महिला श्रमिक हितैषी भाजपा, दावे और सच्चाई

भाजपा बिहार की महिला श्रमिकों की हितैषी होने का दावा कर रही है और कह रही है कि एनडीए महिला श्रमिकों का भरपूर ख्याल रख रही है। इस दावे की पुष्टि के लिए भाजपा ने अपने अधिकारिक ट्विटर हैंडल से एक पोस्टर ट्वीट किया है, जिसमें मजदूर औरतों के हीटवेव इंश्योरेंस आदि की बात की गई है। ये योजना समस्त बिहार में लागू भी नहीं है, बल्कि सिर्फ आठ ज़िलों में ही पायलट प्रोजेक्ट लागू हैं। लेकिन इस आधी-अधूरी योजना के जरिये भाजपा असंगठित क्षेत्र में काम करने वाली महिला मजदूरों का भरपूर ख्याल रखने का मुकम्मल दावा कर रही है। 

भाजपा ये नहीं बता रही कि बिहार में महिला मज़दूरों की स्थिति क्या है और भाजपा ने उनके काम की परिस्थितियां सुधारने के लिए क्या किया है? ये जानने के लिए हमें सबसे पहले समझना होगा कि बिहार में महिला श्रमिकों की कार्य-बल में भागीदारी क्या है? कार्य-स्थल पर परिस्थितियां क्या है? क्या कोई सोशल सिक्योरिटी है और महिला-पुरुष भुगतान में अंतर क्या है?  

कार्य-बल में महिलाओं की भागीदारी

बिहार आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 के अनुसार बिहार में लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट (LFPR) मात्र 32 है, जो राष्ट्रीय औसत 45.2 से काफी कम है। बिहार में पुरुषों में LFPR 78.5 है। कार्य-बल में महिलाओं की भागीदारी के मामले में बिहार देश में नीचे से दूसरे पायदान पर है। यही हाल work Population Ratio (WPR) में है, इस मामले में भी बिहार नीचे से दूसरे पायदान पर है। बिहार में WPR पुरुषों में 75.3% तथा महिलाओं में 31.5% है।

नेशनल फैमिली हैल्थ सर्वे के अनुसार बिहार में ऐसी महिलाएं, जिन्होंने पिछले 12 महीनों में कार्य किया हो और उसके बदले उन्हें पैसे से भुगतान किया गया हो, ऐसी महिलाएं मात्र 12.6% हैं। ये आंकड़े बता रहे हैं कि बिहार में महिलाओं की कार्य-बल में भागीदारी चिंताजनक है।

जो महिलाएं कार्य-बल में भागीदार हैं, वो किस क्षेत्र में काम कर रही हैं? ये जानना भी महत्वपूर्ण है ताकि सरकार के दावों और प्रयासों की स्थिति ठीक-ठीक सामने आ सके। बिहार में 82.1% महिलाएं कृषि, वन और मत्स्य पालन में कार्यरत हैं। दूसरा बड़ा क्षेत्र मैनुफैक्चरिंग है जिसमें 7.2% महिलाएं कार्यरत हैं और तीसरे नंबर पर होलसेल, रिटेल और रिपेयर है जहां 4.1% महिलाएं कार्यरत हैं। यानी कृषि वो सबसे बड़ा क्षेत्र है जिसमें महिलाएं कार्य कर रही हैं। गौरतलब है कि कृषि क्षेत्र में कार्य करने वालों को self employed की श्रेणी में माना जाता है। सरकार को बताना चाहिए कि क्या कृषि का रोजगार सरकार ने पैदा किया है?

भुगतान में भेदभाव और काम की परिस्थितियां

बिहार में एक self employed पुरुष (इसमें कृषि भी शामिल हैं) की औसत मासिक आमदनी 18583 है जबकि महिलाओं की 8342 है। ये आंकड़ा बता रहा है कि स्त्री-पुरुष आमदनी में दोगुना से ज्यादा अंतर है। यानी भाजपा समान काम के लिए समान वेतन जैसे बुनियादी अधिकार को सुनिश्चित करने में असफल रही है।

जो महिलाएं डेली वेजेज या सैलरी पर काम करती हैं, उनकी परिस्थितियां भी भयावह हैं। आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार बिहार की 49.5% महिला कर्मियों के साथ कोई लिखित अनुबंध नहीं किया जाता है। जिसकी वजह से वो ना सिर्फ अनिश्चितता के अंधकार में रहती हैं, बल्कि उनके शोषण की संभावनाएं भी खुल जाती हैं। बिहार की 48.3% महिलाएं पेड लीव नहीं ले सकती। बिहार की 48.9% महिला कर्मियों को कोई सोशल सिक्योरिटी लाभ नहीं मिलता है।

ये तमाम सरकारी आंकड़े और रिपोर्ट बता रही हैं कि बिहार में महिला श्रमिकों की स्थिति क्या है और भाजपा के दावों में कितनी सच्चाई है।

(राज कुमार स्वतंत्र पत्रकार एवं फ़ैक्ट-चेकर हैं।)

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