महिलाओं की असुरक्षा, अपमान और बढ़ती यौन हिंसा से सरकार की कमज़ोरी उजागर 

राजनीति के गलियारे आजकल ‘बेटी पढ़ाओ और बेटी बचाओ’ से नहीं गूंजते उनकी जगह बलात्कारियों की खबरें चटकारे लेकर सुनाई जाती हैं। आजकल फौजी आपरेशन सिंदूर को महिलाओं को रिझाने में प्रयोग किया जा रहा है ऐसा करना फौज की काबिलियत का राजनैतिक दुरुपयोग है।

लगता है, सत्तारूढ़ पार्टी के सदस्य जिस तरह बलात्कार और महिला अपमान जैसे मामलों में रिकॉर्ड बना रहे हैं वह महिलाओं के विकास में बाधक है। यह सत्य है कि अब महिलाएं किसी राजनीतिक से मदद लेने जाने में संकोच करने लगी हैं। इससे कहीं ऐसा ना हो जाए कि उनकी जनप्रतिनिधियों के ज़रिए अपनी बात पहुंचाने का अधिकार ही धीरे-धीरे जाता रहे।

कहा जाता है कि जब देश का मुखिया अपनी पत्नी के साथ क्रूर हो सकता है तो वे इस वासना में डूबी नेताओं की फौज पर कैसे हमलावर हो सकते हैं। शायद यही वजह कि मनोहर लाल धाकड़ जैसे लोग सड़क पर काम लीला खुलकर करने का आनंद लेते हैं। बिल्किस बानो के बलात्कारियों का सम्मान होता है। सांसद बृजभूषण सिंह जैसे लोग राष्ट्र का गौरव बढ़ाने वाले महिला पहलवानों को ख़ून के आंसू पीने के लिए मज़बूर करते हैं और उनके यौन हिंसा प्रताड़ना के मामले खारिज होते हैं।

कश्मीर की नन्हीं आसिफ़ा के साथ एक मंदिर में जो दरिंदे हैवानियत कर उसे मौत के घाट उतार देते हैं उनमें वही लोग थे जो इस पार्टी के पैरोकार थे इसलिए उनके बचाव में तिरंगा यात्रा निकाली गई। आज जब ये तिरंगा यात्रा निकालते हैं तो तकलीफ होती है क्योंकि ये तिरंगे का अपमान करने के दोषी हैं। ये कुछ ऐसे गंभीर मामले हैं जो यह बताते हैं कि ये लोग मनुवादी हैं और स्त्री यौन शोषण को अपना अधिकार मानते हैं और आन बान शान से अपना दबदबा बनाते हुए सम्मानित होते हैं।

हाल ही में कर्नल सोफिया कुरैशी, आईएएस अफसर फौजिया तरन्नुम और लोकगायिका नेहा सिंह राठौर को जिस तरह इन भद्दे लोगों ने ट्रोल किया वह चिंताजनक है। शर्म आती है यह बताते हुए कि इन मामलों में मध्यप्रदेश सरकार के कैबिनेट मंत्री विजय शाह और कर्नाटक के भाजपा के एमएलसी रविकुमार शामिल हैं। यह दर्शाता है कि ऐसे मामलों में जिन्हें बर्खास्त होना था उन्हें संरक्षण मिला हुआ है।

आइए अब बात करते हैं संघ की उस टुकड़े-टुकड़े गैंग के एक शाखा प्रमुख श्रीराम सेना के प्रमोद मुथालिक के उन विचारों पर जो खुलेआम कहे जाते हैं और उन पर कोई कार्रवाई नहीं होती वे कहते हैं कि “एक हिंदू लड़की के बदले दस मुस्लिम लड़कियों को फंसाओ। सुरक्षा और रोजगार हम देंगे।” इस तरह के विचारों का प्रवाह बहुत से धर्मान्ध लोगों द्वारा भी होता है।

इससे यह ज्ञात होता है कि हिंदू-मुस्लिम प्रेम के ख़िलाफ़ नफ़रती भावना समाज में विकसित की जा रही है। यदि ऐसे लोगों पर कार्रवाई होती तो ये दुर्दिन हमें ना देखने पड़ते। यह कहते हुए दुख होता है कि इससे बेहतर सोच तो आतंकी जनरैल भिंडरावाले की थी जो यह कहता था कि “लड़की किसी भी धर्म की हो उसके साथ बलात्कार करने वाले को जहन्नुम में पहुंचा दो। बाकी मैं देख लूंगा “

एक आतंकी की सोच और श्रीराम सेना के सदस्य की सोच जो बात कहती है वह आतंकी को ऊंचाई प्रदान करती है। जबकि दूसरी सोच ना केवल श्रीराम सेना का नाम बदनाम करती है बल्कि सामाजिक सद्भाव को भी क्षति पहुंचाती है। देश में वैमनस्य को बढ़ाती है इसे गंभीरता से लेना होगा। ऐसे संगठन और नेताओं पर यदि सख़्ती नहीं बरती जाती तो इन्हें सामाजिक आतंकी घोषित नहीं किया जाता उनका सामाजिक बहिष्कार नहीं होता है, तो देश की महिलाओं का भविष्य फिर अंधकार में चला जायेगा।

इन नियोजित महिला विरोधी हमलों से सबको सावधानी बरतनी चाहिए। आने वाले दिनों में महिलाओं के दिलों में मरहम लगाने वाली बहनों को सिंदूर घर-घर भेजा जायेगा। सिंदूर भारतीय महिला के लिए बेशकीमती चीज़ है। यह जानते हुए ये नया प्रलोभन ना केवल इलेक्शन के लिए है बल्कि यह पुलवामा और पहलगाम में शहीद हुए जवानों की मौत को भुलाने का उपक्रम है। सिंदूर भला दूसरा कैसे किसी महिला को दे सकता है। यह तो सिर्फ पति का हक बनता है। ये सच्चाई समझें। यह खतरे की घंटी है। अपने स्वाभिमान और अस्मिता के लिए प्रतिबद्ध हुए बिना शोषण के इन तरीकों से निपटान नहीं हो सकता है। जागना ज़रूरी है।

मनुवादी अच्छी तरह से स्त्री मन की संवेदना का इस्तेमाल काफी समय से कर रहे हैं। लाडली बहिन को पहले हर महीने राशि प्रदान कर दिल जीता गया। अब सिंदूर का सहारा लिया जा रहा है। आपरेशन सिंदूर में सरकार की विदेशों में थू- थू होने और 26 मौतों के जिम्मेदार आतंकी ना पकड़े जाने के ग़म को भुलाकर घर-घर सिंदूर भेजने की जो योजना बनाई है उससे शहीद सैनिकों की पत्नियों को भी कष्ट पहुंचाया जा रहा है लेकिन इससे मोदी जी को कुछ लेना-देना नहीं वे तो अपने वोट के लिए सम्मोहक जाल बुन रहे हैं।

माता अहिल्या होलकर की 300वीं जयंती पर महिलाओं को महत्व देने का एक नया इवेंट हो रहा है जिसमें मंच से लेकर सुरक्षा तक के तमाम कार्य महिलाएं सम्पादित करेंगी। बड़ी संख्या में महिलाओं को लाया जाएगा। जिससे वे मोदी जी की जय जयकार करें और इस इवेंट से खुश हो जाएं। यहां एक सवाल दिल में उठता है कि क्या चीफ़ गेस्ट राष्ट्रपति मुर्मू या वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण नहीं हो सकती थीं। लेकिन इसका श्रेय फिर मोदी जी को कैसे मिल पाता। महिलाओं के बीच एकमात्र मोदी जी! धन्य हैं आप।

कुल मिलाकर आपरेशन सिंदूर की असफलता की नाकामी छिपाने और देश में महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराध की तादाद को ढकने के ये बचकाने प्रयोग हैं। ये यह संकेत देते हैं कि महिलाओं के प्रति इस सरकार में सबसे जघन्य अपराध हुए हैं।

(सुसंस्कृति परिहार लेखिका और एक्टिविस्ट हैं।)

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