Friday, March 29, 2024

हाथरस कांडः सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच की निगरानी और दिल्ली में सुनवाई पर फैसला किया सुरक्षित

उच्चतम न्यायालय ने हाथरस पीड़िता के मामले में दायर याचिकाओं पर सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित कर लिया। अब उच्चतम न्यायालय यह निर्णय लेगा कि सीबीआई जांच की निगरानी सुप्रीम कोर्ट से हो या हाई कोर्ट से?, ट्रायल दिल्ली ट्रांसफर हो या नहीं? तथा पीड़ित परिवार और गवाहों को सुरक्षा कौन देगा? यूपी पुलिस या सीआरपीएफ? सुनवाई के दौरान न्यायालय ने यह संकेत दिया है कि वह सभी याचिकाओं को इलाहाबाद हाई कोर्ट भेजने को इच्छुक है। उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट कर दिया है इस मामले से संबंधित और याचिकाओं पर सुनवाई नहीं होगी। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि पहले हाई कोर्ट को सुनवाई करने दें, फिर हम यहां से नजर रख सकते हैं।

गुरुवार 15 अक्तूबर की सुनवाई में हाथरस पीड़िता के परिवार ने उच्च न्यायालय से गुहार लगाई है कि वो सीबीआई जांच पर अपनी निगरानी रखे। यूपी सरकार के वकील ने भी इसका समर्थन किया। पीड़िता के परिवार की वकील सीमा कुशवाहा ने उच्चतम न्यायालय से केस को दिल्ली ट्रांसफर करवाने की भी मांग की। उन्होंने कहा कि हम मुकदमे का दिल्ली में ट्रांसफर चाहते हैं। सीबीआई जांच की कोर्ट से निगरानी भी चाहते हैं।

पीड़ित परिवार की एक अन्य वकील इंदिरा जयसिंह ने कहा कि कोर्ट तय करे कि मुकदमा कहां चलेगा। अगर दिल्ली में चलेगा तो सुप्रीम कोर्ट या दिल्ली हाई कोर्ट निगरानी करे। उन्होंने पीड़ित परिवार को यूपी पुलिस की जगह सीआरपीएफ सुरक्षा देने की भी मांग की।

यूपी के डीजीपी के वकील हरीश साल्वे ने इस पर कहा कि पीड़ित परिवार को CRPF सुरक्षा की मांग की गई है। हम पीड़ित की सुरक्षा के लिए इसके लिए भी तैयार हैं, लेकिन कृपया इसे यूपी पुलिस पर नकारात्मक टिप्पणी की तरह न लिया जाए। इसके जवाब में चीफ जस्टिस एसए बोबडे ने कहा, “हमने यूपी पुलिस पर कोई नकारात्मक टिप्पणी नहीं की है।” उन्होंने कहा कि पिछली बार मामला हाई कोर्ट भेजने की बात हुई थी। अब सब यहीं जिरह कर रहे हैं।

इससे पहले यूपी सरकार के वकील सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि कोर्ट ने परिवार की सुरक्षा और वकील की उपलब्धता पर जवाब मांगा था। योगी सरकार ने उच्चतम न्यायालय  में बुधवार को हलफनामा दायर किया है। इसमें उच्चतम न्यायालय से मांग की गई है कि वह मामले की सीबीआई जांच अपनी निगरानी में कराए। यह जानकारी भी दी गई है कि गवाहों को तीन स्तर की सुरक्षा मुहैया कराई जा रही है। गवाहों और पीड़ितों के घर में सीसीटीवी लगाए गए हैं। नाके पर और घर के बाहर पुलिस का पहरा है। हलफनामे में इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ में हुई सुनवाई का हवाला भी दिया गया है।

परिवार ने बताया कि उन्होंने सीमा कुशवाहा को वकील नियुक्त किया है। उन्होंने कहा कि पीड़ित परिवार उच्चतम न्यायालय की निगरानी चाहता है। हम भी इसका समर्थन करते हैं। पक्ष-विपक्ष को सहमत देख चीफ जस्टिस ने कहा कि सीबीआई जांच की निगरानी हाई कोर्ट के अधीन हो सकती है। उन्होंने कहा कि अगर जरूरत पड़ी तो सुप्रीम कोर्ट भी निगरानी रख सकता है।

इसी बीच एसजी तुषार मेहता ने मामले में तीस्ता सीतलवाड़ के एनजीओ के दखल पर आपत्ति जताई और कहा कि न्याय के नाम पर ऐसे एनजीओ सिर्फ पैसा इकट्ठा करते हैं। यूपी सरकार के वकील ने कहा कि अपराधिक केस में ऐसे लोगों का बोलना भी आम होता जा रहा है, जिनका मामले से कोई रिश्ता नहीं। तीस्ता सीतलवाड़ के एनजीओ की तरफ से वकील अपर्णा भट्ट पीठ की ओर से किसी भी नए व्यक्ति को सीधे इलाहाबाद हाई कोर्ट के पास जाने के लिए कहा गया। यूपी पुलिस की ओर से उच्चतम न्यायालय को भरोसा दिया गया कि कोर्ट सुरक्षा पर जो भी आदेश देगा, उसे पूरा किया जाएगा। इस मामले की सुनवाई इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में भी हो रही है। उच्चतम न्यायालय में मुख्य रूप से परिवार की सुरक्षा के लिए याचिका दायर की गई थी। अदालत ने अभी इस पर कोई आदेश नहीं दिया है।

सुनवाई के दौरान आरोपियों की तरफ से वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ लूथरा भी पेश हुए। सिद्धार्थ लूथरा ने कहा कि केस की सभी जानकारी लगातार लीक की जा रही है, जो सही नहीं हैं। चीफ जस्टिस ने इस मसले पर आरोपी पक्ष को हाई कोर्ट जाने को कहा। आरोपियों को भी पक्ष रखने का मौका दिए जाने का इंदिरा जयसिंह ने कड़ा विरोध किया। हालांकि पीठ ने उनके विरोध को दरकिनार करते हुए लूथरा को बोलने दिया।

वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने कहा कि इस मामले पर बहस के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर नियुक्त किया जाना चाहिए। हम यूपी सरकार द्वारा दी गई गवाह सुरक्षा से संतुष्ट नहीं हैं, क्योंकि मामला उनके खिलाफ है। उन्होंने कहा कि उन्नाव मामले की तरह सीआरपीएफ की तैनाती हो सकती है। इस पर तुषार मेहता ने कहा कि सीआरपीफ की कोई जरूरत नहीं है। राज्य यहां पूरी तरह से निष्पक्ष है।

सुनवाई के अंत में अलग-अलग संगठनों की तरफ से कई वकीलों ने एक साथ बोलना शुरू कर दिया। पीठ ने उनकी बातों को मुकदमे के लिहाज से गैरजरूरी माना। पीठ ने कहा कि हमने पीड़ित, सरकार और आरोपी को सुन लिया है। यही अहम है। बाकी किसी बाहरी को नहीं सुनेंगे। यहां दायर सभी याचिकाएं हाई कोर्ट भेजी जाएंगी। वहां सुनवाई होगी। उन्होंने मामले में रखे गए मुख्य मुद्दों पर आदेश पारित करने की बात कही। इसके बाद कोर्ट उठ गई। अभी यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि आदेश कब तक आएगा।

गौरतलब है कि गत सुनवाई के दौरान न्यायालय ने राज्य सरकार से मुख्यतः तीन बातें पूछी थीं, पहली- पीड़ित परिवार और गवाहों की सुरक्षा के क्या इंतजाम किए गए हैं? क्या पीड़ित परिवार के पास पैरवी के लिए कोई वकील है? और इलाहाबाद उच्च न्यायालय में मुकदमे की क्या स्थिति है? हलफनामा में कहा गया है कि पीड़िता के परिजनों की ओर से सीमा कुशवाहा केस लड़ रही हैं और उन्हें सरकारी वकील भी मुहैया कराया जाएगा। साथ ही, इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने हाथरस मामले में अगली सुनवाई दो नवंबर तक टाल दी है।

हाथरस के एक गांव में 14 सितंबर को 19 वर्षीय दलित लड़की से चार लड़कों ने कथित रूप से बलात्कार किया था। इस लड़की की 29 सितंबर को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में इलाज के दौरान मौत हो गई थी। पीड़िता की 30 सितंबर को रात के अंधेरे में उसके घर के पास ही अंत्येष्टि कर दी गई थी। उसके परिवार का आरोप है कि स्थानीय पुलिस ने जल्द से जल्द उसका अंतिम संस्कार करने के लिए मजबूर किया। स्थानीय पुलिस अधिकारियों का कहना है कि परिवार की इच्छा के मुताबिक ही अंतिम संस्कार किया गया।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं। वह इलाहाबाद में रहते हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles