Friday, March 29, 2024

अग्निपथ के खिलाफ सड़कों पर उत्तराखंड की महिलाएं

वर्ष 1994 के उत्तराखंड आंदोलन के तात्कालिक कारणों का विश्लेषण करें तो यह वास्तव में रोजगार से जुड़े मुद्दे को लेकर शुरू हुआ था। हालांकि अलग राज्य का मुद्दा आजादी के पहले से उठता रहा था और कई बार छिटपुट आंदोलन, पदयात्राएं आदि भी आयोजित किये गये थे। लेकिन, 1994 में अलग राज्य आंदोलन एक स्वतःस्फूर्त आंदोलन तब बन पाया, जब यह रोजगार से जुड़ा। दरअसल उत्तर प्रदेश की तत्कालीन सरकार ने सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण की नई व्यवस्था की थी। आरक्षण की सीमा इस क्षेत्र में रह रहे एससी वर्ग के लोगों की तुलना में काफी ज्यादा थी। ऐसे में इस क्षेत्र के युवाओं को लगा कि आरक्षण के नाम में राज्य के मैदानी क्षेत्रों के लोगों को नौकरियां दी जाएंगी और उनके लिए अवसर कम हो जाएंगे। इस व्यवस्था के खिलाफ छात्रों ने आंदोलन शुरू किया। देखते ही देखते यह आंदोलन अलग राज्य आंदोलन के रूप से पूरे राज्य में फैल गया और देश में हुए सबसे बड़े जन आंदोलनों में उत्तराखंड राज्य आंदोलन का नाम भी जुड़ गया। 

देहरादून घंटाकर पर पुलिस से भिड़ती महिलाएं।

यह बात बार-बार दोहराई जाती है कि उत्तराखंड राज्य आंदोलन को आगे बढ़ाने और इसे मुकाम तक पहुंचाने में उत्तराखंड की मातृशक्ति की महत्वपूर्ण भूमिका थी। दरअसल आंदोलन तेज होने के साथ राज्य की महिलाओं को महसूस होने लगा था कि अब इस आंदोलन में उनका उतरना जरूरी है। ऐसे में देहरादून में उत्तराखंड महिला मंच का गठन किया गया और राज्यभर में महिलाओं को इस बैनर के नीचे एकत्रित किया गया। देखते ही देखते यह मंच उत्तराखंड आंदोलन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया। जहां कहीं प्रदर्शन होते, उत्तराखंड महिला मंच के बैनर तले महिलाओं के समूह आंदोलन की अगुवाई करता नजर आता। 2 अक्टूबर,1994 को मुजफ्फरनगर में दिल्ली जा रहे प्रदर्शनकारियों पर उत्तर प्रदेश पुलिस ने जो जुल्म ढाया, उसकी सबसे ज्यादा शिकार महिलाएं ही हुईं। यह घटना इस बात का प्रमाण है कि उत्तराखंड आंदोलन में महिलाएं न सिर्फ बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रही थीं, बल्कि वे आंदोलन में सबसे आगे खड़ी थीं।

उत्तराखंड राज्य निर्माण के बाद भी उत्तराखंड महिला मंच जनहित के मुद्दों पर आवाज उठाता रहा है। इस बार जबकि अग्निपथ योजना के नाम पर उत्तराखंड के युवाओं के रोजगार पर सबसे ज्यादा असर पड़ने वाला है तो उत्तराखंड महिला मंच एक बार फिर सड़कों पर है। उत्तराखंड पृथक राज्य आंदोलन के बाद संभवतः यह पहला मौका है, जब देहरादून की सड़कों पर पुलिस के साथ महिलाओं की झड़पें देखने को मिलीं और पुलिस के तमाम प्रयासों के बाद भी महिलाओं ने राजपुर रोड और घंटाघर चौक जैसी बेहद व्यस्त जगहों पर जाम लगा दिया। उत्तराखंड आंदोलन में अग्रिम पंक्ति पर रही महिलाओं की उम्र हालांकि अब ढलान पर है, लेकिन उनमें आज भी उतना ही जोश और जज्बा है, जो 18 वर्ष पहले था। युवाओं से रोजगार के अवसर छीन लिये जाएं, वे इसे किसी भी हालत में बर्दाश्त करने के लिए तैयार नहीं हैं।

थाली बजाकर और जनगीत गाकर किया अग्निपथ योजना का विरोध।

दरअसल उत्तराखंड एक सैन्य बहुल प्रदेश है। सेना में राज्य के सैनिकों और सैन्य अधिकारियों का आंकड़ा देखा जाए तो आबादी के अनुपात में उत्तराखंड सबसे ज्यादा सैनिक और सैन्य अधिकारी देने वाले राज्यों में शामिल है। इस राज्य के 80 प्रतिशत से ज्यादा युवा सेना में जाने के सपने देखते हैं और छोटी उम्र से ही तैयारियां शुरू कर देते हैं। राज्य के कस्बों, गांवों और शहरों में आप सुबह-सुबह युवाओं को खेतों, सड़कों और मैदानों में दौड़ लगाते या दंड बैठक करते देख सकते हैं। सेना में जाने के इच्छुक इन युवाओं का एक बड़ा हिस्सा अपने सपने साकार करने में सफल भी हो जाता है और बाकी का हिस्सा सरकारी या प्राइवेट नौकरियों में जाने के प्रयास करता है। जो युवा नौकरियों में नहीं जा पाते, वे अपने लिए कोई छोटा-मोटा धंधा तलाश लेते हैं।

अब जबकि केन्द्र सरकार ने अपनी अग्निपथ योजना के तहत सेना में नौकरी की अवधि 4 वर्ष कर दी है तो जाहिर है उत्तराखंड युवाओं के सपनों की उड़ान अचानक रुक गई है। ऐसे में युवाओं का नाराज होना स्वाभाविक है। हालांकि भारतीय जनता पार्टी के प्रभाव में अब भी राज्य की आबादी का एक हिस्सा इस नयी योजना के गुणगान कर रहा है, लेकिन अंदर ही अंदर सभी महसूस करने लगे हैं कि राज्य के युवाओं के एक बड़े हिस्से के साथ यह बड़ा अन्याय है। युवाओं का भविष्य दांव पर लगा हो तो भला राज्य के लिए एक बड़ा आंदोलन खड़ा करने वाली महिलाएं कैसे चुप रह सकती हैं? यही वजह है कि उत्तराखंड राज्य हासिल करने में अग्रणी भूमिका निभाने वाली राज्य की महिलाओं ने अब अग्निपथ योजना के विरोध आंदोलन को अपने हाथ में ले लिया है। 

सोमवार, 27 जून को उत्तराखंड महिला मंच के बैनर तले बड़ी संख्या में महिलाएं देहरादून में गांधी पार्क के बाहर एकत्रित हुईं। स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया, भारत ज्ञान विज्ञान समिति, जन संवाद समिति, सीपीएम जैसे संगठनों और राजनीतिक दलों ने भी महिलाओं के इस प्रदर्शन को समर्थन दिया। महिलाएं अपने घरों से थाली लेकर प्रदर्शन में पहुंची। उन्होंने थाली बजाकर, नारे लगाकर और जनगीत गाकर प्रदर्शन किया। महिला मंच ने प्रशासन से किसी अधिकारी को ज्ञापन लेने के लिए प्रदर्शन स्थल पर भेजने के लिए कहा था। प्रशासन की ओर से इसके लिए हामी भी भरी गई थी। लेकिन, निर्धारित समय बीत जाने के बाद भी कोई अधिकारी मौके पर नहीं पहुंचा तो महिलाओं का गुस्सा छलक पड़ा। महिलाओं ने राजपुर रोड को घेरकर मार्च शुरू कर दिया। इससे राजपुर रोड पर लंबा जाम लग गया।

महिलाओं और उनके साथ मौजूद अन्य प्रदर्शनकारियों ने शहर के सबसे व्यस्ततम चौक घंटाघर पर पहुंचकर जाम लगा दिया। बिना किसी पूर्व सूचना के लगाये गये इस जाम को देखकर प्रशासन और पुलिस हरकत में आये। पुलिस ने महिलाओं को सड़क से हटाने की कोशिश की तो महिलाओं और पुलिस के बीच तीखी झड़प हुई। इस दौरान महिलाएं इतने गुस्से में थीं कि एक बार फिर घंटाघर चौक पर 1994 जीवित हो गया। 1994 में भी घंटाघर चौक प्रदर्शनकारियों का टारगेट रहता था और दिन में कई बार इस चौक को जाम कर दिया जाता था। 

कांग्रेस ने सत्याग्रह कर किर्या अिग्नपथ योजना का विरोध।

बाद में तहसीलदार ज्ञापन लेने मौके पर पहुंचे, लेकिन नाराज महिलाओं ने उन्हें जमकर खरी-खोटी सुनाई। महिलाओं का कहना था कि अधिकारियों की जनता के प्रति इसी लापरवाही से आज राज्य की ये हालत हुई है। बाद में तहसीलदार को मुख्यमंत्री के नाम लिखा गया ज्ञापन सौंपा गया। ज्ञापन में मुख्यमंत्री को याद दिलाया गया कि उत्तराखंड एक सैन्य बहुल राज्य है और यदि सेना में 4 वर्ष के लिए अग्निवीर व्यवस्था की गई तो यह राज्य के युवाओं के साथ धोखा होगा। ज्ञापन में मुख्यमंत्री से उम्मीद की गई है कि वे प्रधानमंत्री को पत्र लिखेंगे और उत्तराखंड में युवाओं की स्थिति का हवाला देते हुए उन्हें इस योजना को वापस लेने के लिए कहेंगे। ज्ञापन में यह भी कहा गया है कि मुख्यमंत्री राज्य में संविदा और अस्थाई नियुक्तियों का सिलसिला बंद करेंगे और सरकारी विभागों में स्थाई नौकरियां देने की व्यवस्था लागू करेंगे।

उत्तराखंड में फिलहाल अनेक संगठन और राजनीतिक पार्टियां अग्निपथ के खिलाफ अलग-अलग आंदोलन कर रही हैं। 27 जून को ही कांग्रेस की ओर से देहरादून सहित राज्य के सभी जिला और तहसील मुख्यालयों पर इस योजना के विरोध में सत्याग्रह किया गया। इससे पहले किसान सभा की ओर से राज्यभर में धरना-प्रदर्शन किया गया। एसएफआई भी उन सभी शहरों में प्रदर्शन कर चुकी है, जहां उनका संगठन सक्रिय हैं। भाकपा माले इस योजना का पुरजोर विरोध कर चुकी है। उत्तराखंड महिला मंच की अध्यक्ष कमला पंत का मानना है कि अब समय आ गया है, जब अपने-अपने स्तर पर छोटे-छोटे समूहों में आंदोलन कर रहे लोगों को उत्तराखंड आंदोलन की तरह एकजुट होकर अपनी आवाज बुलंद करनी चाहिए। यदि ऐसा नहीं किया गया तो आने वाले समय में अग्निपथ जैसी कई दूसरी योजनाएं भी प्रधानमंत्री के पिटारे से निकलने को तैयार हैं।

उत्तराखंड में युवाओं का वह वर्ग फिलहाल आंदोलन में नजर नहीं आ रहा है, जो इस योजना से सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है। दरअसल यहां पुलिस ने एक ऐसी रणनीति अपनाई, जिससे सेना में जाने के इच्छुक युवाओं का यह वर्ग डरा हुआ है। देशभर में अग्निपथ के खिलाफ आंदोलन शुरू होने के बाद उत्तराखंड पुलिस ने सबसे पहले यह कदम उठाया कि उन सभी जगहों पर जाकर युवाओं को आगाह किया जहां सुबह और शाम को युवा फौज में जाने की तैयारी करते हैं। उन्हें चेतावनी दी गई कि इस तरह के आंदोलन में हिस्सा लेंगे तो उनके खिलाफ मुकदमे दर्ज हो जाएंगे और फिर तो वे फौज ही क्या, किसी दूसरी नौकरी में भी नहीं जा पाएंगे। पुलिस ने तमाम कोचिंग सेंटर्स पर जाकर भी यही किया। ऐसे में अग्निपथ विरोधी आंदोलन में ये युवा पहुंचते तो हैं, लेकिन मुख्य प्रदर्शन स्थल से दूरी बनाकर रखते हैं।

(देहरादून से पत्रकार और एक्टिविस्ट त्रिलोचन भट्ट की रिपोर्ट।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles