Friday, April 19, 2024

यूपी में सपा और कांग्रेस के बीच हो सकता है गठजोड़!

नई दिल्ली। यूपी में कांग्रेस और सपा के बीच गठबंधन हो सकता है। हालांकि अभी तक आधिकारिक तौर पर कांग्रेस एकला चलो के ही रास्ते पर चलने की बात कह रही है। लेकिन बताया जाता है कि सपा से गठजोड़ को लेकर दोनों पक्षों के बीच बातचीत शुरू हो गयी है। पार्टी अभी भी चुनाव अपने बल पर लड़ने और उस लिहाज से संगठन को खड़ा करने की अपनी कवायद में जुटी हुई है और उसके लिए उसने जिलेवार प्रशिक्षण अभियान चला रखा है। चुनाव में गठबंधन के साथ जाने के पीछे तर्क यह दिया जा रहा है कि अगर अकेले चुनाव में गए तो सीटों के घाटे से लेकर विपक्ष की सरकार न बनने की स्थिति में हार की तोहमत भी पार्टी को मोल लेनी पड़ सकती है। जो एक विपक्ष के जिम्मेदार दल के तौर पर बेहद नुकसानदायक साबित हो सकता है।

सपा के साथ गठजोड़ हो इसका केंद्रीय स्तर पर प्रयास चल रहा है। और यह सिलसिला चरणबद्ध तरीके से आगे बढ़ रहा है ऐसा इस मामले से जुड़े जानकार लोगों का कहना है। बताया जा रहा है कि शुरू में कांग्रेस के दिल्ली से रहे एक सांसद को इस काम में लगाया गया था। और लेकिन सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने उसको कोई तवज्जो नहीं दी। उन्होंने सपा के खिलाफ कांग्रेस के चलाए जा रहे अभियान पर नाराजगी जाहिर की। अखिलेश यादव आजमगढ़ की एक घटना से बेहद आहत थे जिसमें कांग्रेस के एक हिस्से द्वारा उन्हें लापता बताया गया था। और इस सिलसिले में कुछ पोस्टर और बयानबाजी हुई थी। इस पर अखिलेश ने अपनी प्रतिक्रिया भी जाहिर की थी जिसमें उन्होंने कहा था कि कांग्रेस पहले यह तय कर ले कि उसे बीजेपी से लड़ना है या सपा से?

इस बीच कांग्रेस की तरफ से गठबंधन के लिए कुछ संगठित प्रयास हुआ है। जिसमें बताया जा रहा है कि कांग्रेस महासचिव और सूबे की प्रभारी प्रियंका गांधी के पिछले दौरे में कुछ बातें आगे बढ़ी हैं। इस काम में कांग्रेस के कुछ सूबे के नेताओं और वरिष्ठ पत्रकारों को लगाया गया था। जिसमें दोनों पक्षों के बीच शुरुआती बातचीत हुई है। सूत्रों की मानें तो अभी तक सपा कांग्रेस को 35 सीटें देने की बात कर रही है। लेकिन कांग्रेस उस पर तैयार नहीं है। हालांकि मामले की जानकारी रखने वालों का कहना है कि यह संख्या 55 से 60 तक जा सकती है। और उसमें शायद दोनों पक्ष उसके लिए तैयार हो सकते हैं। कांग्रेस से गठबंधन के संकेत उस समय भी सामने आए जब अखिलेश यादव ने एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि वह सूबे की छोटी पार्टियों के साथ गठबंधन करेंगे। उनके इस बयान पर जब किसी पत्रकार ने पूछ लिया तो क्या माना जाए कि कांग्रेस से गठबंधन नहीं होगा। इस पर अखिलेश ने कहा कि अन्य जगहों की बात अलग है लेकिन यूपी में वह कांग्रेस को भी छोटे दलों की ही श्रेणी में रखते हैं। लिहाजा कहा जा सकता है कि अखिलेश कांग्रेस से गठबंधन का रास्ता तलाश रहे हैं। और उसके लिए उन्होंने तर्क भी जुटाने शुरू कर दिए हैं। कुछ रिपोर्ट्स की मानें तो सपा 300 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने के बारे में सोच रही है। जबकि बाकी सीटें वह गठबंधन में शामिल दूसरे दलों को देना चाहती है।

दरअसल कांग्रेस के अलग से लड़ने में सपा को एक फायदा दिख रहा है। उसको लगता है कि प्रियंका गांधी का चेहरा सामने होने पर शहरी वोटों और खासकर मध्यवर्ग और उसमें भी ब्राह्मण हिस्से को प्रभावित किया जा सकता है जो बीजेपी का कोर वोट है। लिहाजा इस रणनीति से बीजेपी को अच्छा खासा नुकसान पहुंचाया जा सकता है। इसीलिए सपा गठजोड़ को बहुत ज्यादा तवज्जो नहीं दे रही है। अखिलेश यादव ने अपने एक बयान में इस बात को कहा भी था कि कांग्रेस और बसपा के साथ जाने का उनका अनुभव बहुत अच्छा नहीं रहा है। और उसी समय उन्होंने कहा था कि वो चाहते हैं कि प्रियंका गांधी यूपी में मजबूती के साथ अभियान चलाएं।

दरअसल कांग्रेस की अपनी एक मजबूरी भी है। प्रमुख राष्ट्रीय दल होने के नाते किसी और से पहले बीजेपी को हराने की जिम्मेदारी उसकी बनती है। ऐसे में इस लिहाज से अगर कहीं गठबंधन बनता है तो अपना कुछ घाटा सहते हुए भी उसे इस काम को करना होगा। यूपी में अगर किन्हीं विपरीत परिस्थितियों में विपक्ष सरकार बनाने में नाकाम रहा। और उसमें कांग्रेस गठबंधन से बाहर रही और अकेले चुनाव लड़ी तब हार के लिए वोट के बंटवारे को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है और इसका ठीकरा कांग्रेस के सिर फूटेगा। लिहाजा कांग्रेस भी इस तरह की किसी स्थिति से बचना चाहेगी।

बिहार में चुनाव के दौरान एआईएमआईएम को कुछ इन्हीं स्थितियों से गुजरना पड़ा जब वहां उसके अलग से चुनाव लड़ने के चलते आरजेडी के नेतृत्व वाले महागठबंधन की सरकार बनने से रह गयी। उसका बड़ा कारण एआईएमआईएम के मुस्लिम बहुल इलाकों से पांच सीटों पर जीत और बाकी सीटों पर गठबंधन को बड़े स्तर पर नुकसान पहुंचाना रहा। इतना ही नहीं कांग्रेस के ज्यादा सीटों पर लड़ने को भी एक कारण बताया गया। लिहाजा यूपी में कांग्रेस एआईएमआईएम की स्थिति में जाने से बचना चाहेगी। और वैसे भी अभी स्वतंत्र रूप से लड़ने पर कांग्रेस को उतना फायदा होता हुआ नहीं दिख रहा है लिहाजा गठबंधन उसके लिए अभी भी एक लाभदायक विकल्प है। जिसमें जाने की वह हरचंद कोशिश कर रही है।

(जनचौक ब्यूरो की रिपोर्ट।)    

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ जंग का एक मैदान है साहित्य

साम्राज्यवाद और विस्थापन पर भोपाल में आयोजित कार्यक्रम में विनीत तिवारी ने साम्राज्यवाद के संकट और इसके पूंजीवाद में बदलाव के उदाहरण दिए। उन्होंने इसे वैश्विक स्तर पर शोषण का मुख्य हथियार बताया और इसके विरुद्ध विश्वभर के संघर्षों की चर्चा की। युवा और वरिष्ठ कवियों ने मेहमूद दरवेश की कविताओं का पाठ किया। वक्ता ने साम्राज्यवाद विरोधी एवं प्रगतिशील साहित्य की महत्ता पर जोर दिया।

Related Articles

साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ जंग का एक मैदान है साहित्य

साम्राज्यवाद और विस्थापन पर भोपाल में आयोजित कार्यक्रम में विनीत तिवारी ने साम्राज्यवाद के संकट और इसके पूंजीवाद में बदलाव के उदाहरण दिए। उन्होंने इसे वैश्विक स्तर पर शोषण का मुख्य हथियार बताया और इसके विरुद्ध विश्वभर के संघर्षों की चर्चा की। युवा और वरिष्ठ कवियों ने मेहमूद दरवेश की कविताओं का पाठ किया। वक्ता ने साम्राज्यवाद विरोधी एवं प्रगतिशील साहित्य की महत्ता पर जोर दिया।