Wednesday, April 17, 2024

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वाराणसी में एक पत्रकार का सम्मान और दो पत्रकारों की किताबों का हुआ विमोचन

वाराणसी। कल मानवाधिकार जननिगरानी समिति (PVCHR) समेत कई संगठनों की ओर से “संवैधानिक अधिकार, स्वास्थ्य व पोषण” विषय पर वाराणसी में एक आयोजन किया गया।  भेलूपुर स्थित होटल डायमंड में आयोजित इस कार्यक्रम में 'कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स' के सलाहकार...

शिक्षा में हो स्नेह और सम्मान 

कॉलेज में एमए के आखिरी वर्ष में पढ़ने वाली उस छात्रा के आंसू थम ही नहीं पा रहे थे। उसकी समस्या यह थी कि उसके एक वरिष्ठ शिक्षक उसकी बात ही नहीं सुन रहे थे। उसे एक अध्याय का...

आजादी की अलख जगाती एक जरूरी किताब

सैंतालिस साल पहले भारत में लागू हुआ था आपातकाल। तब उसे लागू करने वाली सरकार ने 19 महीनों में ही हाथ खड़े कर दिए थे। कुछ लोग मानते हैं कि तब सरकार निश्चिंत हो गई थी कि देश की...

यह देश पहले भी कुछ कम अंधेरों से नहीं गुजरा, लेकिन कभी हारा नहीं, आगे भी नहीं हारेगा: विजय बहादुर सिंह 

देश के हिन्दी के जाने-माने आलोचकों में से एक विजय बहादुर सिंह को आमतौर पर उनकी देशज प्रतिमानों की सुगंध वाली आलोचना दृष्टि, भवानीप्रसाद मिश्र व दुष्यंत कुमार जैसे कवियों और आचार्य नन्द दुलारे वाजपेयी की रचनावलियों के श्रमसाध्य...

फिर से वापसी की राह पर किसान आंदोलन!

हवाओं में अब एक नए सवाल की आमद हो गई है। सवाल यह है कि क्या एक बार फिर देश के किसान कोई बड़ा आंदोलन करेंगे? किसान नेता राकेश टिकैत की मानें तो अब से तेरह महीने बाद ऐसा...

युद्ध में झुलसती मनुष्यता और मनुष्य की क्रूरता का आख्यान  

दुनिया में नर्क और दर्द का दायरा बहुत बड़ा है। अपेक्षाकृत विकसित समझे जाने वाले ऐसे यूरोपीय देश, जहां एक समय समाजवाद की जमीन तैयार की जा रही थी, वे  भी इससे अछूते नहीं हैं। अलग-अलग जातीय-समूहों और देशों...

पुस्तकों को सेल्फ़ में क़ैद न करो, उन्हें बांटो!

अंग्रेजी के एक बहुत बड़े लेखक थे स्टीवेंसन।  वे एक बार बस में सफर कर रहे थे और कोई पुस्तक पढ़ने में तल्लीन थे। जब उनका स्टाप आया तो वे फट से उतर गए मगर अपनी पुस्तक वहीं छोड़...

मेरी तेरी उसकी बातः जिंदगी और सफर की बात

हिंदी के युवा कवियों में शुमार होने वाले अंशु मालवीय ने एक कविता लिखी थीः आजकल क्या कर रहे हैं मनमोहन सिंह/ क्या करता है जहर/ खून में घुलने के बाद। यह कविता उस समय में लिखी गई थी...

आधे सफर का हमसफरः वे कहानियां जिन्हें प्रकाशित नहीं किया जाना चाहिए था

‘लोग इन कहानियों को बर्दाश्त नहीं करेंगे। सच कहूं तो ये मुझसे भी बर्दाश्त नहीं हो रही हैं। ये वे कहानियां हैं जिन्हें प्रकाशित नहीं किया जाना चाहिए था।’ शहादत की कहानियों को लेकर उक्त टिप्पणी दिल्ली यूनिवर्सिटी के...

पुस्तक समीक्षा: सर सैयद को समझने की नई दृष्टि देती है ‘सर सैयद अहमद खान: रीजन, रिलीजन एंड नेशन’

19वीं सदी के सुधारकों में, सर सैयद अहमद खान (1817-1898) कई कारणों से असाधारण हैं। फिर भी, अब तक, अंग्रेजी में उनका कोई व्यापक मूल्यांकन या जीवनी संबंधी लेख उपलब्ध नहीं है। शायद, इस तथ्य के कारण कि सर...

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लोकतंत्र में चुनाव लघुता का पर्व और गर्व होता है, प्रभुता का पर्व और प्रसाद नहीं‎

लोकतंत्र में चुनाव सबसे बड़ा पर्व होता है, लोकतंत्र का पर्व। लोकतंत्र का पर्व असल में किस का पर्व...