Friday, March 29, 2024

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क्या प्रशांत किशोर कांग्रेस को हिंदुत्व से लड़ने के लिए तैयार करेंगे ?

आखिरकार प्रशांत किशोर को 2024 के चुनावों में कांग्रेस को उबारने की जिम्मेदारी सौंप दी जाएगी। कई चुनावों में उन्होंने अपने हुनर का कमाल दिखाया है और उन लोगों ने राहत की सांस ली होगी जो नरेंद्र मोदी को...

क्या और व्यापक होगा किसान आंदोलन का दायरा?

अपनी ऐतिहासिक विजय के बाद 31 जनवरी को किसान संगठन फिर जुट रहे हैं, अपने अभूतपूर्व और शांतिपूर्ण आंदोलन की समीक्षा के लिये वे 31 जनवरी का दिन, देश भर में “विश्वासघात दिवस” के रूप में मनाएंगे। यह विश्वासघात...

भारतीय गणतंत्र पर छाया संकट का घटाटोप

भारतीय गणतंत्र की स्थापना का 73वां शुरू होने जा रहा है। किसी भी राष्ट्र या गणतंत्र के जीवन में सात दशक की अवधि अगर बहुत ज्यादा नहीं होती है तो बहुत कम भी नहीं होती। इसमें कोई दो राय...

काशी विश्वनाथ धाम कोरिडोर: धर्म क्षेत्र का कारपोरेटीकरण

प्रथमचरण 30 वर्ष पहले उदारीकरण निजीकरण और वैश्वीकरण की नीतियां भारत में लागू की गईं। जहां से भारत के विविध क्षेत्रों का निजीकरण यानी कॉरपोरेटाइजेशन शुरू हुआ। पहली प्राथमिकता थी कि इन नीतियों को आगे बढ़ाने के लिए अब तक...

चुनाव सुधार: ज्यों-ज्यों दवा दिया मर्ज बढ़ता ही गया

भारत में चुनाव सुधारों की चर्चा 90 के दशक के प्रारंभ में शुरू हुई थी। उस समय बैलेट पेपर से चुनाव हुआ करते थे ।बूथों पर कब्जा करना मत पेटियों को लेकर भागना और बाहुबलियों ताकतवर लोगों द्वारा वोट...

पांच साल बेमिसाल: ईन्यूज़रूम ने स्वतंत्र मीडिया के तौर पर बनाई खास पहचान

शाहनवाज़ अख़्तर द्वारा बनाई संस्था ईन्यूज़रूम इंडिया ने बिना किसी राजनीतिक समर्थन, कॉर्पोरेट सहयोग और बड़ी ग्रांट्स के अब तक अपने मीडिया संस्थान को चलाया।  ईन्यूज़रूम इंडिया (eNewsroom India) पूर्वी और मध्य भारत के टियर-2 शहरों को कवर करने वाला...

कारपोरेट शक्ति पर लोक शक्ति की विजय का वर्ष

देश के किसानों के लिए यह वर्ष ऐतिहासिक आंदोलन की सफलता का वर्ष रहा। वर्ष की शुरुआत बॉर्डरों पर किसान आंदोलन पर सरकारों के बेबुनियाद आरोपों और फ़र्ज़ी मुकदमों से हुई। बॉर्डरों पर किसानों को हमले भी झेलने पड़े।...

कॉरपोरेटी हिंदुत्व के फासीवादी फंदे से देश को निकालना ही नये साल का असली संकल्प

2021 के अंतिम तिमाही में कालिनेम, शिखंडी, खड्गसिंह और गोडसे का जिंदा होना क्या महज संयोग है कि सोचा समझा प्रयोग। 2021 की शुरुआत महामारी की क्रूर छाया और लोकतंत्र पर फासीवाद के मरणांतक हमले के साथ हुई थी।वहीं...

कृषि कानूनों के फिर आने का बरकरार है खतरा

19 नवंबर को किसान आंदोलन के दबाव में तीन कृषि कानूनों को एक तरफा प्रधानमंत्री द्वारा घोषणा करके वापस लेने का ऐलान किया था। तो मैंने पहली टिप्पणी लिखते हुए कहा था कि, सावधानी हटी दुर्घटना घटी। उस टिप्पणी...

किसान आंदोलन ने बदला देश का राजनैतिक एजेंडा: तपन सेन

कोरबा। किसान आंदोलन ने देश का राजनैतिक एजेंडा बदल दिया है। इस आंदोलन ने दिखा दिया है कि कॉर्पोरेट लूट को रोका जा सकता है, लेकिन इसके लिए मजदूर-किसान एकता को मजबूत बनाते हुए वर्ग संघर्ष तेज करना होगा।...

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बहुसंख्यकवादी नैरेटिव को टेका लगाती फिल्में: स्वातंत्र्यवीर सावरकर

फिल्म जनसंचार का एक शक्तिशाली माध्यम है जो सामाजिक समझ को कई तरह से प्रभावित करता है। कई दशकों...