत के फैसले के बावजूद, 66ए के तहत अपराधों पर अभी भी विचार किया जा रहा है।

पीठ ने केंद्र सरकार की ओर से पेश एडवोकेट जोहेब हुसैन को इस संबंध में राज्यों के मुख्य सचिवों से संपर्क करने को कहा, जहां अपराध अभी भी दर्ज किए जा रहे हैं और उन्हें जल्द से जल्द उपचारात्मक उपाय करने के लिए दबाव डालने को कहा है। हुसैन को राज्य के लिए उपस्थित होने वाले संबंधित एडवोकेट द्वारा सहायता प्रदान की जाएगी। पूर्ण सहायता प्राप्त करने के लिए, उन्हें आवश्यक जानकारी मांगने के लिए मुख्य सचिवों को लिखने की स्वतंत्रता होगी। राज्यों को हुसैन द्वारा आवश्यक सभी जानकारी प्रदान करने का निर्देश दिया जाता है। पूरी प्रक्रिया को 3 सप्ताह में समाप्त होने दें। तदनुसार, मामले को अब तीन सप्ताह के बाद सूचीबद्ध किया गया है।

पीयूसीएल ने जिन मुद्दों को उठाते हुए इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन की सहायता से न्यायालय का दरवाजा खटखटाया उनमें कहा गया है कि क्या श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ (2015) 5 SC 1 के निर्णय का अनुपालन किया गया है? क्या भारत संघ द्वारा उठाए गए कदम पर्याप्त हैं? गलत जांच और अभियोजन से बचने के लिए श्रेया सिंघल में फैसले के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए क्या कदम उठाए जाने की आवश्यकता है? यह सुनिश्चित करने के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिए कि लोगों के कानूनी और संवैधानिक अधिकारों के संरक्षण से संबंधित महत्वपूर्ण मामलों में पारित न्यायालय के निर्णयों को प्रभावी ढंग से लागू किया जाए?

आवेदन में कहा गया है कि श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (एमईआईटीवाई) द्वारा उठाए गए कदम पर्याप्त नहीं हैं। केंद्र सरकार  ने निर्णय को लागू करने के बजाय, यह कहकर अपनी जिम्मेदारी से किनारा कर लिया कि कार्यान्वयन की जिम्मेदारी राज्यों के साथ-साथ कानून प्रवर्तन एजेंसियों की भी है।

तदनुसार, आवेदन में अदालत से अनुरोध किया गया है कि वह भारत संघ को श्रेया सिंघल में फैसले की घोषणा के बाद से आईटी अधिनियम की धारा 66 ए के तहत पुलिस/कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा दर्ज मामलों का विवरण एकत्र करने का निर्देश दे और उन मामलों में जहां मामला जांच के चरण में है, राज्यों में पुलिस महानिदेशक और केंद्र शासित प्रदेशों के मामलों में प्रशासकों/ उप राज्यपाल को धारा 66ए के तहत आगे की जांच को रोकने का निर्देश दें।

आवेदन में सभी हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों के लिए सभी अधीनस्थ न्यायालयों (दोनों सत्र न्यायालयों और मजिस्ट्रेट न्यायालयों) को सलाह जारी करने की प्रार्थना कि गयी है कि धारा 66 ए के तहत सभी आरोपों / ट्रायल को रोका जाए और ऐसे मामलों में अभियुक्तों को आरोपमुक्त करने के लिए कहा जाए। सभी हाईकोर्ट ( रजिस्ट्रार जनरलों के माध्यम से) सभी जिला न्यायालयों और मजिस्ट्रेटों को सूचित करें कि आईटी अधिनियम की रद्द धारा 66 ए के तहत तत्काल कोई संज्ञान नहीं लिया जाना चाहिए।

यह भी प्रार्थना की गई है सभी राज्यों के डीजीपी/सभी केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासकों को पुलिस / कानून प्रवर्तन एजेंसियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू करने को कहा जाए, जो आईटी अधिनियम की रद्द धारा 66 ए के तहत मामले दर्ज करते हुए पाए गए हैं और हाईकोर्ट को यह सूचित किए जाने के बावजूद कि धारा 66 ए को रद्द कर दिया गया है , धारा 66ए के तहत मामला दर्ज करने या इसकी जांच करने या ट्रायल चलाने के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ स्वत: अवमानना कार्यवाही शुरू करने की अनुमति दी जाए।

याचिका में कहा गया है कि इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद जम्मू-कश्मीर में 16 केस दर्ज हुए, जबकि झारखंड में 40 और मध्य प्रदेश में 113 केस दर्ज किए गए हैं। याचिकाकर्ता की तरफ से मांग की गई कि अटॉर्नी जनरल को भी इस मामले में शामिल किया जाना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को गंभीर माना कि फैसला आने के बाद भी कुछ राज्य 66 A के तहत मुकदमा दर्ज कर रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के वकील को कहा है कि जिन राज्यों ने फैसले के बाद भी मुकदमे दर्ज किये हैं, उनके मुख्य सचिव से बात करें और उन मुकदमों को खत्म करने पर काम करें. इसके साथ ही शीर्ष न्यायालय ने इस प्रकिया को पूरा करने के लिए केंद्र सरकार को 3 हफ्ते का समय दिया. मामले की अगली 21 दिनों के बाद होगी।

इसके पहले वर्ष 2021(जुलाई)में सुप्रीम कोर्ट आईटी  एक्ट की धारा 66A के तहत केस दर्ज किए जाने पर हैरानी जता चुका है।दरअसल  सुप्रीम कोर्ट ने 2015 के ऐतिहासिक फैसले में आईटी एक्ट की धरा 66ए को खारिज कर दिया था, जिसमें पुलिस को अधिकार था कि वो कथित तौर पर आपत्तिजनक कंटेंट सोशल साइट या इंटरनेट पर डालने वालों को गिरफ्तार कर सकती थी।

जुलाई 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर हैरानी जताई थी कि उसने जिस धारा 66ए को साल 2015 में ही निरस्त कर दिया था, उसी धारा के तहत आज भी मुकदमे दर्ज किए जा रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि श्रेया सिंघल बनाम भारत सरकार केस में उसने आईटी एक्ट के सेक्शन 66ए को असंवैधानिक घोषित कर दिया था और छह साल बाद भी आईटी ऐक्ट के इस प्रावधान के तहत मुकदमा दर्ज किया जाना वाकई हैरान करने वाला है।

यह मामला शिवसेना चीफ रहे बाल ठाकरे के निधन से जुड़ी है। ठाकरे के निधन के बाद मुंबई का जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया था। इसे लेकर फेसबुक पर टिप्पणी की गई। तब महाराष्ट्र पुलिस टिप्पणी करने वालों को गिरफ्तार करने लगी और उन पर आईटी ऐक्ट की धारा 66ए के तहत केस दर्ज करने लगी। तब लॉ स्टूडेंट श्रेया सिंघल ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उसने अपनी याचिका में धारा 66ए को खत्म करने की मांग की।

सिंघल की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में ऐतिहासक फैसला दिया। उसने कहा कि आईटी एक्ट की धारा 66ए संविधान सम्मत नहीं है, इसलिए इसे निरस्त किया जाता है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के उल्लंघन और अनुच्छेद 19(2) के तहत किए गए प्रतिबंधों के अंतर्गत न आने के कारण आईटी एक्ट की धारा 66ए को असंवैधानिक घोषित किया जाता है।

सुप्रीम कोर्ट ने जब हैरानी जताई थी कि असंवैधानिक घोषित होने के छह साल बाद भी आईटी ऐक्ट की धारा 66ए चलन में है तो अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सरकार की तरफ से सफाई दी थी । उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भले ही यह प्रावधान खत्म कर दिया, लेकिन बेयर एक्ट में अभी भी धारा 66ए का उल्लेख है। उन्होंने बताया कि हालांकि नीचे लिखा हुआ है कि सुप्रीम कोर्ट इसे निरस्त कर चुका है। तब सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि क्या पुलिस नीचे नहीं देख पा रही जहां लिखा है कि सुप्रीम कोर्ट इस धारा को निरस्त कर चुकी है? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दो हफ्ते में केंद्र सरकार जवाब दाखिल करे। ये हैरान करने वाला है, हम कुछ करेंगे।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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