Saturday, April 20, 2024

जस्टिस फॉर जज-3:गोगोई साहब आपको राफेल डील में जांच जैसा कुछ नहीं दिखा लेकिन फ्रांस कर रहा है जांच

क्या मजाक है गोगोई साहब। आपकी अध्यक्षता वाली उच्चतम न्यायालय की तीन सदस्यीय पीठ को राष्ट्रहित में फ्रांस की कंपनी दसॉल्ट से 36 राफेल विमान सौदे में किसी तरह की जांच की जरूरत महसूस नहीं हुई, जबकि फ़्रांस में इसकी न्यायिक जाँच हो रही है। फ़्रांस विमान बेचने वाला है और भारत विमान खरीदने वाला देश है। गोगोई ने अपनी पुस्तक जस्टिस फॉर जज में इसकी कोई सफाई नहीं दी है।  

उच्चतम न्यायालय ने फ्रांस की कंपनी दसॉल्ट से 36 राफेल विमान सौदे में किसी तरह की जांच की संभावना को नकारते हुए कोर्ट की निगरानी में सीबीआई जांच से मना कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने 8.7 बिलियन डॉलर की रक्षा डील में किसी तरह की अनियमितता नहीं पाई थी। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि उन्हें ऐसा कोई साक्ष्य नहीं मिला जिससे कहा जा सके कि सरकार ने किसी निजी कंपनी को फायदा पहुंचाने के लिए फ्रांस के साथ समझौता किया। न सिर्फ रंजन गोगोई के फैसले पर बल्कि रंजन गोगोई के चरित्र पर भी, क्योंकि जिस तरह से उन्होंने केंद्र की मोदी सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया और रिटायरमेंट के बाद राज्यसभा के सांसद बन गए, उससे न्यायपालिका की गरिमा तो गिरी ही, चीफ जस्टिस जैसे पद की गरिमा भी कम हुई।

इस बीच फ्रांसीसी पत्रकार यान फिलीपीन की एक रिपोर्ट (मीडियापार्ट राफेल रिपोर्ट ) में राफेल सौदे में कथित अनियमितताओं का दावा किया गया था। रिपोर्ट के बाद शेरपा(एनजीओ) ने शिकायत दर्ज करवाई थी। यह एनजीओ वित्त फ्रॉड का शिकार हुए लोगों की मदद करता है। रिपोर्ट में दावा किया गया था कि डसॉल्ट-रिलायंस के इस जाइंट वेंचर के लिए डसॉल्ट एविएशन 49 फीसदी हिस्सेदारी लगा रहा था, वहीं रिलायंस सिर्फ 51 फीसदी। आगे दावा किया गया था कि भारत सरकार द्वारा फाइटर जेट खरीदने की बात सार्वजनिक करने से पहले ही डसॉल्ट एविएशन को पहले से पता था कि भारत को किस तरह के फाइटर जेट चाहिए। इसके अलावा रिपोर्ट में सुशेन गुप्ता का भी नाम है, जो कि अगस्ता वेस्टलैंड वीवीआईपी चॉपर डील घोटाले में पकड़ा गया था। दावा किया गया है कि उसकी कंपनी से भी कुछ ‘संदिग्ध लेन देन’ हुआ था, कहा गया था कि यह पैसा उसे राफेल से संबंधित कागजात मंत्रालय से निकालने के लिए डसॉल्ट ने दिया था।

इसके बाद फ्रांस के राष्ट्रीय अभियोजक कार्यालय (पीएनएफ) ने एक जज को इस डील की जांच के लिए नियुक्त किया है। अब अगर न्यायिक जांच में भी सबूत सही पाए जाते हैं तो फिर आगे ट्रायल होगा.अब मामले में फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद और मौजूदा राष्ट्रपति इमैनुअल मैंक्रों से भी पूछताछ हो सकती है। जब राफेल डील साइन हुई थी तब फ्रांस्वा ओलांद फ्रांस के राष्ट्रपति थे और मैंक्रों वित्त मंत्री हुआ करते थे। इसके बाद भारत ही नहीं पूरी दुनिया में उच्चतम न्यायालय के राफेल फैसले का मखौल बन गया।इसके बाद आई है जस्टिस गोगोई की किताब जस्टिस फॉर जज जिसमें फ़्रांस के इस सन्दर्भ को छुआ तक नहीं गया है। जस्टिस रंजन गोगोई ने इस मामले पर कुछ भी कहने से इंकार कर दिया था।

उच्चतम न्यायालय के राफेल फैसले से केन्द्र सरकार को राहत मिली थी और विपक्ष की सीबीआई जांच कराने की मांग को खारिज कर दिया गया था। इस फैसले के बावजूद भारत और फ्रांस सरकार के बीच हुए इस सौदे पर कई अनुत्तरित सवाल हैं, जिनका जवाब न तो सुप्रीम कोर्ट के फैसले से मिला और न ही इन सवालों का कोई जवाब सरकार से मिलने की उम्मीद बची है।

उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि उसे राफेल डील में ऐसा कोई सुबूत नहीं मिला है जिसके आधार पर कहा जा सके कि केन्द्र सरकार ने दसॉल्ट समझौते में रिलायंस को फायदा पहुंचाने का काम किया। कोर्ट में केन्द्र सरकार ने कहा है कि दसॉल्ट से करार में ऑफसेट पार्टनर चुनने का दारोमदार फ्रांस की कंपनी के पास था।लेकिन सवाल यह है कि जब भारत और फ्रांस सरकार के बीच हुई इस डील में दसॉल्ट के लिए यह जिम्मेदारी छोड़ी गई तब किस आधार पर भारत सरकार की एविएशन इकाई एचएएल एक ऐसी कंपनी से पिछड़ गई जिसने एविएशन क्षेत्र में कदम करार के बाद रखा।

इस डील के साथ ही भारत और फ्रांस की सरकारों के बीच समझौता किया गया था कि डील से दसॉल्ट को हुई कुल कमाई का आधा हिस्सा कंपनी को एक निश्चित तरीके से वापस भारत में निवेश करना होगा। डील के इस पक्ष को ऑफसेट क्लॉज कहा गया। लिहाजा, डील के तहत दसॉल्ट को यह सुनिश्चित करना था कि वह 8.7 बिलियन डॉलर की आधी रकम को वापस भारत के रक्षा क्षेत्र में निवेश करे। लिहाजा, निवेश जब इस पैसे से होना था और ऑफसेट क्लॉज भारत-फ्रांस सरकार की डील का हिस्सा है। यह निवेश भारत में 3 दशक से एविएशन में काम करने वाली कंपनी की जगह ऐसी कंपनी में हुआ जिसकी नींव करार के बाद रखी गई।

दरअसल 14 दिसंबर, 2018 को, सीजेआई गोगोई, न्यायमूर्ति एसके कौल और न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की पीठ ने उन जनहित याचिकाओं को खारिज कर दिया, जिनमें फ्रांसीसी कंपनी डसॉल्ट से 36 राफेल विमान खरीदने के लिए रक्षा सौदे में भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच करने की मांग की गई थी। संस्मरण में, गोगोई ने अफसोस जताया कि इस फैसले पर व्यापक और हिंसक हमला किया गया।उच्चतम न्यायालय न्यायालय ने राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर अनुच्छेद 32 शक्तियों के संकीर्ण दायरे का हवाला देते हुए अधिकार क्षेत्र को अस्वीकार कर दिया, लेकिन इसने विवादास्पद बिंदुओं पर एक निर्णायक निर्णय दिया और एक पूर्ण जांच को निरस्त करते हुए भी सौदे का समर्थन किया।

मामले का फैसला कैसे हुआ, इस बारे में गोगोई अपने संस्मरण में कहते हैं कि  न्यायिक निर्णय न्यायालय के समक्ष लाई गई सामग्री के आधार पर दिए जाते हैं, न कि किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह की धारणाओं या अपेक्षाओं के आधार पर। इसी तरह राफेल का निर्णय लिया गया था।

इस संदर्भ में, यह ध्यान रखना दिलचस्प होगा कि मुख्य निर्णय ने स्वीकार किया कि सौदा प्रक्रिया में कुछ प्रक्रियात्मक अनियमितताएं थीं, लेकिन उन्हें मामूली विचलन के रूप में छोटा कर दिया। याचिकाकर्ताओं का मामला यह था कि भ्रष्टाचार के आरोपों के संदर्भ में अनियमितताओं की गहन जांच की आवश्यकता है। हालांकि जांच की दलील को सौदे के गुण-दोष के आधार पर एक मुकदमे में बदल दिया गया था, और अदालत के सामने लाए गए सीमित सामग्रियों के आधार पर, इसने अनुच्छेद 32 के तहत एक संकीर्ण अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए सौदे का समर्थन किया। इसी तरह राफेल का फैसला किया गया था।

मुख्य निर्णय ने यह रिकॉर्ड करके भी एक गंभीर गलती की थी कि सौदे की सीएजी रिपोर्ट की लोक लेखा समिति द्वारा जांच की गई है, हालांकि निर्णय की तारीख के अनुसार सीएजी रिपोर्ट को संसद के समक्ष रखा जाना बाकी था। साथ ही, फैसले ने मुकेश अंबानी के स्वामित्व वाली कंपनी का गलत संदर्भ दिया (जबकि मामला अनिल अंबानी की कंपनी से संबंधित था)। समीक्षा में, न्यायालय ने इन गलत संदर्भों को निर्णय से हटाने का निर्देश देते हुए कहा कि अंतिम निष्कर्ष उन पर आधारित नहीं थे।

जस्टिस केएम जोसेफ ने समीक्षा में अपने अलग फैसले में, कुछ हद तक असंगत टिप्पणी की, यह देखते हुए कि याचिकाकर्ताओं ने अन्यथा एक मामला बना दिया है,लेकिन कोर्ट भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17ए के तहत मंजूरी के अभाव में जांच का आदेश नहीं दे सकता है। जस्टिस जोसेफ ने कहा कि फैसला सीबीआई को कानून के मुताबिक शिकायत पर कार्रवाई करने से नहीं रोकेगा।जबकि गोगोई ने अपने संस्मरण में कहा है कि निर्णय सर्वसम्मत था, वह जस्टिस जोसेफ द्वारा की गई इन टिप्पणियों के संदर्भों को छोड़ देते हैं।

उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए अपनी इस कार्रवाई की व्याख्या की। फैसले में कहा गया था कि हमारे सामने जो चुनौती है। उसकी छानबीन हमें राष्ट्रीय सुरक्षा के दायरे में करनी होगी क्योंकि इन विमानों को हासिल करने का मामला देश की संप्रभुता की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है।

यह कोई भी अंदाजा लगा सकता है कि कैसे विमानों की कीमतों का ब्यौरा जाहिर करना राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा पैदा कर सकता है। वस्तुतः पीठ ने उन याचिकाओं को, जिनमें सरकार पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाते हुए जांच की मांग की गई थी, याचिका में उठाए गए प्रमुख मुद्दों की विस्तृत छानबीन किए बिना खारिज कर दी।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल इलाहाबाद में रहते हैं।)

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