अपने आप को सीज़फायर ग्रेट बनाने में लगे डोनाल्ड ट्रम्प का इरादा केवल नोबेल शांति पुरस्कार पाने का ही नहीं है बल्कि उनके इरादे नेक नहीं हैं इसलिए वे एक अवतारी पुरुष की तरह अवतरित होकर सीज़फायर करने प्रकट हो जाते हैं।
पहलगाम की कथित आतंकी घटना के बाद जब भारत के प्रधानमंत्री पाकिस्तान को सूचित करते हुए आतंकी ठिकानों जो अधिकृत कश्मीर में है, हमला करते हैं। तब सारे आतंकी पाक सरकार की सूचना पाते ही उस क्षेत्र से निकल जाते हैं उनके परिवार ही वहां बचते हैं इसलिए भारतीय हमले में वो मारे नहीं जाते हैं।
भारतीय सेना अधिकृत कश्मीर को लेकर ही सिंदूर आपरेशन ख़त्म करने के लिए आगे बढ़ती है।तब अमेरिका भारत के प्रधानमंत्री और पाकिस्तान को आदेशित करते हैं सीज़फायर करो वरना आपके व्यापार को बंद कर दिया जाएगा। इसे सुनते ही दोनों देश जो अमेरिका के कथित तौर पर परम मित्र कहलाते हैं। आदेश का परिपालन करते हैं। इधर भारतीय सेनाएं और देशवासी नाखुश नज़र आते हैं। सिंदूर आपरेशन की यह समाप्ति सबको दुखित कर देती है।
सवाल ये उठता है कि दो देशों के बीच होने वाले युद्ध में अमेरिका क्यों कूदा और चौधरी बनकर आदेश लागू कराया। जबकि शिमला समझौते के मुताबिक यह लिखित विधान था कि दोनों देश अपने मामले मिल बैठकर सुलझाएंगे किसी तीसरे देश का हस्तक्षेप मान्य नहीं होगा।
इस सबके बावजूद यह हुआ जिससे भारत की छवि अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर धूमिल हुई। भारत के अमेरिका की ओर झुकाव की बदौलत ही भारत पाक युद्ध पर किसी देश का समर्थन नहीं मिला।
अब यह समझने की बात है कि ट्रम्प ने सीज़फायर के लिए भारत पर दबाव सिर्फ व्यापार की धमकी देना नहीं है बल्कि वह चाहता है कि अधिकृत कश्मीर भारत के पास पहुंचने ना पाए। यदि यह पहुंच गया तो पाकिस्तान और भारत के बीच युद्ध समाप्त हो सकता है। फिर उन हथियारों का क्या होगा जो वह दोनों देशों को बेचता है। मोदी जी कहते रह गए कि उनके लहू में व्यापार है किंतु अमेरिका की चाणक्य नीति के आगे वे फेल हैं। मोदीजी को अपनी गिरफ्त में लेकर अमेरिका ने भविष्य का बड़ा खेल रचा है।
ठीक इसी तरह अमेरिका इज़राइल से ईरान में परमाणु बन ना बनाने देने के लिए युद्ध भड़काया। वह इराक की तरह इस बहाने ईरान में सत्ता परिवर्तन और तेल भंडारों को हथियाने की तैयारी में था। लेकिन दांव उल्टा पड़ गया। ईरान ने जिस तरह अपने देश में बने अस्त्रों से इजराइल को राख के ढेर में तब्दील करने का संकल्प लिया था।
वह पूरा होते देख अमेरिका ने दग़ाबाज़ी करते हुए ईरान के परमाणु बम बनाने की तैयारी में लगे तीनों क्षेत्रों पर जमकर मार की जिससे उनके इस अभियान को ठेस ज़रूर लगा होगा किंतु वे दुगुनी ताकत से जुट गए हैं। इज़राइल की बर्बादी होते देखना और अपने अस्त्रों को पिटते देख उसने फिर करवट बदली और यह कहकर कि उसने ईरान के परमाणु बम निर्माण केंद्र समाप्त कर दिए हैं लक्ष्य पूरा हो गया है। अब दोनों देश सीज़फायर कर लें। उसका उल्लंघन पहले इज़राइल किया उसके जवाब में ईरान ने फिर बड़ा हमला किया। इज़राइल घबरा गया और तब उसने हमले रोके। उसके चौबीस घंटे बाद युद्ध विराम हो गया।
डोनाल्ड ट्रम्प ने ईरान के साथ बड़ी सहानुभूति भी जताई। लेकिन इसकी गहराई समझने की ज़रूरत है भारत-पाक की तरह वह दोनों देशों में अब सहयोग बढ़ाएगा व मूल रूप से अपने हथियारों की बिक्री जारी रखने में दिलचस्पी लेगा।
यहां यह कहना मुश्किल है कि ईरान इस जीते युद्ध के बाद अपने जमीर को बेच अमेरिका की ओर झुकेगा। क्योंकि अब उसकी ताकत में अपार रूप से वृद्धि हुई है तमाम मुस्लिम देशों में रहने वाले शिया-सुन्नी एक हुए हैं। रुस चीन का सहयोग ईरान के साथ है भारत में सीधे नहीं किंतु जनता-जनार्दन उसके साथ है। वह निश्चित तौर पर परमाणु शक्ति सम्पन्न राष्ट्र बनेगा।
परास्त होता अमेरिका टुकुर-टुकुर सब देख रहा है उसकी नियति ही है वह दुनिया में युद्ध देखना चाहता है। क्योंकि वह पेंटागन को खुश रखना चाहता है। जिससे वहां खुशहाली आती है।
इसलिए यह कदापि ना सोचिए कि भारत-पाक, इज़राइल-ईरान, यूक्रेन-रुस युद्ध ख़त्म हो जाएगा। सीज़फायर के ज़रिए अपने हथियारों का जखीरा इन राष्ट्रों को बेचने का व्यापार और दबंगई के ज़रिए नोबेल शांति पुरस्कार को हथियाने के ये प्रयास हैं। विभिन्न देशों को अमेरिका की इस कटु राजनीति को समय रहते समझ लेना चाहिए। दुनिया में ईरान की इस बढ़त से नए समीकरण बन रहे हैं। उम्मीद है यह दुनिया को वास्तव में शांति की राह दिखाएगा।
(सुसंस्कृति परिहार लेखिका और एक्टिविस्ट हैं।)