Saturday, April 20, 2024

कांकेर ने जो घंटी बजाई है, क्या भूपेश बघेल ने सुना उसे!

आप पत्रकार हैं तो यह फोटो देखें, नहीं हैं तो भी देखें। यह वरिष्ठ पत्रकार की है। इनकी बेरहमी से पिटाई हुई है। थाने से निकाल कर। यह घटना छत्तीसगढ़ के कांकेर की है। कांग्रेस के शीर्ष पर बैठीं प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश में काफी सक्रिय हैं। अच्छी बात है। वे हर उस जगह जाती हैं, जहां लोगों का दमन उत्पीड़न होता है। वे आवाज भी उठाती हैं, दबे-कुचले लोगों की। राजनीति का नया हथियार ट्विटर है, इसलिए वे ट्वीट भी करती हैं, पर क्या पिछले चौबीस घंटे में उन्होंने एक पत्रकार की बेरहमी से हुई पिटाई पर कोई ट्वीट किया? सवाल इसलिए, क्योंकि यह मामला कांग्रेस शासित राज्य से जुड़ा है। यह उनकी पार्टी की साख से जुड़ा है। उस राज्य से जुड़ा है, जहां उनकी पार्टी राजनीति का वनवास झेलकर लौटी है। दंडकारण्य अंचल की बात कर रहा हूं।

यह छतीसगढ़ है, जिसके कांकेर जिले में कल शनिवार को बस्तर के वरिष्ठ पत्रकार कमल शुक्ल को घेर का मारा गया। शनिवार को कांकेर कोतवाली के पास दिनदहाड़े हुए इस हमले में वह बुरी तरह जख्मी हो गए। उनके सर में गंभीर चोट आई है। यह काम कांग्रेसियों ने किया। साथ ही यह संदेश दिया है कि इस आदिवासी अंचल में जो सच लिखेगा वह मारा जाएगा। पर यह कोई नई शुरुआत तो है नहीं। इसकी नींव तो काफी पहले ही पड़ गई थी, जिसे जानने-समझने के लिए थोड़ा इतिहास में जाना चाहिए।

देश के नक़्शे पर छतीसगढ़ नाम का आदिवासी बहुल राज्य जब बन रहा था, तब यह संवाददाता उसे बनते देख रहा था। रायपुर तब राजधानी नहीं बदली थी, तभी कुछ राष्ट्रीय अखबारों ने वहां अपने संवाददाता भेज दिए थे। पर ये सब अंग्रेजी अखबारों के ही थे। इंडियन एक्सप्रेस ने मुझे रायपुर भेजा था, इस राज्य के गठन से कुछ समय पहले ही।

फिर कुछ वर्ष वहीं रहा, जब तक तत्कालीन मुख्यमंत्री ने दबाव डाल कर अपना तबादला नहीं करा दिया। सिर्फ खबरों की वजह से ही। वे खबरें नहीं बर्दाश्त कर पा रहे थे। काफी प्रयास भी किया कि वैसी खबरें न लिखी जाएं जो सत्ता पर सवाल उठाती हों। अंततः मुझे जाना ही पड़ा। पर मेरे रायपुर छोड़ने के साथ ही राज्य में सत्ता बदल गई और कांग्रेस के हाथ से जो सत्ता फिसली वह कुछ समय पहले ही मिली है। करीब डेढ़ दशक बाद। वजह पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी का निरंकुश तौर तरीका रहा और अफसरों की हेकड़ी भरे फैसले।

याद है किस तरह विपक्षी दल के प्रदर्शन का नेतृत्त्व कर रहे भाजपा नेता नंद कुमार साय पर बुरी तरह लाठी चलाई गई थी। घुटने तो तोड़ ही दिए गए थे, साथ ही कई जगह फैक्चर हुआ था। रायपुर के पुराने सर्किट हाउस में वे छह महीने से ज्यादा बिस्तर पर लेटे रहे। हम लोग उनसे मिलते भी थे और देखते भी थे। ऐसे ही कोसमसरा में आदिवासी महिलाओं को नंगा करके बुरी तरह पीटा गया। इंडियन एक्सप्रेस में खबर दी मैंने वहां जाकर। बाद में यह मुद्दा भी गरमाया। पुलिस को खुली छूट मिली हुई थी।

मेधा पाटकर के साथ बस्तर दौरे पर गया तो जगदलपुर के सर्किट हाउस में मेरे सामने मेधा पटकार पर कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने हमला किया और उसी दिन रात को मुख्यमंत्री जब मेधा पाटकर से मिले तो उन्हें कांग्रेसियों की गुंडागर्दी का कोई अफसोस नहीं था। उलटे उन्होंने मेधा पर नाराजगी जताई कि वे बस्तर गईं क्यों थीं। यह बानगी है कुछ घटनाओं की, जिन्हें मैंने देखा और लिखा। फिर जनसत्ता के हमारे दफ्तर पर हमला हुआ। खबरों को लेकर। कुछ साथी घायल हुए। पर उसके बाद आंदोलन चला और वह सरकार जो भारी लोकप्रियता के साथ आई थी वह अलोकप्रिय होने लगी और फिर चुनाव में चली गई। किसी को अफ़सोस नहीं हुआ। यह पृष्ठभूमि है, ताकि आगे समझने में आसानी हो।

डेढ़ दशक बाद सत्ता में लौटी कांग्रेस के इस राज में कांकेर जिले में जो घटना हुई वह फिल्मों जैसी है। हिंसा प्रधान फिल्मों जैसी। एक पत्रकार थाने में जाता है, दूसरे पत्रकार की मदद करने। ये और कोई नहीं बस्तर के वरिष्ठ पत्रकार कमल शुक्ल थे जो थाने गए थे। अचानक लोग आए और थाने से उन्हें बाहर ले गए पीटते हुए। ये पीटने वाले सारे के सारे संत पुरुष सोनिया गांधी राहुल गांधी की पार्टी यानी कांग्रेस के गुंडे थे। उन्होंने खुलकर गुंडागर्दी की। ये सभी कांकेर जिले की नगर पालिका से जुड़े लोग थे। कुछ सभासद भी। ज्यादातर ठेकेदार के लोग हैं। इस जिले ही नहीं कई जिलों में कांग्रेस पार्टी ठेकेदारों की पार्टी बन रही है, जैसे पहले भाजपा थी।

एक वरिष्ठ पत्रकार ने नाम न देने की शर्त पर कहा, कांग्रेस के लोगों को ही अब सारा ठेका मिलता है। वे कार्यकर्त्ता नेता के बजाये ठेकेदार बन चुके हैं। कांकेर में इनके खिलाफ लिखने वाले पत्रकार को पहले धमकी दी गई। फिर जब कमल शुक्ल इस मामले में उनकी मदद करने आए तो उन्हें थाने के बाहर घेर कर पीटा गया। उसका वीडियो बना। वायरल हुआ। जब राज्य पुलिस के मुखिया डीएम अवस्थी ने देखा तब एफआईआर हुई। पर कांग्रेसियों पर कोई असर पड़ा हो यह नजर नहीं आया।

दरअसल यह मामला कांग्रेस के जिला स्तर के नेताओं और जिला प्रशासन की मिलीभगत से हो रही ठेका पट्टी की लूट का है। इसे लेकर मीडिया में जब लिखा गया तो इस तरह से मारने-पीटने की घटना हुई, ताकि फिर कोई हिम्मत न करे। जिला या राज्य स्तर के कांग्रेसी ने इससे कुछ कम खा लेंगे पर सोनिया, राहुल और प्रियंका गांधी की कांग्रेस को कहीं फिर बड़ी कीमत न चुकाना पड़े। यह ध्यान रखने का काम मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का है। विधानसभा चुनाव के बाद लोकसभा का भी चुनाव हुआ था, नतीजा पता है न!

(वरिष्ठ पत्रकार अंबरीश कुमार शुक्रवार के संपादक हैं और 26 वर्षों तक एक्सप्रेस समूह में अपनी सेवाएं दे चुके हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

लोकतंत्र का संकट राज्य व्यवस्था और लोकतंत्र का मर्दवादी रुझान

आम चुनावों की शुरुआत हो चुकी है, और सुप्रीम कोर्ट में मतगणना से सम्बंधित विधियों की सुनवाई जारी है, जबकि 'परिवारवाद' राजनीतिक चर्चाओं में छाया हुआ है। परिवार और समाज में महिलाओं की स्थिति, व्यवस्था और लोकतंत्र पर पितृसत्ता के प्रभाव, और देश में मदर्दवादी रुझानों की समीक्षा की गई है। लेखक का आह्वान है कि सभ्यता का सही मूल्यांकन करने के लिए संवेदनशीलता से समस्याओं को हल करना जरूरी है।

Related Articles

लोकतंत्र का संकट राज्य व्यवस्था और लोकतंत्र का मर्दवादी रुझान

आम चुनावों की शुरुआत हो चुकी है, और सुप्रीम कोर्ट में मतगणना से सम्बंधित विधियों की सुनवाई जारी है, जबकि 'परिवारवाद' राजनीतिक चर्चाओं में छाया हुआ है। परिवार और समाज में महिलाओं की स्थिति, व्यवस्था और लोकतंत्र पर पितृसत्ता के प्रभाव, और देश में मदर्दवादी रुझानों की समीक्षा की गई है। लेखक का आह्वान है कि सभ्यता का सही मूल्यांकन करने के लिए संवेदनशीलता से समस्याओं को हल करना जरूरी है।