Wednesday, April 24, 2024

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हिंदू-मुस्लिम सौहार्द के विलक्षण पैरोकार थे काजी नज़रुल इस्लाम

हिंदू-मुस्लिम सौहार्द के विलक्षण पैरोकार और महत आकांक्षी बांग्ला कवि-लेखक काजी नज़रुल इस्लाम आधुनिक बांग्ला काव्य एवं संगीत के इतिहास में निस्संदेह एक युग प्रवर्तक थे। प्रथम महायुद्ध के उपरांत आधुनिक बांग्ला काव्य में रवीन्द्र काव्य को एक मात्र...

जयंतीः गीतकार पंडित नरेन्द्र शर्मा ने ही आकाशवाणी को दिया ‘विविध भारती’

वे हिंदी की आन-बान और शान थे। उनका व्यक्तित्व बहुआयामी था। कवि-गीतकार, लेखक, अनुवादक, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और प्रशासक अपने जीवन में पंडित नरेन्द्र शर्मा को जो भी भूमिका मिली, उन्होंने उसके साथ पूरा न्याय किया। हिंदी साहित्य में...

फ़ैज़ की जयंतीः ‘अब टूट गिरेंगी ज़ंजीरें, अब जिंदानों की खैर नहीं’

उर्दू अदब में फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ का मुकाम एक अजीमतर शायर के तौर पर है। वे न सिर्फ उर्दू भाषियों के पसंदीदा शायर हैं, बल्कि हिंदी और पंजाबी भाषी लोग भी उन्हें उतनी ही शिद्दत से मोहब्बत करते हैं।...

भारतीय कवियों की जगह जेलें नहीं, लोगों के दिल हैं: इजरायली कवि

"भारत की जेलों को कवियों से नहीं भरा जाना चाहिए। कवियों को भारत और दुनियाभर के लोगों के दिलों में बसना चाहिए और मौजूदा दमनकारी व्यवस्था को चुनौती देनी चाहिए और मानवता की आवाज बनना चाहिए।" उपरोक्त बातें इजरायली कवियों...

मंगलेश डबराल : करुणा में डूबी धीमी भरोसेमंद आवाज़

उम्मीद की थरथराती लौ आख़िर बुझ गई। वरिष्ठ कवि-गद्यकार और पत्रकार मंगलेश डबराल नहीं रहे। उन्होंने बुधवार देर शाम 7 बजकर 10 मिनट पर ऑल इंडिया मेडिकल इंस्टीट्यूट (एम्स) में आखिरी सांस ली। कोरोना संक्रमण के कारण उन्हें क़रीब...

किसानों के समर्थन में अब लोकप्रिय कवि सुरजीत पातर ने लौटाया पद्मश्री

पचहत्तर वर्षीय मशहूर पंजाबी कवि सुरजीत पातर उन बेमिसाल हस्तियों में से एक हैं जिन्हें पुरस्कृत करके देने वाला स्वयं सम्मानित हो जाता है। अब सुरजीत पातर ने यह घोषणा की है कि केंद्र के कृषि कानूनों के खिलाफ...

हंसाते हुए संजीदा कर देने वाले शायर अकबर इलाहाबादी

दबंग फिल्म में सलमान खान का dialogue आपने सुना होगा ‘मैं दिल में आता हूं समझ में नहीं’। गुलाम अली की वो गज़ल भी कभी न कभी आपके कानों से होकर गुज़री होगी, ‘हंगामा है क्यूँ बरपा थोड़ी सी...

जयंती पर विशेष: हर तरह का पाखंड बना देवताले की कलम का निशाना

हिंदी साहित्य में साठ के दशक में नई कविता का जो आंदोलन चला, चंद्रकांत देवताले इस आंदोलन के एक प्रमुख कवि थे। गजानन माधव मुक्तिबोध, नागार्जुन, शमशेर बहादुर सिंह, केदारनाथ अग्रवाल जैसे कवियों की परंपरा से वे आते थे।...

पुण्यतिथि पर विशेषः साहिर का ‘वह सुबह कभी तो आएगी…’ बन गया था मेहनतकशों का तराना

साहिर लुधियानवी एक तरक्कीपसंद शायर थे। अपनी ग़ज़लों, नज़मों से पूरे मुल्क में उन्हें खूब शोहरत मिली। अवाम का ढेर सारा प्यार मिला। कम समय में इतना सब मिल जाने के बाद भी साहिर के लिए रोजी-रोटी का सवाल...

पूंजी की सभ्यता-समीक्षा के कवि मुक्तिबोध

मुक्तिबोध गहन संवेदनात्मक वैचारिकी के कवि हैं। उनके सृजन-कर्म का केंद्रीय कथ्य है-सभ्यता-समीक्षा। न केवल कवितायें बल्कि उनकी कहानियां, डायरियां, समीक्षायें तथा टिप्पणियां सार रूप में सभ्यता समीक्षा की ही विविध विधायें हैं, वह जो उपन्यास लिखना चाहते थे,...

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