Friday, April 19, 2024

Fascism

फेसबुक का हिटलर प्रेम!

जुकरबर्ग के फ़ासिज़्म से प्रेम का राज़ क्या है? हिटलर के प्रतिरोध की ऐतिहासिक तस्वीर से फेसबुक को दिक्कत क्या है? फेसबुक ने हिन्दी के मशहूर कहानीकार चंदन पांडेय की वॉल पर लगी उस मशहूर तस्वीर को अपने `कम्युनिटी...

फ़ासीवाद की बेड़ियां और आज़ादी का मतलब

आज़ादी के बाद जो लोग अब तक यह सोचते रहे कि चिंतन और चुनाव के लिए मनुष्य आज़ाद है और उसकी यह आज़ादी ही उनके चिंतन का मूल है या फ़िर जिन्होंने ऐसा कभी सोचा ही नहीं और हमेशा...

पतनशील हिंदू और पूंजी की संस्कृति की दुरभिसंधि: अंधकार युग की ओर बढ़ता भारत

भारत में उत्तर से लेकर दक्षिण और पूरब ले लेकर पश्चिम तक आरएसएस (संघ), भाजपा एंव अन्य आनुषंगिक संगठनों और कार्पोरेट घरानों का वर्चस्व केवल एक राजनीतिक और आर्थिक परिघटना नहीं है, उससे ज्यादा कहीं गहरे व्यापक स्तर पर...

पुनरुत्थान की बेला में परसाई को भूल गए प्रगतिशील!

हिन्दी की दुनिया में प्रचलित परिचय के लिहाज से हरिशंकर परसाई सबसे बड़े व्यंग्यकार हैं। इसमें कोई झूठ नहीं है पर सिर्फ़ इतना परिचय उनकी उस भूमिका को नज़रअंदाज़ करने वाली बात है जिसको याद करना आज और ज़्यादा...

आपातकाल की बरसी पर यूपी में फासीवाद का नंगा नाच

एक जनतांत्रिक देश में न्यायपालिका कानून के शासन को सुनिश्चित करके ताक़तवर राज्य से नागरिक अधिकारों की रक्षा करती है। लैटिन अमेरिकी देश ब्राजील के संदर्भ में हम ये लगातार देख रहे हैं कि वहाँ की सुप्रीम कोर्ट नागरिकों...

दारापुरी ने दिखाया अपूर्वानंद को आईना, कहा- खारिज करने की नहीं, लेनिन से सीखने की जरूरत

इंडियन एक्सप्रेस में इधर किसी लेख के जवाब में लेखक, अध्यापक और सामाजिक कार्यकर्ता अपूर्वानंद की टिप्पणी पर नजर पड़ी, पहले तो मुझे लगा की शायद लेखक कह रहे हैं कि लेनिन के क्रांति के मॉडल को भारत में दोहराने की...

निरंकुशता के स्रोत, प्रतिरोध के संसाधन

राजनीति का आम सहजबोध यह है कि सत्ता की निरंकुशता लोकतंत्र का निषेध है। लोकतंत्र राजनीतिक सत्ता का गठन तो करता है, लेकिन उसे निरंकुश नहीं होने देता। यदि किसी लोकतांत्रिक व्यवस्था के अंतर्गत निरंकुश सत्ता का उद्भव होता है तो...

कोरोना ने खोल दी सत्ता और व्यवस्था की कलई

कोरोना के बाद दुनिया की व्यवस्था नया स्वरूप लेगी। हर देश में तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। क्या हम भारतीय भी सोच सकते हैं कि कोरोना के बाद भारत में जो स्थापित व्यवस्था है उसकी जगह कोई नया स्वरूप...

क्या हम सब फासिज़्म के गोएबल काल में हैं ?

झूठ का एक मनोविज्ञान यह भी होता है वह उसे फैलाने वालों को भी मानसिक रूप से विकृत कर देता है। 2012 से ही झूठबोलवा गिरोह का विकास शुरू हुआ और ऑडियो वीडियो टेक्स्ट आदि भेजने की एक बेहद...

जनता कर्फ्यू बनाम कोरोना महोत्सव

यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा, शास्त्रं तस्य करोति किं। लोचनाभ्याम् विहिनस्य दर्पण: किं करिष्यति।। अर्थात जिसके पास स्वयं की बुद्धि नहीं है, उसका शास्त्र भी कल्याण नहीं कर सकते। जैसे नेत्रहीन व्यक्ति के लिए दर्पण किसी काम का नहीं होता। आज...

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AIPF (रेडिकल) ने जारी किया एजेण्डा लोकसभा चुनाव 2024 घोषणा पत्र

लखनऊ में आइपीएफ द्वारा जारी घोषणा पत्र के अनुसार, भाजपा सरकार के राज में भारत की विविधता और लोकतांत्रिक मूल्यों पर हमला हुआ है और कोर्पोरेट घरानों का मुनाफा बढ़ा है। घोषणा पत्र में भाजपा के विकल्प के रूप में विभिन्न जन मुद्दों और सामाजिक, आर्थिक नीतियों पर बल दिया गया है और लोकसभा चुनाव में इसे पराजित करने पर जोर दिया गया है।