9 जुलाई की राष्ट्रव्यापी आम हड़ताल के लिए ट्रेड यूनियनों को मिला किसानों समेत तमाम संगठनों का समर्थन

नई दिल्ली। कल यानि 9 जुलाई को ट्रेड यूनियनों की राष्ट्रव्यापी हड़ताल है। जिसमें देश के तमाम किसान संगठन भी हिस्सा ले रहे हैं। इंडिया गठबंधन से जुड़े राजनीति दलों ने इस मौके पर बिहार बंद का आह्वान किया है। उन्होंने ट्रेड यूनियनों की मांगों का समर्थन करते हुए बिहार में ‘गहन पुनरीक्षण अभियान’ के विरोध के मुद्दे को भी इससे जोड़ दिया है। इस मसले पर कल लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी समेत इंडिया गठबंधन के तमाम नेता पटना में चक्का जाम करेंगे।

हड़ताल से एक दिन पहले ट्रेड यूनियनों ने एक संयुक्त प्रेस विज्ञप्ति जारी की है। जिसमें कहा गया है कि 9 जुलाई को होने वाली राष्ट्रव्यापी आम हड़ताल की तैयारियाँ पूरे देश में संगठित एवं असंगठित/अनौपचारिक अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों की यूनियनों द्वारा पूरी निष्ठा से की जा रही हैं।

पिछले 10 वर्षों से सरकार भारतीय श्रम सम्मेलन का आयोजन नहीं कर रही है और श्रमिकों के हितों के खिलाफ निर्णय लगातार ले रही है। चार श्रम संहिताओं को लागू करने के प्रयासों का उद्देश्य सामूहिक सौदेबाजी को कमजोर करना, यूनियन गतिविधियों को पंगु बनाना और ‘ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस’ के नाम पर नियोक्ताओं को लाभ पहुँचाना है।

ट्रेड यूनियनों ने कहा कि सरकार की आर्थिक नीतियाँ बेरोज़गारी में वृद्धि, आवश्यक वस्तुओं की महँगाई, मज़दूरी में गिरावट, शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी नागरिक सुविधाओं में सामाजिक क्षेत्र के खर्च में कटौती का कारण बन रही हैं। इससे गरीबों, निम्न आय वर्ग और यहाँ तक कि मध्यम वर्ग के लिए भी असमानता और दुःख-तकलीफें बढ़ रही हैं।

सरकार ने देश की कल्याणकारी राज्य की भूमिका को त्याग दिया है और उसकी नीतियाँ स्पष्ट रूप से देशी-विदेशी कॉरपोरेट्स के हित में चलाई जा रही हैं।

विज्ञप्ति में कहा गया है कि यह हड़ताल सरकार की मज़दूर विरोधी, किसान विरोधी और राष्ट्र विरोधी कॉरपोरेट परस्त नीतियों के खिलाफ है। ट्रेड यूनियनें सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों और सार्वजनिक सेवाओं के निजीकरण, आउटसोर्सिंग, संविदा व आकस्मिक रोजगार की नीतियों, मज़दूरों के खिलाफ और नियोक्ता समर्थक चार श्रम संहिताओं, काम के घंटों में वृद्धि, सामूहिक सौदेबाजी और हड़ताल के अधिकार को छीनने, नियोक्ताओं द्वारा श्रम कानूनों के उल्लंघन को गैर-अपराध बनाने (जबकि यूनियनों की गतिविधियों को अपराध मानने) के खिलाफ संघर्ष कर रही हैं।

अपनी मांगों को आगे रखते हुए यूनियनों ने कहा कि हम सरकार से बेरोजगारी की समस्या को हल करने, स्वीकृत पदों पर भर्ती करने, अधिक नौकरियाँ सृजित करने, मनरेगा के कार्यदिवस और मज़दूरी में वृद्धि करने तथा शहरी क्षेत्रों के लिए भी इसी प्रकार का कानून लागू करने की माँग कर रहे हैं। लेकिन इसके बजाय सरकार ई एल आई (ELI) योजना थोपने में लगी हुई है, जो केवल नियोक्ताओं को लाभ देती है।

सरकारी विभागों और सार्वजनिक क्षेत्रों में युवाओं को नियमित रोजगार देने के बजाय सेवानिवृत्त कर्मचारियों की फिर से भर्ती की नीति लाई जा रही है- जैसा कि रेलवे, एनएमडीसी लिमिटेड, स्टील क्षेत्र, शिक्षण कैडर आदि में देखा जा रहा है। यह नीति उस देश के लिए नुकसानदायक है जहाँ 65% आबादी 35 वर्ष से कम आयु की है और 20 से 25 वर्ष की आयु के बीच बेरोज़गारों की संख्या सबसे अधिक है।

सरकार द्वारा रोजगार और सामाजिक सुरक्षा को लेकर झूठे दावे किए जा रहे हैं।

वर्तमान सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को कमजोर किया जा रहा है और इनमें निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देने के प्रयास किए जा रहे हैं।

बिहार के मसले पर भी यूनियनों ने सरकार और चुनाव आयोग को कड़ी चेतावनी दी। उनका कहना था कि भारतीय संविधान में निहित लोकतांत्रिक अधिकारों पर यह सत्तारूढ़ शासन और भी तीव्रता से हमला कर रहा है।

अब प्रवासी मज़दूरों के मताधिकार को छीनने की साजिश रची जा रही है, जिसकी शुरुआत बिहार से की जा रही है। संविधानिक संस्थाओं का दुरुपयोग खुलेआम हो रहा है ताकि विपक्ष की आवाज को दबाया जा सके। कुछ राज्यों में जन आंदोलनों को नियंत्रित करने और उन्हें अपराध घोषित करने के लिए नए कानून लाए जा रहे हैं — महाराष्ट्र का पब्लिक सिक्योरिटी बिल और छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में इसी तरह के विधेयक इसके उदाहरण हैं। अब नागरिकता छीनने के प्रयास भी किए जा रहे हैं।

यूनियनों ने कहा कि कोयला, एनएमडीसी लिमिटेड, अन्य खनिजों की खदानें जैसे तांबा, बॉक्साइट, ऐल्युमिनियम, सोना आदि जैसी खनिजों की खदानें, इस्पात, बैंक, एलआईसी, जीआईसी, पेट्रोलियम, बिजली, डाक विभाग, ग्रामीण डाक सेवक, दूरसंचार, सार्वजनिक परिवहन, निजी क्षेत्र के विभिन्न परिवहन, राज्य सरकार के विभिन्न विभागों के कर्मचारी—इन सभी क्षेत्रों की यूनियनों ने हड़ताल की नोटिस दे दिए हैं।

अपने कल के कार्यक्रमों के बारे में बताते हुए विज्ञप्ति में कहा गया है कि रक्षा क्षेत्र के कर्मचारी एक घंटे का गेट मीटिंग प्रदर्शन करेंगे और उसके बाद ही कार्यालय में प्रवेश करेंगे। रेलवे यूनियनों ने एकजुटता  अभियान चलाया है और 9 जुलाई को जुटान में भाग लेंगे। निर्माण, बीड़ी, आंगनवाड़ी, आशा, मिड डे मील, घरेलू कामगार, फेरीवाले और विक्रेता, घर से  पीस रेट पर काम करने वाले मज़दूर, रिक्शा, ऑटो, टैक्सी आदि क्षेत्रों की यूनियनें जनसंघर्ष में भाग लेंगी।

छात्र, युवा, शिक्षक, महिला संगठनों और सामाजिक संगठनों ने भी इस हड़ताल को समर्थन दिया है। बाजार संगठनों से भी एकजुटता के लिए संपर्क किया गया है।

हम लगातार देश की दो प्रमुख उत्पादक शक्तियों — मज़दूरों और किसानों — के बीच एकता और एकजुटता को मजबूत करने का प्रयास कर रहे हैं। बीते समय में कई संयुक्त कार्रयवाइयाँ की गई हैं और एक-दूसरे के आंदोलनों को समर्थन दिया गया है। संयुक्त किसान मोर्चा और कृषि मज़दूर संगठनों के साझा मोर्चे ने 9 जुलाई की इस हड़ताल को समर्थन दिया है और ग्रामीण भारत में अपनी माँगों के लिए तथा ट्रेड यूनियन की माँगों के समर्थन में व्यापक जुटान का निर्णय लिया है। कई राज्यों में बंद जैसी स्थिति बनी रहेगी।

हम भारत की आम जनता से अपील करते हैं कि हड़ताल के दिन होने वाली असुविधा को राष्ट्रहित में सहन करें और नैतिक समर्थन प्रदान करें।

हस्ताक्षर करने वाली यूनियनों और उनके पदाधिकारियों में इंटक, एटक, एचएमएस, सीटू, एआईयूटीयूसी, टीयूसीसी, सेवा, एआईसीसीटीयू, एलपीएफ और यूटीयूसी शामिल हैं।

इस मौके पर किसान संगठनों की ओर से भी एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की गयी है।

जिसमें कहा गया है कि एसकेएम ने लोगों से 9 जुलाई 2025 को श्रमिकों की आम हड़ताल को भावपूर्ण समर्थन देने की अपील की है। ​​हड़ताल की मुख्य मांगों में 4 श्रम संहिताओं को निरस्त करना, सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण रोकना और सार्वजनिक सेवाओं में सुधार, रोजगार में ठेका प्रथा और अनियमितता समाप्त करना तथा न्यूनतम वेतन 26,000 रुपये प्रतिमाह करना है। ये भारतीय अर्थव्यवस्था के निगमीकरण का विरोध करने तथा भारत की स्वतंत्रता की रक्षा करने के लिए निर्णायक नीतिगत आवश्यकताएँ हैं। एसकेएम ने आम हड़ताल का समर्थन किया है तथा 9 जुलाई को पूरे भारत में तहसील स्तर पर स्वतंत्र रूप से तथा ट्रेड यूनियनों और कृषि श्रमिक यूनियनों के साथ समन्वय करके किसानों को एकजुट करने की घोषणा की है।  

श्रमिकों की मांगों का समर्थन करने के अलावा, एसकेएम ने किसानों से अपनी मांगों पर भी संघर्ष तेज करने का आग्रह किया है, जिसमें सभी फसलों की खरीद की गारंटी के साथ एमएसपी@सी2+50% के लिए कानून बनाना, किसानों को कर्ज के जाल से मुक्त करने और भारत भर में बड़े पैमाने पर किसान आत्महत्याओं को समाप्त करने के लिए व्यापक ऋण माफी, कृषि बाजार पर राष्ट्रीय नीति के मसौदे को वापस लेना, कृषि, उद्योग और सेवाओं को नुकसान पहुंचाने वाले भारत-अमेरिका द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर नहीं करना, बिजली का निजीकरण नहीं करना, एलएआरआर अधिनियम 2013 का उल्लंघन समेत भूमि का अंधाधुंध अधिग्रहण समाप्त करना, मनरेगा में 200 दिन का काम और 6,00 रुपये दैनिक मजदूरी सुनिश्चित करना, कृषि श्रमिकों, किसानों और ग्रामीण मजदूरों के लिए न्यूनतम मजदूरी, सामाजिक सुरक्षा और 10,000 रुपये मासिक पेंशन प्रदान करना, स्कीम वर्करस को नियमित करना, प्रवासी श्रमिकों और बटाईदार किसानों के अधिकारों को कानूनी संरक्षण देना आदि शामिल हैं।

एसकेएम किसानों, श्रमिकों और खेत मजदूरों सहित पूरे कामकाजी लोगों से तहसील स्तर पर प्रदर्शन करने और आम हड़ताल को सफल बनाने के लिए बड़े पैमाने पर रैलियां करने का आह्वान करता है।  

विज्ञप्ति में कहा गया है कि आम हड़ताल भारतीय लोगों पर मुक्त व्यापार समझौते थोपने के खिलाफ भी है। अमेरिकी साम्राज्यवाद ने मोदी सरकार को अनुचित व्यापार शर्तें थोपने और अमेरिकी कृषि उत्पादों को भारत में डंप करने के लिए मजबूर करने के लिए सभी प्रयास किए हैं। मुक्त व्यापार समझौते का उद्देश्य अमेरिकी खाद्य श्रृंखलाओं, व्यापारिक दिग्गजों और कृषि व्यवसाय निगमों को भारत में काम करने की अनियंत्रित स्वतंत्रता देना है।

भारतीय बाजारों में अत्यधिक सब्सिडी वाले दूध और दूध उत्पादों, सोयाबीन, कपास, गेहूं, चावल, दालें, तिलहन, धान, जीएम फसलों, सेब और अखरोट सहित फलों और सब्जियों, प्रसंस्कृत और डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों का भारी मात्रा में टैरिफ मुक्त आयात भारतीय किसानों की आय और आजीविका को तबाह कर देगा।

ट्रंप प्रशासन मोदी सरकार को सार्वजनिक राशन वितरण प्रणाली को बंद करने और डीजल , पेट्रोल, रसोई गैस और उर्वरकों पर किसानों के लिए सभी सब्सिडी वापस लेने के लिए मजबूर कर रहा है। यह चाहता है कि भारत अपने पेटेंट कानूनों को अमेरिकी कंपनियों के अनुकूल बनाए। ये बदलाव भारतीय किसानों की स्वतंत्रता को खत्म कर देंगे और खाद्य सुरक्षा पर विनाशकारी प्रभाव डालेंगे। भारतीय लोग 4 श्रम संहिताओं और कृषि के निगमीकरण के माध्यम से मजदूरों, मेहनतकशों की गुलामी कभी स्वीकार नहीं करेंगे। किसान पिछले दो दशकों से अधिक समय से एमएसपी @ सी2+50% की गारंटीकृत खरीद और व्यापक ऋण माफी की लंबे समय से लंबित मांगों को प्राप्त करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। 

एसकेएम ने समस्त मेहनतकश जनता से अपील की है कि 9 जुलाई 2025 की आम हड़ताल को आजादी के बाद सबसे बड़ी मजदूर-किसान एकजुट कार्रवाई में से एक बनाया जाए।

इसके साथ ही भारत जोड़ो अभियान भी इस हड़ताल को समर्थन कर रहा है। उसकी विज्ञप्ति में कहा गया है कि भारत जोड़ो अभियान 9 जुलाई की देशव्यापी आम हड़ताल का समर्थन करता है। यह सिर्फ़ श्रमिक हितों की नहीं, बल्कि लोकतंत्र और नागरिक अधिकारों की रक्षा की हड़ताल है।

इस समय लोकतंत्र के सामने सबसे बड़ा संकट बिहार से शुरू हुई मतदाता सूची के ‘विशेष गहन पुनरीक्षण’ की प्रक्रिया है। चुनाव आयोग ने पूरे प्रदेश में पुरानी मतदाता सूची को रद्द कर, नए सिरे से नागरिकों से अपने वोट के अधिकार को साबित करने की ज़िम्मेदारी डाल दी है। यह निर्णय अभूतपूर्व और असंवैधानिक है।

अभियान ने कहा कि पहली बार ऐसा हो रहा है कि हर मतदाता को फॉर्म भरने के साथ अपने जन्म और नागरिकता के प्रमाण पत्र जमा करने होंगे। जिनका नाम 2003 की मतदाता सूची में नहीं था, उन्हें विशेष रूप से कठिन नियमों का सामना करना पड़ रहा है। आमतौर पर उपलब्ध दस्तावेज़ — जैसे आधार, राशन कार्ड, वोटर ID, मनरेगा कार्ड — को मान्यता नहीं दी गई है। इसके स्थान पर ऐसे प्रमाणपत्र मांगे जा रहे हैं जो बड़ी संख्या में ग़रीब, ग्रामीण, महिलाओं, दलितों और प्रवासी मज़दूरों के पास नहीं हैं।

जनवरी 2025 में ही पूरी राज्य सूची का पुनरीक्षण हो चुका था। ऐसे में बिना किसी व्यापक चर्चा के इस प्रक्रिया को लागू करना केवल प्रशासनिक गलती नहीं, एक गहरी लोकतांत्रिक चूक है।

भारत जोड़ो अभियान मांग करता है कि यह ‘विशेष गहन पुनरीक्षण’ तुरंत रोका जाए। मतदाता सूची में नाम जोड़ने या हटाने की कोई भी प्रक्रिया पारदर्शी, न्यायसंगत और नागरिकों की सुविधा के अनुरूप होनी चाहिए- न कि नागरिकता की जांच की आड़ में करोड़ों लोगों को लोकतंत्र से बाहर कर देने का औज़ार।

यह हड़ताल सिर्फ़ मजदूर वर्ग की नहीं, हर उस नागरिक की है जिसके पास एकमात्र ताक़त उसका वोट है। इस जनांदोलन में देशभर की ट्रेड यूनियनें, किसान संगठन और जन संगठन शामिल हैं, और भारत जोड़ो अभियान उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा है।

(प्रेस विज्ञप्ति पर आधारित।)

More From Author

घर परिवार के अंदर बनते रिश्ते कलंक या मज़बूरियां?

क्या कॉलेजियम प्रणाली एक प्रकार की सर्च कमेटी बनकर रह गयी है!

Leave a Reply