Friday, March 29, 2024

‘क्षेत्रपति वर्ग’ के लिए चुनौतीपूर्ण हो गया है मौजूदा दौर

भारत में ‘क्षेत्रपति वर्ग’ का उल्लेख वेदों में स्पष्ट रूप से मिलता है। यह वो वर्ग है जो  भूमि स्वामी रहे। इस वर्ग में विभिन्न नस्ल जातियां धर्म और क्षेत्रों के लोग मूल रूप से भूमि से जुड़े कार्यों से जीवन यापन करते थे। जो मुख्यत: किसान थे। भौगोलिक क्षेत्र में कृषि कार्यों पर आधारित जीवन शैली ने क्षेत्रपति वर्ग का निर्माण किया! 

कृषि उद्योग ही जीवन पद्धति का मूल अंग रहा! क्षेत्रपति वर्ग में नस्ल जाति धर्म का कोई आधारगत वर्गीकरण नहीं था  सभी जातियां धर्म नस्ल के लोग कृषि को ही उद्योग के  रूप में अपना कर सामूहिक समाज में प्रगतिशील हो कर आगे बढ़ते रहे हैं !

क्षेत्रपति वर्गों द्वारा हमेशा ही प्राकृतिक संसाधनों जल जंगल भूमि  पर्यावरण की रक्षा करने में पीढ़ी दर पीढ़ी महत्वपूर्ण योगदान किया गया  है । साम्राज्यवादी पूंजीवाद की तरह इन वर्गों ने संसाधनों का कभी दुरुपयोग नहीं किया । समाज द्वारा बनाये गये आदर्शों के पालन करने की परम्परा को ही जीवन का आधार बनाया। प्रकृति के वरदान व प्रसाद की रक्षा करने में  पीढ़ी दर पीढ़ी संयम से अपने कर्तव्य को निभाया है।

क्षेत्रपति वर्ग में कृषि व कुटीर उद्योग  मुख्य कार्य था । मशीनीकृत औद्योगिक विस्तार के नये युग में अर्थव्यवस्था के केन्द्र में जो कारण बने उनसे एक बड़ा अंतर बनना शुरू हुआ जिस के प्रभाव से क्षेत्रपति अर्थव्यवस्था कमज़ोर हुयी ।

वर्तमान भारत में आज इस वर्ग को अन्य पिछड़ा वर्ग श्रेणी में परिभाषित किया जाता है जो भारत के सभी प्रदेशों दक्षिण के तमिलनाडु से उत्तर मे कश्मीर पश्चिम में गुजरात से पूर्व मे असम तक बसे हुये हैं। भारत की  सीमाओं की रक्षा कर रही सेनाओं में भी इनका  योगदान सबसे अधिक है ।

मानवता के इतिहास में अर्थिक तौर पर कोई वर्ग या समुदाय इतना शक्तिहीन या असहाय नहीं हुआ जितना वर्तमान समय में क्षेत्रपति वर्ग है ।

आधुनिक औद्योगीकरण ने क्षेत्रपति वर्ग व समाज को पूरी तरह से प्रभावित किया है । औद्योगीकरण के कारण क्षेत्रपति वर्गों को नये रोजगार के अवसर में कुछ विशेष हासिल नहीं हो पाया क्योंकि नये रोजगार के लिये नियमित कौशल में ये वर्ग परम्परागत नहीं थे । अपने मूल कृषि व उससे जुड़े कार्यों में लगे रहने के कारण नये कार्यों के जरूरी कौशल को सीखने मे पीछे ही रहे।

वर्तमान समय में बढ़ती जनसंख्या की खाद्य आपूर्ति की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये सबसे महत्वपूर्ण संसाधन भूमि पर अब घोर पूंजीवादी नीतियों द्वारा कब्जा करने के लिये षड्यंत्रकारी ताकतों ने राजनीतिक व्यवस्था को अपना रास्ता बनाया है।  वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था में ये ताकतें अप्रत्यक्ष रूप से सक्रिय ही नहीं बल्कि नीतियों को स्थापित व संचालित कर रही हैं।

सदियों से जल-जंगल-जमीन व सीमाओं की रक्षा की भूमिका निभाने वाले भूमि के स्वामी क्षेत्रपति वर्ग व समाज के लिये ये सबसे चुनौतीपूर्ण दौर है। 

क्षेत्रपति वर्ग व समाज को हमेशा ही अपने अधिकारों के लिये कठिन चुनौतियों का  सामना करना पड़ा है लेकिन अपने अथक प्रयास और परिश्रम से अपनी संस्कृति परंपरा परिवेश अस्मिता उद्यम के सहारे अपने मूल कृषि कार्यों की उत्पादकता से अपनी जीवनशैली को संरक्षित रखते रहे हैं। 

आज के समय में जिस प्रकार ये वर्ग रोजगार व अन्य मोर्चों पर चुनौतियों का सामना कर रहा है वह कुछ सामान्य नहीं है । क्षेत्रपति वर्ग को षड्यंत्रकारी ताकतों के राजनीतिक उद्देश्यों के खिलाफ फिर से संगठित होने की अत्यंत आवश्यकता हो गयी है।

(जगदीप सिंह सिंधु वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल हरियाणा में रहते हैं।)

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