Thursday, March 28, 2024

Cinema

बलराज साहनी: अवाम को समर्पित रही जिंदगी

बलराज साहनी होना या बनना सबके बूते की बात नहीं और शायद इसीलिए उन सरीखी शख्सियत को जिन्हें दुनिया हमेशा याद रखेगी। इनका जन्म 1 मई 1913 को हुआ। यानी समूची दुनिया में मनाए जाते मजदूर दिवस के...

ग्राउंड रिपोर्ट: मानसून की बेरुखी से बर्बादी के कगार पर खड़े हैं चंदौली के किसान

चंदौलीवाराणसी। आया सावन झूम के... अब सिर्फ सिनेमा और समाज में किंवदंती में बनकर रह ही गया है। उत्तर प्रदेश में धान उत्पादन के बड़े हिस्से में शुमार पूर्वांचल के दर्जनों जनपद सूखे की कगार पर खड़े हैं। खेतों...

द कश्मीर फाइल्स का खतरनाक ‘सच’

भगवा पगड़ी और एक हिंदू उपदेशक की पोशाक पहने एक आदमी सिनेमा हॉल की आलीशान लाल आंतरिक साज-सज्जा के सामने खड़ा है। उसके एक हाथ में इस्पात का एक चमकदार त्रिशूल है और दूसरे में एक मोबाइल फोन। जैसे...

गौरव के उन पलों को फिर से जिंदा कर देती है 83

सिनेमा के सबसे मुख्य कार्य हैं दर्शकों का मनोरंजन करना और कोई सामाजिक संदेश देना। यदि आप सिनेमा को सिर्फ इतिहास समझने या कोई महत्त्वपूर्ण सीख लेने के लिए देख रहे हैं तो आप गलत जगह हैं, आपका रास्ता पुस्तकालय...

मनोरंजन की दुनिया का नया बादशाह है ओटीटी

सरदार उधम और जय भीम जैसी फिल्मों में ओटीटी पर रिलीज़ होने के बाद भी जिस तरह से सफलता पाई है, उसे देख अब फिल्मकारों का विश्वास ओटीटी पर ही बन गया है।           कोरोना की वज़ह...

उपहार अग्निकांड में सबूतों से छेड़छाड़ के लिए सुशील और गोपाल अंसल को सात साल कैद, ₹2.5-2.5 करोड़ जुर्माना

उपहार सिनेमा अग्निकांड के सबूत मिटाने के आरोप में अंसल बंधुओं- सुशील और गोपाल अंसल को सात साल की जेल की सजा सुनाई गई है। दिल्ली की एक अदालत ने इस मामले में दोनों भाइयों पर 2.5-2.5 करोड़ रुपये...

भारतीय सिनेमा और दलित पहचान : भारत जैसे जातिग्रस्त समाज के लिए ज़रूरी है `पेरारियात्तवर`

(ऐतिहासिक तौर पर भारतीय सिनेमा ने जहाँ फ़िल्मों के निर्माण में दलितों के श्रम का शोषण किया है वहीं उनकी कहानियों को मिटाया और हड़पा है। यह सब अकस्मात न था। परदे पर जब उनकी कहानियाँ दिखलाई जातीं तो...

भारतीय सिनेमा और दलित पहचान : फैंड्री ने खोला फिल्मों का नया फ़लक

(ऐतिहासिक तौर पर भारतीय सिनेमा ने जहाँ फ़िल्मों के निर्माण में दलितों के श्रम का शोषण किया है वहीं उनकी कहानियों को मिटाया और हड़पा है। यह सब अकस्मात न था। परदे पर जब उनकी कहानियाँ दिखलाई जातीं तो...

‘द लिस्ट : मीडिया ब्लडबाथ इन कोविड टाइम्स’ यानी पत्रकारों पर कोरोना कहर की जिंदा दास्तान

ऐसा माना जाता है कि पत्रकारिता एवं फिल्में समाज का आईना होती हैं। समाज में जो कुछ हो रहा होता है उसे मुकम्मल तौर पर समाज के सामने लाने की जिम्मेदारी पत्रकारिता की ही होती है। फिल्मों को कुछ...

भारतीय सिनेमा के एक स्तंभ का जाना

माणिक दा यानी सत्यजित राय के चहेते अभिनेता सौमित्र चटर्जी 15 नवंबर को दोपहर 12 बज कर 15 मिनट पर विदा हो गए। सौमित्र चटर्जी यानी ‘फेलु दा’ सत्यजित राय के ‘शेरलॉक होम्स’ अब बांग्ला सिनेमा से रुख्सत चुके...

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ग्राउंड रिपोर्ट: रीति रिवाजों के नाम पर लैंगिक भेदभाव से मुक्त नहीं हुआ समाज

हमारे समाज में अक्सर ऐसे कई रीति रिवाज देखने को मिलते हैं जिससे लैंगिक भेदभाव स्पष्ट रूप से नज़र आता...