Thursday, April 25, 2024

Marx

प्रेमचंद: किसान-मजदूर और पिछड़े-दलितों के प्रतिनिधि रचनाकार 

आज महान कथा सम्राट और उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद का 143वां जन्मदिन है। महज 56 वर्ष की उम्र में 15 उपन्यास, 300 के लगभग कहानियां, 3 नाटक, 10 अनुवाद, 7 बाल-पुस्तकें तथा हजारों पृष्ठों के समसामयिक आलेख, सम्पादकीय, भाषण, भूमिका,...

असल बात वो नज़रिया है, जो हमें मार्क्स ने दिया था

शीत युद्ध के दौर में मार्क्सवाद दुनिया के लगभग हर देश में एक वैचारिक ध्रुव बना रहता था। तब एक प्रवृत्ति उस विचारधारा में दुनिया के तमाम मसलों का हल देखने की थी। जबकि दूसरी तरफ़ उसे लांछित करने...

इतिहास के पथ पर एक स्थाई लैंडमार्क हैं मार्क्स

आज कार्ल मार्क्स का जन्मदिन है। विश्व के वैचारिक इतिहास में कार्ल मार्क्स एक ऐसी प्रतिभा हैं जिन्होंने समाज और विकास की धारा बदल दी। मार्क्स के सिद्धांतों और विचारधारा का प्रभाव दुनियाभर के सभी विचारों पर पड़ा और...

समसामयिक संदर्भ में भगत सिंह

भगत सिंह को भारत के सभी विचारों वाले लोग बहुत श्रद्धा और सम्मान से याद करते हैं। वे उन्हें देश पर कुर्बान होने वाले एक जज्बाती हीरो और उनके बलिदान को याद करके उनके आगे विनत होते हैं। वे...

बच्चे पालने के सवाल पर स्त्री और पुरुष के बीच पैदा हुआ पहला श्रम विभाजन

मानव विज्ञान में खुद को लगा देने का उनका संकल्प महज किसी बौद्धिक उत्सुकता का परिणाम नहीं था । इसका गहरा राजनीतिक-सैद्धांतिक मकसद था । गहन ऐतिहासिक ज्ञान के आधार पर वे वास्तविकता के सबसे करीब के उस क्रम...

भारतीय समाज में मार्क्स से पहले सैकड़ों हजारों ज्योतिबा की जरूरत है

वैश्विक संदर्भों में कई बार ये सवाल उठता है कि आखिर भारत में इतनी असमानता और गरीबी होने के बावजूद, ये तबका वर्ग संघर्ष की कसौटी पर एकजुट क्यों नहीं हो सका? इतनी बड़ी संख्या में मजदूर और गरीब...

धर्म उत्पीड़ित की आह है, हृदयविहीन दुनिया का हृदय है: मार्क्स

मार्क्सवाद समाज को समझने का विज्ञान और उसे बदलने का आह्वान है। समाज के हर पहलू पर इसकी सत्यापित स्पष्ट राय है, धर्म पर भी। ‘हेगेल के अधिकार के दर्शन की समीक्षा में एक योगदान’ में मार्क्स ने लिखा...

कम वेतन पाने वाला पत्रकार अधिक खतरनाक होता है!

पत्रकारों को कम वेतन नहीं देना चाहिए। कम वेतन पाने वाला पत्रकार अधिक खतरनाक हो सकता है। कभी यह रोचक निष्कर्ष निकाला था, पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी ने। कार्ल मार्क्स पर उनकी यह एक रोचक टिप्पणी है।...

गांधी के सिपाही और नेहरू के साथी लोहिया

राम मनोहर लोहिया ने आजाद भारत में सत्ता से सवाल पूछना सिखाया और सत्ता के खिलाफ रहकर भारतीय राजनीति के साथ भारतीयों के मन-कर्म पर गहरा प्रभाव छोड़ा। वह हमेशा समाज और सरकार को एक साथ, एक रास्ते पर...

भगत सिंह के प्रिय दार्शनिक-चिंतक और साहित्यकार

अरे! बेकार की नफरत के लिए नहीं,न सम्मान के लिए, न ही अपनी पीठ पर शाबासी के लिएबल्कि लक्ष्य की महिमा के लिए,किया जो तुमने भुलाया नहीं जाएगा साढ़े तेईस वर्ष की उम्र में 23 मार्च 1931 को फांसी पर...

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बेहद कमजोर जमीन पर खड़ी भाजपा की ताक़त

जब नरेंद्र मोदी ने 400 पार का नारा दिया था, तो इसके पीछे दो बड़ी वजहें थीं, एक तो...