Tuesday, March 19, 2024

काशी विद्यापीठ के बर्खास्त दलित लेक्चरर गौतम ने कहा- साजिशकर्ताओं को जल्द ही बेनकाब करूंगा

वाराणसी। बनारस में ‘नवरात्र में नौ दिन व्रत रहने के बजाय संविधान पढ़ो’ की सलाह सोशल मीडिया पर काशी विद्यापीठ के राजनीति विज्ञान विभाग के एक दलित गेस्ट लेक्चरर डॉ मिथिलेश गौतम द्वारा पोस्ट किया गया। देखते ही देखते कुछ घंटों में लेक्चरर का फेसबुक वॉल का कॉमेंट सेक्शन कथित हिन्दू धर्म के ठेकेदारों की गाली से पट गया। इनमें से कई कमेंट्स में लेक्चरर को देख लेने और जान से मारने की धमकी भरे भी थे। यह विवाद यहीं नहीं थमता है, लेक्चरर के मुताबिक़ उनके मूल फेसबुक पोस्ट में एबीवीपी के छात्रों द्वारा एडिट करते हुए उसमें अन्य विवादित बताये जा रहे तथ्य जोड़ दिए गए, और रैली निकालकर कैंपस में पर्चे बांटे गए।

पहले, दलित लेक्चरर पर कार्रवाई की मांग को लेकर महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ विश्वविद्यालय में लेक्चरर के राजनीति विज्ञान और फिर समूचे कैम्पस में कई घंटों एबीवीपी,  हिंदूवादी छात्रों व बाहरी आपराधिक प्रवृत्ति के छात्रों ने जमकर बवाल काटा। कैम्पस में प्रदर्शन के दौरान प्रदर्शनकारी रास्ते में मिले काशी विद्यापीठ में छात्र संघ में एक पद के लिए चुनाव लड़े छात्र कलीमुद्दीन को जय श्री राम के नारे लगवाने की भी कोशिश की गई। छात्र कलीमुद्दीन द्वारा नारा नहीं लगाने और विरोध मार्च में शामिल नहीं होने पर कुछ गुंडों ने मारपीट कर सिर फोड़ दिया। 

इधर, कैम्पस में कट्टर हिन्दू ताकतों ने छात्रों की आड़ में हो रहे विरोध-प्रदर्शन के दबाव में आकर काशी विद्यापीठ प्रशासन ने लेक्चरर को बगैर नोटिस दिए नौकरी से बर्खास्त कर दिया। उनके विवि परिसर में प्रवेश को प्रतिबंधित कर दिया। यह कार्रवाई न सिर्फ एकतरफा है बल्कि तार्किक और संवैधानिक मूल्यों का खुले तौर पर उल्लंघन है। लिहाजा, देखते ही देखते दलित लेक्चरर को विवि द्वारा पदच्युत करने करने के मामले ने तूल पकड़ लिया।

प्रदर्शन करते विद्यार्थी परिषद के छात्र।

मामला बनारस से निकलकर दिल्ली की देहरी और फिर समूचे देश में आग की तरह फ़ैल गया। जो भी सुन रहा है, वह विवि प्रशासन नियमों को ताक पर रखकर की गई कार्रवाई और एबीवीपी की हरकतों की कड़े शब्दों में निंदा कर रहा है। इत्तेफ़ाक़ भी देखिए आज महात्मा गाँधी और पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की जयंती भी है। महात्मा गांधी के नाप पर बनारस में बने महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में महज जय श्री राम का नारा नहीं लगाने पर गुंडों ने एक मुस्लिम छात्र का सिर फोड़ कर लहूलुहान कर दिया।    

डॉ मिथिलेश कुमार गौतम “जनचौक” को बताते हैं कि हाल के वर्षों में उनके पढ़ाने की शैली और तार्किकता के चलते एक बड़े छात्र-छात्रों के समूह द्वारा उनको पसंद किया जा रहा है। इससे उनकी लोकप्रियता राजनीति विभाग के चौखट को लांघकर अन्य विभागों तक जा पहुंची है। यही लोकप्रियता मुझ पर एक्शन का बड़ा कारण साबित हुई है। इसमें कोई दो राय नहीं है। विस्तारित होती यह लोकप्रियता सवर्ण टीचरों के सामंतवादी सोच पर प्रहार कर रही थी, और वे सब घबराये हुए हैं।

बहाल करने के लिए छात्रों ने कुलपति को सौंपा ज्ञापन।

मुझे बदनाम और बेइज्जत करने के लिए मौके की ताक में थे। इसलिए कुछ लोगों ने आपराधिक प्रवृत्ति के एबीवीपी के छात्रों को उकसा कर यह विवाद पैदा किया है। मेरी पोस्ट में ऐसा कुछ नहीं है कि कैम्पस का माहौल ख़राब हो और किसी की भावना को ठेस पहुंचे। अपने साथ हुई कार्रवाई की स्वतंत्र जांच के लिए कुलपति को पत्र लिख कर भिजवा दिया है और दिल्ली स्थित अनुसूचित जाति और जनजाति आयोग को अपनी शिकायत मेल भी किया हूं”।

उच्च पदों पर बैठे लोग।

डॉ मिथिलेश आगे कहते हैं कि आप देखिए, मेरी पोस्ट में ‘नौ दिन के नवरात्र व्रत से अच्छा है कि महिलाएं नौ दिन भारतीय संविधान और हिंदू कोड बिल पढ़ें। उनका जीवन गुलामी और भय से मुक्त हो जाएगा जय भीम।’ बस इतना ही लिखा गया है। जबकि कैम्पस में पर्चे बांटे गए हैं, उसमें साजिश के तहत एडिट करते हुए किसी अन्य की पोस्ट को जोड़कर मामले को विवादित रूप जान बूझ कर दिया गया और बखेड़ा खड़ा करने के लिए किया गया है। मेरे साथ विवि प्रशासन द्वारा एकतरफा कार्रवाई की गई है।

हमारी क़ानूनी टीम जल्द ही विवि प्रशासन के समक्ष अपना पक्ष रखने वाली है। साथ ही टेक्निकल एक्सपर्ट इस चालबाजी का खुलासा भी कुलपति महोदय के समक्ष करेंगे। जल्द ही मेरे खिलाफ साजिश करने वालों की आपराधिक प्रवृत्ति के छात्रों को मैं बेनकाब करने वाला हूँ। मेरे खिलाफ की गई विवि की कार्रवाई एकतरफा और बेबुनियादी आरोपों को आधार बनाकर की गई है। न्याय मिलने तक मैं संघर्ष करूँगा। पूर्वांचल, बनारस, दिल्ली और देश भर से लोगों का सहयोग मिल रहा है।’

उपद्रवियों के आगे नतमस्तक विवि प्रशासन 

उपद्रव के बाद विश्वविद्यालय के कुल सचिव डॉ सुनीता पांडे ने पत्र जारी किया। इसमें कहा गया है कि डॉक्टर मिथिलेश कुमार गौतम अतिथि अध्यापक राजनीतिक शास्त्र विभाग द्वारा हिंदू धर्म के खिलाफ सोशल मीडिया पर की गई पोस्ट के संबंध में विश्वविद्यालय के छात्रों द्वारा दिनांक 29 सितंबर को शिकायती पत्र प्राप्त हुआ है। गौतम द्वारा किए गए कृत्य के कारण विश्वविद्यालय परिसर में छात्रों में आक्रोश व्याप्त है तथा विश्वविद्यालय का वातावरण खराब होने एवं परीक्षा एवं प्रवेश बाधित होने की आशंका है। इस संबंध में मुझे यह करने का निर्देश प्राप्त हुआ है कि विश्वविद्यालय नियमावली के तहत मिथिलेश कुमार गौतम को तत्काल प्रभाव से बर्खास्त करते हुए विश्वविद्यालय परिसर में सुरक्षा को देखते हुए परिसर में प्रवेश प्रतिबंधित किया जाता है। 

प्रशासन द्वारा जारी किया गया बर्खास्तगी का पत्र।

काशी विद्यापीठ में उच्च पदों पर जातिवादी सवर्ण 

दिलीप मंडल और बनारस के पत्रकार राजीव सिंह ने यह लिखा और बताया कि काशी विद्यापीठ में उच्च पदों, जिसमें कुलपति एके त्यागी, रजिस्ट्रार सुनीता पांडेय, चीफ प्रॉक्टर अमिता सिंह और वित्त अधिकारी संतोष शर्मा समेत अन्य पदों पर सवर्णों का कब्जा है। गाहे-बगाहे अपना गैर न्यायिक चेहरा दिखने से नहीं चूकते हैं। दलित मिथिलेश के मामले में भी यही हुआ है। पिछड़े, दलित आदिवासी समाज से आने वाली मेधाओं को बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं, जबकि संविधान पूरी आजादी दे रहा है। 

सामाजिक भेदभाव आदि मसलों पर बारीक नजर रखने वाले विजय कुमार विश्वकर्मा कहते हैं कि विवि प्रशासन द्वारा नियमों को कम से कम मानना चाहिए था और नोटिस जारी कर लेक्चरर का पक्ष सुनने के बाद कोई फैसला करना चाहिए था। भारत का संविधान सभी नागरिकों को सामान अधिकार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान करता है। ऐसे में किसी के दबाव में आकर कार्रवाई करना अनुचित है। विवि को ऐसी चीजों से बचना चाहिए। इससे देश स्तर पर विवि की साख को नुकसान पहुंच रहा है। वंचित तबकों को एक कट्टर विचारधारा से प्रभावित लोगों  द्वारा षड्यंत्र पूर्वक निशाना बनाया जा रहा है। साथ ही बनारस समेत देशभर में इस कार्रवाई की आलोचना और निंदा की जा  रही है।

बनारस के बुद्धिजीवियों के अलावा दिल्ली से दिलीप मंडल ने भी संभाला मोर्चा 

बीएचयू अस्पताल के हृदय विभाग के एचओडी प्रो.ओम शंकर दलित लेक्चरर पर विवि की कर्रवाई को असंवैधानिक ठहराते हैं। वह कहते हैं कि निर्दोष दलित शिक्षक की बर्खास्तगी के लिए सीधे तौर पर कुलपति प्रो. एके त्यागी जिम्मेदार हैं। भारतीय संविधान देश के हर व्यक्ति को अभिव्यक्ति की आज़ादी देता है। संविधान को आस्था से ऊपर रखा गया है,  तो इसमें गलत क्या है ? वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल ने ट्वीट कर इस मुद्दे को और गरमा दिया है। उन्होंने कहा है की दलित शिक्षक की बर्खास्तगी के मामले पर बहुजन समाज के लोग ट्वीट कर अपना गुस्सा जता रहे हैं। उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा है, ”एक पोस्ट को लिखने के कारण यूपी में एक टीचर को नौकरी से हटा दिया गया है। इसका जवाब ये है कि मैं इसे शेयर करके लाखों लोगों तक पहुंचाऊंगा। अगर इसमें कुछ असंवैधानिक या गैरकानूनी है तो यूपी सरकार मुझ पर कार्रवाई कर सकती है। एक शिक्षक पर कार्रवाई करना बेहद शर्मनाक है। शिक्षक का काम ही वैज्ञानिक चेतना फैलाना है। संविधान के तहत ये उनका कर्तव्य है”।

( बनारस से पीके मौर्य की रिपोर्ट।)

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