Saturday, April 20, 2024

स्पेशल रिपोर्ट: बीजेपी बिहार में फिर करना चाहती है सांप्रदायिकता के घोड़े की सवारी

2015 के बिहार विधान सभा चुनावों से पहले राष्ट्रीय जनता दल और जनता दल ने हाथ मिला लिया था। सात साल के बाद 2024 लोकसभा चुनाव से पहले जदयू फिर एक बार बीजेपी से नाता तोड़कर यूपीए से हाथ मिला लिया है।

इस सत्ता परिवर्तन के बाद हुई बीजेपी के चुनावी अभियान में खास फर्क नजर आ रही हैं। बीजेपी ने 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव के चुनाव प्रचार की शुरुआत के लिए पटना के गांधी मैदान का चयन किया था। वहीं बीजेपी के नेता 2024 के लोकसभा चुनाव अभियान की शुरुआत मुस्लिम-बहुल सीमांचल क्षेत्र से करेंगे। जिसमें कटिहार, पूर्णिया, अररिया और किशनगंज के चार ज़िले आते हैं।

मुस्लिम-बहुल सीमांचल का चयन क्यों

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कटिहार में 44.47% किशनगंज में 70% पूर्णिया में 35% और अररिया में 42.95% हैं। वहीं लोकसभा सीट के आधार पर सर्वाधिक मुस्लिम वोटर वाला लोकसभा क्षेत्र किशनगंज है, यहां मुस्लिम वोटरों की संख्या 67 फीसदी है, वहीं दूसरे स्थान पर कटिहार है, जहां मुस्लिम वोटर की संख्या 38 फीसदी, अररिया में 32 फीसदी, पूर्णिया में 30 फीसदी।

ऑल इंडिया रेडियो पूर्णिया में काम कर रहे रंजन झा बताते हैं कि “सीमांचल में उसका चुनावी अभियान मुस्लिम वोट के लिए नहीं बल्कि हिंदू वोटों को संगठित करने के लिए है। सीमांचल के चुनावी प्रचार का असर पश्चिम बंगाल के ज़िलों में भी जाएगा, जो सीमांचल से सटा हुआ है और जहां मुस्लिम की आबादी अधिक है। एक बात तय है कि नीतीश और तेजस्वी के गठबंधन के बाद बीजेपी को बिहार में काफी नुकसान होगा। जिसका भरपाई वह बंगाल से करना चाह रहे हैं। साथ ही बिहार के ऐसे क्षेत्रों पर उनकी नजर हैं। जहां हिंदू बनाम मुस्लिम की राजनीति जाति प्रणाम जाति की राजनीति पर हावी हो।”

हिंदू बनाम मुस्लिम की राजनीति

नीतीश तेजस्वी के नए गठबंधन में सीमांचल से दो मुस्लिम नेता मंत्री बने। जिसमें सीमांचल के कसबा से कांग्रेस विधायक आफ़ाक़ आलम और सीमांचल के जोकीहाट से राजद विधायक शाहनवाज़ को शामिल किया गया है। राजद-जदयू महागठबंधन की इस सरकार में इस बार 5 मुस्लिम चेहरों को मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है। वहीं भाजपा-जदयू गठबंधन में सिर्फ दो मुस्लिम चेहरों को शामिल किया गया था। जबकि बिहार में लगभग 16 से 17% मुस्लिमों की आबादी है। गौरतलब है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में सीमांचल की 4 सीटों में से बीजेपी केवल एक ही सीट जीत सकी थी।

बुल्डोजर से गिराए गए मकान

पश्चिम बंगाल के प्रमुख अखबार बंगाल पोस्टके संपादक रह चुके संजीव बिहार और बंगाल की राजनीति पर गहरी दिलचस्पी रखते हैं। वो बताते हैं कि “यादव को राजद का कोर वोटर कहा जाता है। लेकिन यही कोर वोटर सीमांचल में बीजेपी के समर्थन में खड़ा रहता है। क्योंकि वहां के स्थानीय नेता को लगता है कि बीजेपी से उन्हें टिकट मिल जाएगा लेकिन राजद से नहीं। क्योंकि मुस्लिम भी राजद का कोर वोटर है और सीमांचल मुस्लिम बहुसंख्यक इलाका है। आप ऐसे भी समझिए उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश और अन्य हिंदी पट्टी इलाके के तुलना में बिहार में आरएसएस बहुत कमजोर है। लेकिन सीमांचल में यही आरएसएस बड़ी मजबूती से अपनी राजनीति कर रहा है।”

“इसके साथ ही असदुद्दीन ओवैसी की अगुवाई वाली ऑल इंडिया मजलिसे इत्तेहादुल मुस्लेमीन को भी 2020 की तरह मुस्लिम वोट मिलेंगे जिससे सीमांचल में जदयू-आरजेडी-कांग्रेस की संभावनाओं पर असर पड़ेगा। जदयू राजद गठबंधन के बाद अगर बीजेपी बिना किसी चेहरे के मैदान में उतरती है तो उन्हें भारी नुकसान पहुंचेगा। जिस नुकसान के लिए वो मुस्लिम बाहुल्य बिहारी इलाका और बंगाल में हिंदू बनाम मुस्लिम की राजनीति करेगी। सीमांचल में अमित शाह का दौरा शायद इसकी शुरुआत है। ” आगे संजीव बताते हैं।

किशनगंज को कैराना बनाने की तैयारी है क्या?

उत्तर प्रदेश क्या एक जगह कैरानाजो जगह हिंदू के पलायन की वजह से चर्चा में आया था। कैराना में पलायन का मुद्दा बीजेपी के पूर्व सांसद हुकुम सिंह के उठाने के बाद ही राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आया था। हुकुम सिंह ने 2016 में पलायन करने वाले 346 लोगों की एक सूची भी जारी की थी। हालांकि इस सूची में शामिल लोगों की कभी आधिकारिक तौर पर पुष्टि भी नहीं की गई। साथ ही कई मीडिया के ग्राउंड रिपोर्टिंग ने हुकुम सिंह के आरोप को बेबुनियाद ठहराया था।

बिहार के वरिष्ठ पत्रकार संतोष सिंह बताते हैं कि, “सीमांचल खासकर किशनगंज बिहार का एक ऐसा इलाका है जहां हजारों एकड़ में बढ़िया क्वालिटी की इच्छा की खेती होती है। अनानास और ड्रैगन फ्रूट की खेती होती है। इसके अलावा किशनगंज के पास सब्जी के लिए एक बहुत बड़ा बाजार है। मतलब इतना खुशहाल किसान बिहार के दूसरे जिले में नहीं है। इसकी मुख्य वजह है बांग्लादेशी मुसलमान। क्योंकि बांग्लादेशी मुसलमानों की वजह से इन इलाकों में हुनरमंद और शारीरिक रूप से मजबूत मजदूर की कोई कमी नहीं है। जहां हिंदू और मुस्लिम भाई-भाई बनकर रहते हैं। व्यापार और वाणिज्य के फैलाव के कारण पहले से स्थिति काफी बदल गयी है और लॉ एंड ऑर्डर की स्थिति भी पहले से काफी बेहतर है।”

“लेकिन तस्लीमुद्दीन के परिवार का वर्चस्व कम होने और संघ का प्रभाव बढ़ने के बाद सीमांचल की स्थिति बदल गई है। बीजेपी किशनगंज मॉडल के सहारे बिहार के अन्य जिलों में मुसलमानों के खिलाफ माहौल बनाने की कोशिश करेगी। लोगों को सावधान रहना पड़ेगा। नहीं तो मीडिया के एक समूह के सहारे बीजेपी किशनगंज को कैराना बनाने में देर नहीं करेगी।”

VHP की मांग, किशनगंज व अररिया को मिलाकर केंद्र शासित प्रदेश हो घोषित

अमित शाह के आगमन के साथ ही हिंदू बनाम मुस्लिम राजनीति की शुरुआत विश्व हिंदू परिषद ने कर दी है। विश्व हिन्दू परिषद के बिहार झारखंड के संपर्क प्रमुख अधिवक्ता अशोक श्रीवास्तव किशनगंज में आयोजित प्रेस वार्ता में कहते हैं कि, “मालदा से अलीपुरद्वार तक 300 किमी लंबी पट्टी से लगी सीमा पर नेपाल, बांग्लादेश व भूटान स्थित है। सीमांचल के किशनगंज और अररिया को मिलाकर अगर इसको केंद्र शासित प्रदेश घोषित कर दिया जाता है तो शायद यह क्षेत्र सुरक्षित हो जाएगा और हिन्दुओं को प्रताड़ना नहीं झेलना पड़ेगा। रोहिंग्या मुसलमान व बांग्लादेशी घुसपैठ किशनगंज में प्रतिदिन हजारों की संख्या में बढ़ रहा है। लेकिन प्रशासन का ध्यान नहीं है।”

विश्व हिंदू परिषद की इस मांग के बाद जब पत्रकारों ने बीजेपी अध्यक्ष संजय जयसवाल से इस सवाल का जवाब मांगा तो उन्होंने पूरी खबर को बेबुनियाद और बचकानी बताया। संजय जायसवाल ने कहा कि सीमांचल बिहार का एक अहम हिस्सा है और इसे राज्य से अलग करने का कोई सवाल ही नहीं पैदा होता।

अमित शाह के आने की तैयारी है क्या?

किशनगंज MGM मेडिकल कॉलेज के पास के अलावा कई जगह प्रशासन के द्वारा अतिक्रमण को हटाने के लिए बुलडोजर का उपयोग किया गया। बुलडोजर की इस कार्रवाई को अमित शाह के आगामी यात्रा की तैयारी से देखा जा रहा है।

किशनगंज MGM मेडिकल कॉलेज के छात्र बादल फेसबुक पर लिखते हैं कि, “यह सब अमित शाह के आगामी यात्रा के लिए किया जा रहा है। जहां किशनगंज जिला प्रशासन ने अतिक्रमण हटाने के बहाने सैकड़ों गरीबों का आशियाना उजाड़ दिया, रोजी रोटी का एक मात्र जरिया जिससे घर परिवार चल रहा था, उन्हीं दुकानों पर बुलडोजर चला दिया। दूसरी तरफ उसी सरकारी जमीन पर बने भाजपा जिला अध्यक्ष की दुकान के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की गयी। मतलब भाजपा है तो सब मुमकिन है।”

पक्ष-विपक्ष की बयानबाजी शुरू

अमित शाह के सीमांचल दौरे की खबर आने के बाद बिहार के कई नेता अपनी प्रतिक्रिया दे चुके हैं। सीमांचल की धरती यानी कटिहार में पप्पू यादव ने मीडिया के सामने बताया कि, “बीजेपी के लोग बिहार में बेरोजगारी और कोसी की बाढ़ पर बात करने नहीं आ रहे हैं। न ये शिक्षा पर बात करेंगे, ना ही बिहार में बीमारियों की समस्याओं पर। ये लोग बस धर्म की राजनीति करने आ रहे हैं। इन्हें पता नहीं सीमांचल अमन पसंदों की धरती है। यहां नफरत पैदा कर अमित शाह जी और नड्डा जी राज नहीं कर सकते हैं।”

वहीं प्रदेश बीजेपी प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल ने मीडिया से कहा कि, “सीमांचल का इलाका एक संवेदनशील इलाका है। ये इस्लामिक आतंकवाद, बांग्लादेश से घुसपैठ और आईएस गतिविधियों का केंद्र है। अमित शाह की यात्रा इसी सब के विरोध में है।”

वहीं जदयू के राष्ट्रीय संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा अमित शाह की इस यात्रा पर कहते हैं कि, “सब जानते है कि बीजेपी ने अपनी मुहिम की शुरुआत के लिए सीमांचल को क्यों चुना है। लेकिन वो सफल नहीं होगी क्योंकि वहां पर हमारा सामाजिक आधार बहुत बड़ा है, और हमारे मतदाता बीजेपी के सांप्रदायिक एजेंडा के उद्देश्य के प्रति कहीं अधिक जागरूक हैं। आने वाले 2024 के चुनाव में बिहार में बीजेपी की तालिका एकल अंक में रहेगी।”

(सीमांचल से राहुल की रिपोर्ट।)

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