आरपीएन के कांग्रेस छोड़ने से नहीं आएगा जमीनी स्तर पर कोई बदलाव

यूपी विधान सभा चुनाव के दौरान प्रमुख दलों के नेताओं के पाला बदलने के चल रहे खेल के बीच गणतंत्र दिवस के एक दिन पूर्व भाजपा नेतृत्व उत्साहित नजर आया। कांग्रेस पार्टी के कद्दावर नेता आरपीएन सिंह के दल से नाता तोड़ने को लेकर इधर कुछ माह से चल रही चर्चा पर विराम लग गया। सुबह कांग्रेस पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से आरपीएन सिंह के इस्तीफे की खबर व दोपहर बाद भाजपा की सदस्यता लेने की सूचना मीडिया में छायी रही। इसके बाद चर्चा शुरू हुई, उनके दल छोड़ने से किसको कितना लाभ मिलेगा व किसको इसका नुकसान उठाना पड़ेगा। मेन स्ट्रीम मीडिया इसको लेकर भाजपा के हित में चाहे जितना भी राग अलापती रहे, पर आरपीएन सिंह को करीब से जानने वालों ने न कोई आश्चर्य व्यक्त किया और न ही किसी खास दल व समाज को लाभ लेने की उम्मीद ही जताई।

गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राहुल गांधी की टीम में प्रमुख चेहरा रहे आरपीएन सिंह ने बीजेपी का दामन थाम लिया। कांग्रेस के स्टार प्रचारकों में शामिल होने के चलते आरपीएन सिंह के बीजेपी में जाने की बात बड़ी खबर बनती ही है। यह बात शुरू हुई कि स्वामी प्रसाद मौर्य को तोड़कर सपा ने जो झटका दिया था उसका कसर अब आरपीएन को तोड़ कर भाजपा ने पूरी कर ली है। जिसका असर पूर्वांचल की कुछ सीटों पर पड़ सकता है।

भाजपा के लोगों का कहना है कि पडरौना राजघराने से आने वाले आरपीएन के जरिए बीजेपी एक तीर से दो निशाना साधने का काम की है। बीजेपी उन्हें स्वामी प्रसाद मौर्या के खिलाफ पडरौना से उतार सकती है। इसके अलावा सपा से मुकाबले में जहां कम अंतर से बीजेपी को हार का डर सता रहा था, आरपीएन के आने से उसे कुछ बढ़त मिल सकती है। पूर्व केंद्रीय मंत्री आरपीएन सिंह ने पार्टी छोड़ने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को अपना इस्तीफा भेजने के साथ ट्विटर पर यह भी ऐलान कर दिया है कि वह नए सफर की शुरुआत करने जा रहे हैं। आज, जब पूरा राष्ट्र गणतंत्र दिवस का उत्सव मना रहा है, मैं अपने राजनैतिक जीवन में नया अध्याय आरंभ कर रहा हूं। जयहिंद। सोनिया गांधी को भेजे इस्तीफे में आरपीएन सिंह ने लिखा है कि वह कांग्रेस पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे रहे हैं। उन्होंने राष्ट्र और लोगों की सेवा करने का मौका देने के लिए सोनिया गांधी को धन्यवाद भी दिया है।

पूर्व केंद्रीय मंत्री आरपीएन सिंह का पूरा नाम कुंवर रतनजीत प्रताप नारायण सिंह है। जिन्हें यूपी की जनता पडरौना का राजा साहब कहती है। 25 अप्रैल 1964 को दिल्ली में जन्मे आरपीएन सिंह कुशीनगर के शाही सैंथवार परिवार से ताल्लुक रखते हैं। आरपीएन सिंह को राजनीति विरासत में हासिल हुई है उनके पिता कुंवर सीपीएन सिंह कुशीनगर से सांसद थे और कांग्रेस के वफादारों में गिने जाते थे। यूपीए सरकार में उन्होंने तब गृह राज्यमंत्री का पद भी संभाला जब 2009 में उन्होंने पहली बार लोकसभा चुनाव जीता था ,उन्हें कांग्रेस ने झारखंड का प्रदेश प्रभारी भी बनाया था। इसके बाद 2014 और 2019 में लोकसभा चुनाव लड़े। लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। पडरौना विधानसभा सीट से आरपीएन सिंह 1996, 2002 और 2007 में तीन बार कांग्रेस पार्टी से विधायक भी रह चुके हैं। आरपीएन सिंह 4 बार लोकसभा चुनाव में अपना भाग्य आजमा चुके हैं लेकिन सफलता सिर्फ एक बार मिली है।

खास बात यह है कि दो सप्ताह पूर्व योगी सरकार के मंत्री जिस स्वामी प्रसाद ने बीजेपी से नाता तोड़ा है आरपीएन सिंह भी उसी इलाके से आते हैं। आरपीएन सिंह पडरौना विधान सभा क्षेत्र के रहने वाले हैं। जहां से वे तीन बार विधायक रहे हैं।जहां से अब स्वामी प्रसाद मौर्य विधायक हुआ करते हैं। जबकि आरपीएन सिंह संसदीय चुनाव भी पड़रौना से ही लड़ते हैं। कल के भाजपाई स्वामी अब सपाई हो गए हैं व कल तक के कांग्रेसी आरपीएन अब भाजपाई हो गए हैं। ऐसे में दोनों बागियों का एक बार फिर यह कयास लगाया जा रहा है कि विधान सभा चुनाव में इसी सीट से आमना-सामना हो सकता है। हालांकि दोनों दलों ने इनके नाम की घोषणा नहीं की है।

अब बात करते हैं हानि व लाभ की। स्वामी प्रसाद मौर्य कुशवाहों के एक बड़े नेता हैं। जबकि आरपीएन सैंथवार कुर्मी से आते हैं। वरिष्ठ पत्रकार अनिल पाठक कहते हैं कि आरपीएन सिंह को राजनीति विरासत में मिली है। आरपीएन कभी भी स्थानीय राजनीति से नहीं जुड़े रहे हैं। सामान्य मामलों में स्थानीय लोगों की शिकायतों व समस्याओं से जुड़ने के बजाए वे हमेशा दूर ही रहे हैं।उन पर जातिवादी राजनीति का भी कभी आरोप नहीं लगा। ऐसे में एक बात तो तय है कि वे अपने जाती जनाधार के नेता नहीं हैं। दूसरी तरफ उनकी लोकप्रियता लगातार कम होने का नतीजा रहा है कि पिछले तीन संसदीय चुनाव से वे हार रहे हैं।हालांकि पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व से जुड़कर अपनी पहचान बनाने में कामयाब रहे हैं। लिहाजा कांग्रेस द्वारा हाल ही में घोषित किए गए अपने राष्ट्रीय प्रचारकों में उनका नाम भी शामिल कर रखा था। इसके अलावा संगठन की तरफ से उन्हें झारखंड का प्रभारी भी बनाया गया था।

कांग्रेस पार्टी के देवरिया जिले के कार्यकारी अध्यक्ष जयदीप त्रिपाठी कहते हैं कि आरपीएन सिंह के पार्टी छोड़ने से संगठन को कोई नुकसान नहीं होगा। ऐसे सरीखे नेताओं की पार्टी में अब दिन लद चुके हैं। पार्टी को बंद कमरे में बैठकर राजनीति करनेवाला नहीं संघर्ष में हमेशा खड़े रहनेवाले नेता की जरूरत है। अब पार्टी में संघर्षरत कार्यकर्ताओं को नेतृत्व उचित स्थान देकर उन्हें मुख्यधारा में शामिल कर रहा है। जिसका नतीजा है कि अब युवा हमारी पार्टी में तेजी से जुड़ रहे हैं। आरपीएन सिंह के भाजपा में जाने का असर पार्टी के कार्यकर्ताओं पर नहीं पड़ेगा। पार्टी संगठन भी कल तक कुशीनगर जिले में आरपीएन के महल तक सिमटा हुआ था।

आरपीएन के गृह जिले से आते हैं कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष

कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू कुशीनगर जिले के तमकुहीराज सीट से लगातार जीतते आ रहे हैं। कहा जाता है कि उन्हें कांग्रेस में लाने में आरपीएन सिंह का ही योगदान रहा है।लेकिन बाद के दिनों में लल्लू की बढ़ती पहचान ने दोनों के रिश्तों को कमजोर कर दिया। आरपीएन सिंह के चाहने वाले भले ही कहें कि आरपीएन की तुलना में लल्लू को नेतृत्व ने ज्यादा तवज्जो दिया, पर सच यह है कि आरपीएन का भी कांग्रेस नेतृत्व ने हमेशा कद बढ़ाया। पहली बार सांसद बनने पर यूपीए पार्ट टू में उन्हें मंत्री बनाया गया। गृह राज्य मंत्री,पेटोलियम मंत्री,भूतल परिवहन मंत्री जैसे प्रमुख विभाग भी दिया गया। मौजूदा समय में कांग्रेस शासित राज्य झारखंड का उन्हें पार्टी ने प्रभारी बनाया था। लेकिन सांगठनिक कारणों से झारखंड में हाल के दिनों में उन्हें विवाद का सामना भी करना पड़ा है। ज्योतिरादित्य सिंधिया के दल छोड़ने के बाद से ही उनके करीबी होने के कारण आरपीएन के भी जाने की चर्चा रही।

पेशे से चिकित्सक डा. आनंद राय ने टवीट कर कहा कि अजय लल्लू को आरपीएन सिंह नौकर की तरह ट्रीट करते थे। आरपीएन ने सम्मान जनक शब्दों का प्रयोग कभी भी नहीं किया। अब लल्लू कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष हैं। आरपीएन सिंह जैसे लोगों को यह राजनीति रास नहीं आई। एक भूजा बनाने वाला का बेटा यूपी कांग्रेस का अध्यक्ष है, जबकि तमाम राजा महाराजा की सेटिंग काम नहीं आ रही है।

पार्टी की राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय रहे आरपीएन सिंह राहुल गांधी के करीबियों में से रहे हैं। अक्सर अपनी टिप्पणियों की वजह से सुर्खियों में रहने वाले आरपीएन सिंह ने साल 2019 के चुनावी हलफनामे में अपनी संपत्ति 13 करोड़ इकतालीस लाख चालीस हजार बताई थी और कहा था कि उनकी पत्नी के पास दस करोड़ पचास लाख रुपए की संपत्ति है। आरपीएन के पास कुल 24 लाख रुपए के गहने और उनकी पत्नी के पास 31 लाख रुपए के गहने थे। आरपीएन सिंह ने कहा था कि कृषि उनका मूल पेशा है, जबकि उनकी पत्नी सोनिया सिंह की कमाई का जरिया पत्रकारिता है।

खास बात यह भी है कि वर्ष 2019 के संसदीय चुनाव के नतीजों को देखें तो आरपीएन सिंह को कुशीनगर सीट से हार मिली थी। लेकिन पडरौना विधान सभा क्षेत्र सीट से आरपीएन ने भाजपा के विजय दुबे से बारह हजार की बढ़त हासिल की थी। इस बार के विधान सभा चुनाव में कुशीनगर की सात सीटों में से तीन पर भाजपा व सपा की सीधी टक्कर की संभावना है। जिसमें हाटा सीट से सपा के कद्दावर नेता राधेश्याम सिंह के अलावा खड्डा व पड़रौना सीट पर सपा मजबूत टक्कर देने की स्थिति में है। लेकिन आरपीएन सिंह के भाजपा में आ जाने से यहां समीकरण अब बदल सकता है। यह उम्मीद जताई जा रही है कि पडरौना सीट से सपा से स्वामी प्रसाद मौर्य के चुनाव लड़ने पर भाजपा आरपीएन सिंह को यहां से उतार सकती है। जिससे पार्टी को अच्छी बढ़त मिल सकती है।

दूसरी तरफ एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि सैंथवार विरादरी की आधा दर्जन सीटों पर अच्छा खासा जातिगत वोट है। जिसे भाजपा अपने पक्ष में आरपीएन सिंह के चलते लाने में कामयाब हो सकती है। हालांकि यह वोट पिछले विधान सभा चुनाव में भी भाजपा को मिले थे। इनसे इतर कांग्रेस पार्टी को आरपीएन सिंह के खोने से इनके कार्यकर्ताओं पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ेगा। कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू कुशीनगर जिले के तमकुहीराज विधान सभा क्षेत्र से ही सदन में पहुंचे हैं। उनके जिले में भाजपा ने यह सेंधमारी कर कांग्रेस के बढ़ते जनाधार को तोड़ने की कोशिश जरूर की है।

(देवरिया से स्वतंत्र पत्रकार जितेंद्र उपाध्याय की रिपोर्ट।)

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