Thursday, March 28, 2024

poem

निराला की कविता में मनुष्य राग

यह संयोग ही है कि मेरे प्रियतम कवियों में निराला रहे हैं। जब मैं आठवीं कक्षा का छात्र था तभी उनकी कवितायें गुनगुनाता था। इस पर मेरे शिक्षक चिरोंजी लाल श्रीवास्तव जो वहीं हमारे पड़ोस में रहते थे बहुत...

लोकल से ग्‍लोबल तक का सफर करतीं भाषा की बहुरंगी कविताएं

नई दिल्ली। भाषा सिंह की ''कविताएं बहुरंगी हैं। किस तरह के समाज की कल्‍पना हम करते हैं, उसके प्रति चिंता व्‍यक्‍त करती हैं। लोकल से ग्‍लोबल और ग्लोबल से लोकल यानी वैश्विक परिदृश्‍य से स्‍थानीयता तक का सफ़र तय करती हैं ये...

मेरा रंग फाउंडेशन ने ‘समाज में भाषा और जेंडर’ पर आयोजित की संगोष्ठी, तसलीमा नसरीन ने पढ़ीं कविताएं 

नई दिल्ली। मेरा रंग फाउंडेशन के 7 वर्ष पूरे होने पर साहित्य अकादमी सभागार, रवींद्र भवन में 'समाज में भाषा और जेंडर' विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस मौके पर आयोजन की विशिष्ट अतिथि बांग्लादेशी मूल...

मनोज कुमार झा का लेख: कविता राजनीति की आत्मा है, यह हमेशा से संसद का हिस्सा रही है

भारत की संसद के पवित्र हॉल में, जहां कानून बनाये जाते हैं और नियति को आकार दिया जाता है, हमेशा शब्दों का निर्विवाद प्रभाव रहा है। हलांकि, संसद अपने स्वभाव से ही नियमों और परंपराओं से बंधी हुई जगह...

पुस्तक समीक्षा: अपने समय के सच को उजागर करती मारक विमर्श की कविताएं

पुस्तक समीक्षा:  कवि पंकज चौधरी समाज की वर्तमान अवस्था पर पैनी नज़र रखने वाले विलक्षण कवि हैं। इनकी कविता के परिसर में नकली यथार्थ और बिम्ब का प्रवेश वर्जित है। वह सामाजिक मुद्दों को शब्दों के घटाटोप से ढकने...

पाश: ज़िस्म कत्ल होने से फलसफा और लफ्ज़ कत्ल नहीं होते!        

पाश न महज पंजाबी कविता बल्कि समूची भारतीय कविता के लिए एक जरूरी नाम हैं। जब भी भारतीय साहित्य की चर्चा होगी, उनका उल्लेख जरूर आएगा। उनका जीवन और कला दोनों महान हैं। उन्हें क्रांति का कवि कहा जाता...

प्रकट-प्रछन्न जंज़ीरों से दबी कुचली इंसानियत की मुक्ति का गान हैं मोहन की कविताएं 

दलित साहित्यकारों और एक्टिविस्टों ने आधुनिकता के मुहावरे और ढांचे में अपने संघर्ष को स्थापित किया है। मूल्यों के असमान हिंदू सिस्टम के खिलाफ उन्होंने तार्किकता और सार्वभौमिकता के विचार निबद्ध किए हैं। वे दलित चेतना में बाहरी घुसपैठ...

पहाड़ की खुरदुरी जमीन पर मोहन मुक्त ने खड़ा किया है कविता का हिमालय

वो तुम थे एक साधारण मनुष्य को सताने वाले अपने अपराध पर हँसे ठठाकर, और अपने आसपास जमा रखा मूर्खों का झुंड  अच्छाई को बुराई से मिलाने के लिए, कि न छंट सके धुंध, बेशक हर कोई झुका तुम्हारे सामने कसीदे पढ़े तुम्हारी शराफ़त...

अजय सिंह की कविताएं करती हैं सीधे दुश्मन की शिनाख्त 

नई दिल्ली। गुलमोहर किताब ने वरिष्ठ कवि अजय सिंह की नई किताब 'यह स्मृति को बचाने का वक़्त है' पर चर्चा और कविता पाठ का आयोजन दिल्ली के गांधी शांति प्रतिष्ठान में किया, जिसमें बड़ी संख्या में कवियों, आलोचकों,...

जयंती पर विशेष: अकेले को सामूहिकता और समूह को साहसिकता देने वाले धूमिल

सुदामा पाण्डेय यानी धूमिल ताउम्र जिन्दा रहने के पीछे मजबूत तर्क तलाशते रहे। कहते रहे ‘तनों अकड़ो अपनी जड़ें पकड़ो, हर हाथ में गीली मिट्टी की तरह हां-हां मत करो।’ मौजूदा जनतंत्र को मदारी की भाषा कहने वाले धूमिल...

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ग्राउंड रिपोर्ट: रीति रिवाजों के नाम पर लैंगिक भेदभाव से मुक्त नहीं हुआ समाज

हमारे समाज में अक्सर ऐसे कई रीति रिवाज देखने को मिलते हैं जिससे लैंगिक भेदभाव स्पष्ट रूप से नज़र आता...