Friday, April 26, 2024

आखिर कब तक गौवंशी चरते रहेंगे किसानों की ज़िदगी?

“मेरे ये शब्द लिखकर रखिए, ये मोदी बोल रहा है और आपके आशीर्वाद के साथ बोल रहा है। जो पशु दूध नहीं देता है, उसके गोबर से भी आय हो, ऐसी व्यवस्था मैं आपके सामने खड़ी कर दूंगा।” नरेंद्र मोदी के 6 महीने पुराने बयान को शब्दशः दोहराते हुए राम सिंह पटेल कहते हैं सा…ये भी जुमला निकला। हम किसान तो उसकी बात सुनकर ही गदगद थे कि उसने आवारा पशुओं की समस्या को संबोधित किया है तो ज़रूर उसका समाधान भी करेगा। मैंने कहा क्या आप नहीं जानते जुमला या जुमलेबाज शब्द का इस्तेमाल करना भी आपको नई मुसीबत में डाल सकता है। प्रधानमंत्री के पद का असम्मान करने के जुर्म में आपको गिरफ़्तार भी किया जा सकता है। राम सिंह कहते हैं फिर तो बात ही खत्म। वो मिसरा है ना कि ‘जबरा (दबंग) मारे और रोने भी न दे।

किसान राम सिंह पटेल का उपरोक्त बयान किसान निर्भान सिंह की आत्महत्या के संदर्भ में आया है। दरअसल एक ऐसे समय में जब आषाढ़ में बादलों का कहीं नाम-ओ-निशान नहीं था, अकाल के पूरे लक्षण नज़र आ रहे थे जिला शाहजहांपुर, थाना ख़ुदाबाद, गांव नौगवाँ मवैया के किसान निर्भान सिंह ने महँगे दाम में पानी ख़रीदकर अपने डेढ़ बीघे खेत में धान की रोपाई की। महँगे बीज, महँगी खाद, महँगे कीटनाशक, महँगी जुताई, महँगी सिंचाई, और निर्भान सिंह ठहरे छोटे किसान, उनकी इतनी समाई न थी कि बिना कर्ज़ लिये खेती कर पाते तो उन्होंने कर्ज़ भी ले रखा था। आधे सावन जब धान की पूती से नये कल्ले फूटकर हरे-भरे हो रहे थे छुट्टा घूमते गौवंशियों ने निर्भान सिंह की पूरे डेढ़ बीघे की धान की फसल एक तरफ से चरकर बैठा दिया।

अगली सुबह जब नित्य क्रिया के लिये घर से निकले किसान निर्भान सिंह फ़ारिग होकर अपने खेत में पहुंचे तो गौवंशियों द्वारा चरी हुई धान की फसल को देख उसका कलेजा फट पड़ा। निर्भान सिंह बिलख बिलख कर रोने लगे। हाय मेरी साल भर की कमाई चर उठी। क्या खिलाऊंगा बच्चों को, कैसे परिवार का पेट पलेगा। खेती के अलावा उनके पास कमाई का कोई और ज़रिया नहीं था। सामने बर्बाद फसल और कर्ज़ का बोझ। वहां खेत में उन्हें कोई धीरज बँधाने वाला भी तो न था। निर्भान सिंह का दुख उनकी पीड़ा उनकी समाई से बाहर चली गई। 6 अगस्त को निर्भान सिंह ने खेत में खड़े पेड़ पर फांसी लगाकर अपनी जान दे दी। या यूं कहें कि गौवंशियों को छुट्टा छुड़ाने वाली इस व्यवस्था, इस सरकार ने उनके पास मरने के अलावा और कोई चारा ही नहीं छोड़ा। 35 वर्षीय निर्भान सिंह की अभी दो साल पहले ही शादी हुई थी। उनकी जीवन संगिनी के गर्भ में 7 माह का बच्चा पल रहा है। 

 प्रधानमंत्री मोदी ने किया था गौवंशियों के निपटारे का वादा

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी की चुनावी फिज़ा बिगड़ती देख प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी ने 17 फरवरी को फतेहपुर में चुनावी मंच से यूपी से आवारा पशुओं की समस्या को दूर करने का भरोसा दिलाते हुये कहा था कि 10 मार्च को दोबारा सरकार बनने पर इस संकट को दूर किया जायेगा। और ऐसा इंतजाम किया जाएगा जिससे गोबर से भी पशुपालकों की कमाई हो। यही नहीं चुनावी मंच से नरेंद्र मोदी ने किसानों को बड़े ख्वाब दिखाते हुये आगे कहा था कि वो यूपी में डेयरी सेक्टर के विस्तार के लिये पशुपालन को बढ़ावा देने के लिये निरंतर काम कर रहे हैं। पूरे यूपी में बायोगैस प्लांट का नेटवर्क भी बनाया जा रहा है। उन्होंने आगे कहा था कि जो डेयरी प्लांट हैं वह गोबर से बनी बायोगैस से बिजली बनाएं, इसकी व्यवस्था की जा रही है।

चुनावी मंच से मोदी ने किसानों को गोबर से कमाई का झांसा देते हुये कहा था कि जो बेसहारा पशु हैं उनके गोबर से भी पशुपालक को इनकम हो, अतिरिक्त कमाई हो, इस दिशा में वो काम कर रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा था कि यूपी में बेसहारा पशुओं के लिये गौशाला के निर्माण का काम चल रहा है। उन्होंने दोबारा सरकार बनाने का दम भरते हुये कहा था कि 10 मार्च को दोबारा सरकार बनने के बाद ऐसे कार्यों को गति दी जायेगी ताकि बेसहारा पशुओं से होने वाली परेशानी कम हो और आपका जो संकट है उसको हम दूर कर पाएं, यह हम चिंता करते हैं।

 क्या हाल है प्रदेश में किसानों का

जौनपुर जिले के किसान रवीन्द्र धर दूबे बताते हैं कि आवारा छुट्टा गौवंशी जानवरों ने किसानों का खाना-पीना जीना सब दुश्वार कर दिया है। किस तरह से? ये पूछने पर वो बताते हैं कि गौवंशियों ने फसलों की विविधता को नष्ट कर दिया है। लोग अरहर जैसे दलहन छोड़कर सरसों बोने लगे हैं। मक्का, बाज़रा, ज्वार छोड़कर धान बोने लगे हैं क्योंकि गौवंशी जानवर अरहर और मक्का जैसी फसलों को बड़े चाव से चरते हैं। वहीं अब खेती में महँगी लागत और फिर लागत डूबने के डर से कई किसान परती छोड़ दे रहे हैं खेत, और करें ही क्या आखिर। क्या पहले छुट्टा जानवरों का आतंक नहीं था? पूछने पर रवींद्र धर दूबे कहते हैं पांच साल पहले ये जानवर नहीं थे। हद से हद नीलगाय दिखती थीं, वो भी गिनी चुनी। इस सरकार ने प्रदेश के किसानों को ‘छुट्टा जानवरों’ की सौगात दी है।   

प्रतापगढ़ जिले की एक महिला किसान धान के फसल की अति लागत का संदर्भ उठाते हुए बताती हैं कि पारंपरिक फसलों में धान एक ऐसी फसल है जिसकी लागत सबसे ज़्यादा आती है और इसमें श्रम भी ज़्यादा लगता है। जबकि अपेक्षाकृत उपज और आमदनी उतनी नहीं होती। छुट्टा जानवरों विशेषकर गायों और साड़ों ने खेती पर गुज़ारा करने वालों के लिये जीवन मुश्किल कर दिया है।

जौनपुर के एक किसान नेता कांसिपिरेसी थियरी के दृष्टिकोण से इसे देखते हैं और कहते हैं यह एक बड़ी साजिश भी हो सकती है कि किसानों के खेत खलिहान अडानी-अंबानी के हाथों सौंपने की। पहले किसानों के पास से उनके परंपरागत बीज ग़ायब किये गये। फिर डीजल पर से सब्सिडी खत्म की गई, जिससे सिंचाई की लागत बढ़ गई। फिर सरकार की ओर से ब्लॉक स्तर पर किसानों को उपलब्ध कराये जाने वाले बीज, दवाई, कीटनाशक, कृषि उपकरणों आदि पर सब्सिडी खत्म कर दी गई। खेती के समय कभी नोटबंदी तो कभी लॉकडाउन लगाकर समस्यायें पैदा की गईं। बुआई के समय यूरिया, डीएपी, पोटाश जैसे कृत्रिम उर्वरकों आदि की किल्लत पैदा की जाने लगी। अब छुट्टा जानवरों के रूप में किसानों पर एक बड़ी आपदा थोप दी गई है कि करो कब तक खेती किसानी करोगे।

(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।) 

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