Friday, April 19, 2024

इलाहाबाद यूनिवर्सिटी: 400 फीसदी फीस वृद्धि के खिलाफ छात्रों का आमरण अनशन 10वें दिन जारी, विपक्ष का मिला समर्थन

प्रयागराज। फीस वृद्धि के ख़िलाफ़ विगत 9 दिनों से इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रसंघ भवन के सामने आमरण अनशन पर बैठे हैं छात्र। आमरण अनशन पर बैठे छात्र आयुष प्रियदर्शी की तबियत मंगलवार को अचानक बिगड़ गई और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया। बता दें कि आयुष के अलावा अमित कुमार पांडेय, रफ़्तार भैया, सुधीर यादव, अनुराग यादव भी आमरण अनशन पर हैं। इससे एक दिन पहले सोमवार को छात्रों ने कैंपस में ही जन आक्रोश मार्च निकाला, जिसमें हजारों की संख्या में छात्र शामिल हुए। 7 दिन के भूख हड़ताल के बाद छात्रों ने गांधीवादी तरीके से विश्वविद्यालय परिसर में पैदल मार्च निकाला। कई छात्रों ने आमरण अनशन पर बैठे छात्रों को अपने कंधों पर लेकर पैदल मार्च में शिरकत की। 

छात्रों की भीड़ को देखते हुए मौके पर भारी पुलिस बल मौजूद रही। बता दें कि जून महीने में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी प्रशासन-प्रबंधन द्वारा फ़ीस वृद्धि की घोषणा की गई थी। जिस पर 31 अगस्त को इलाहाबाद यूनिवर्सिटी की कार्यकारी परिषद ने मुहर लगा दिया। इसके बाद से ही छात्रों में आक्रोश है और छात्र सड़कों पर उतरकर फीस वृद्धि की वापसी की मांग लेकर तीव्र विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। इससे पहले 24 अगस्त से लेफ्ट संगठन के छात्र भी आमरण अनशन पर बैठे थे। अनशन के छठे दिन 29 अगस्त को देवेंद्र व चंद्र प्रकाश समेत तीन छात्रों की तबियत बिगड़ने और बेहोश होने के बाद आमरण अनशन कुछ दिन के लिये टल गया था।

युवा मंच के संस्थापक संचालक राजेश सचान ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा है कि मोदी सरकार, विश्वविद्यालय प्रशासन के रवैये से छात्रों में आक्रोश व्याप्त है। प्रशासन इतना संवेदनहीन है कि छात्रों से वार्ता तक नहीं की जा रही है। छात्रों का कहना एकदम सही है कि छात्रों की फीस से विश्वविद्यालय के ख़र्च के लिए संसाधनों को जुटाने की नीति को अमल में लाने पर 4 हजार रुपए तक फीस सीमित रहने वाली नहीं है बल्कि जिस तरह आईआईटी, आईआईएम में इसी आधार पर लाखों रुपए फीस की गई भविष्य में यही हाल अन्य शैक्षणिक संस्थानों में भी होगा। इसीलिए विश्वविद्यालय के छात्रों में गहरा आक्रोश है लेकिन छात्र शांतिपूर्ण ढंग से आंदोलन चला रहे हैं। फीस वृद्धि के अलावा 25 महीने से भी ज्यादा समय से छात्रसंघ बहाली के मुद्दे पर शांतिपूर्ण ढंग से आंदोलन जारी है।

छात्रों की मिला राजनीतिक दलों का समर्थन

इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में फ़ीस वृद्धि के ख़िलाफ़ आमरण अनशन पर बैठे छात्रों को कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोक दल जैसे राजनैतिक दलों का समर्थन मिल रहा है। दो दिन पहले प्रियंका गांधी ने ट्वीट करके इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रों का समर्थन किया है। उन्होंने इलाहाबाद विवि में 400% फीस वृद्धि को भाजपा सरकार का एक और युवा विरोधी क़दम बताते हुए कहा है कि यहां यूपी-बिहार के साधारण परिवारों के बच्चे पढ़ने आते हैं। फीस वृद्धि कर सरकार इन युवाओं से शिक्षा का एक बड़ा जरिया छीन लेगी। साथ ही उन्होंने सरकार से छात्र-छात्राओं की बात सुनकर फीस वृद्धि का फैसला तुरंत वापस लेने का सुझाव दिया है।

वहीं पूर्व मुख्यमंत्री व सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी ट्वीट करके छात्रों का समर्थन किया है। उन्होंने छात्रसंघ को लोकतंत्र की प्राइमरी बताते हुये छात्रसंघ की बहाली व फीस वृद्धि वापस लेने की मांग की है। उन्होंने कहा है कि इलाहाबाद विवि में छात्रसंघ बहाली की मांग हेतु 783 दिनों से क्रमिक अनशन व 400% फीस वृद्धि के विरोध में 7 दिनों से बैठे छात्र आमरण अनशन के समर्थन में विवि परिसर में निकाला गया ‘छात्र जन आक्रोश मार्च’ भाजपा सरकार से नाउम्मीदगी का प्रतीक है।

वहीं रालोद अध्यक्ष जयंत सिंह ने इलाहाबाद विवि में अप्रत्याशित फीस वृद्धि का विरोध कर रहे छात्रों के समर्थन में कहा है कि फीस वृद्धि से ग़रीब ग्रामीण परिवारों पर भार बढ़ेगा। इसके साथ ही उन्होंने छात्रों द्वारा छात्रसंघ बहाली की माँग को भी व्यावहारिक बताया है। उन्होंने कहा है कि छात्र लोकतंत्र में युवा वोटर हैं और विचारक भी। छात्रों को समस्याओं के निस्तारण के लिए प्रतिनिधि के चुनाव का हक़ मिलना चाहिए!

NSUI उत्तर प्रदेश के स्टेट प्रेसिडेंट अखिलेश यादव ने भी ट्वीट करके छात्रों का समर्थन किया है। 

ब्रिटिश उच्चायोग में कार्यरत अधिकारियों की यात्रा व छात्रों से बातचीत ने आंदोलन को ‘तेज’ किया

इलाहाबाद यूनिवर्सिटी ने केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय को लिखे एक पत्र में आरोप लगाया है कि ब्रिटिश उच्चायोग में कार्यरत अधिकारियों की यात्रा और उनकी छात्रों के साथ बातचीत ने परिसर में चल रहे आंदोलन को ‘तेज’ कर दिया है। प्रशासन ने अपने पत्र में आरोप लगाया है कि उच्चायोग के इन अधिकारियों ने न तो विश्वविद्यालय के किसी अधिकारी से संपर्क किया और न ही उन्हें परिसर के अपने दौरे के बारे में सूचित किया और न ही कोई अनुमति मांगी।

8 सितंबर गुरुवार को इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रशासन ने एक बयान जारी कर कहा कि मीडिया रिपोर्ट से विश्वविद्यालय प्रशासन को पता चला कि ब्रिटिश उच्चायोग के दो अधिकारी यूनिवर्सिटी में आए थे और कुछ तथाकथित छात्र नेताओं के माध्यम से विभिन्न विभागों में छात्रों से संपर्क किया और कुछ विवादास्पद विषयों पर छात्रों के बीच भड़काऊ बयान दिया, जिसमें छात्र संघ का मुद्दा भी शामिल है। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी की जनसंपर्क अधिकारी जया कपूर ने आरोप लगाते हुए कहा है कि यह एक दुखद घटना है क्योंकि विश्वविद्यालय के कुछ निश्चित प्रोटोकॉल हैं, जिनका परिसर का दौरा करते समय पालन किया जाना चाहिए था।

उन्होंने कहा कि हमें समाचार पत्रों के माध्यम से पता चला कि उन्होंने स्टूडेंट्स से छात्र संघ जैसे कुछ संवेदनशील मुद्दों पर बात की। उनके दौरे के बाद फीस वृद्धि के ख़िलाफ़ विरोध तेज हो गया और इसने हमारा ध्यान खींचा। वे (ब्रिटिश राजनयिक) विश्वविद्यालय के अधिकारियों से भी नहीं मिले। केवल छात्रों के अस्थिर समूहों से मिलना ही उन्हें संदेह के घेरे में रखता है। इसलिए हमने घटना पर चिंता जताते हुए केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय को पत्र लिखा है। उन्होंने आगे कहा कि विश्वविद्यालय प्रशासन इन सभी गतिविधियों को बहुत गंभीरता से लेकर इसके विषय में जिला प्रशासन से संपर्क में है और जो भी लोग दोषी पाए जाएंगे, उनके ख़िलाफ़ उचित कार्रवाई की जाएगी।

गौरतलब है कि 29 अगस्त को नई दिल्ली में ब्रिटिश उच्चायोग में राजनीतिक और द्विपक्षीय मामलों के प्रमुख रिचर्ड बार्लो और वरिष्ठ राजनीतिक आर्थिक सलाहकार भावना विज ने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी परिसर का दौरा किया था। प्रयागराज की तीन दिवसीय यात्रा के दौरान ब्रिटिश उच्चायोग के इन अधिकारियों ने ‘युवा भारतीयों के लिए यूके सरकार द्वारा वित्त पोषित कार्यक्रम के एक पूर्व छात्र’ के साथ अनौपचारिक बातचीत की और यूपी सरकार और जिला प्रशासन के अधिकारियों से मुलाकात की थी।

कहां कितनी फ़ीस वृद्धि हुई है

एकेडमिक एवं कार्य परिषद की बैठक से मंजूरी मिलने के बाद फीस वृद्धि लागू कर दिया गया है। सत्र 2022-23 से दाख़िला लेना वाले छात्रों को अब चार सौ गुना अधिक ट्यूशन फ़ीस देना पड़ेगा। ट्यूशन फ़ीस के अलावा इलाहाबाद विश्वविद्यालय में बैक पेपर, ट्रांसक्रिप्ट, डिग्री जुर्माना, डुप्लीकेट, मार्कशीट निकलवाना आदि बहुत महंगा हो गया है। अतः अब छात्रों को ज़्यादा जेब ढीला करना पड़ेगा। परास्नातक में बैक पेपर शुल्क 250 रुपये से बढ़ाकार 500 रुपये कर दिया गया है।

इसी तरह भूतपूर्व स्नातक, परास्नातक विद्यार्थियों के लिए बैक पेपर परीक्षा का शुल्क 400 रुपये से बढ़ाकर एक हजार रुपये कर दिया गया है। उत्तर पुस्तिका देखने के लिये अब 100 रुपये के बजाय 200 रुपये देने पड़ेंगे। स्नातक में बैक पेपर परीक्षा के लिए 200 रुपये की जगह 500 रुपये देना होगा। इसी तरह डिग्री जुर्माना में पांच गुना वृद्धि करते हुए 100 रुपये से बढ़ाकर 500 रुपये कर दिया गया है। प्रति सेट ट्रांसक्रिप्ट फीस में चार गुना बढ़ोत्तरी के साथ 2000 रुपये कर दिया गया है, पहले यह 500 रुपये थी। वहीं पीएचडी परीक्षा फीस 2 हजार रुपये से बढ़ाकर 10 हजार रुपये कर दी गई है।

अनुदान में कटौती फीस वृद्धि की मुख्य वजह

राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 सत्र 2023-24 से लागू हो गया है। ऐसे में केंद्र सरकार द्वारा विश्वविद्यालय को दिये जा रहे अनुदान में कटौती के चलते यूनिवर्सिटी प्रशासन को फीस वृद्धि के लिये बाध्य होना पड़ा है।

इलाहाबाद यूनिवर्सिटी की पीआरओ ने स्पष्ट तौर पर कहा कि केंद्र सरकार विश्वविद्यालय पर आय पैदा करने के अपने स्रोत बनाने के लिए भी दबाव डाल रही है और इसके द्वारा प्रदान किए जा रहे अनुदान में कटौती कर रही है। 8 जुलाई 2022 को प्रकाशित टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित एक रिपोर्ट में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी की पीआरओ जया कपूर ने कहा है कि यदि यूजीसी अनुदान देते रहता तो जाहिर तौर पर संस्था को चलाने और विकसित करने के लिए लागत को पूरा करने के लिए फ़ीस वृद्धि की ज़रूरत न पड़ती। लेकिन मुद्रा स्फीति की दर को देखते हुए अनुदान मुश्किल से विश्वविद्यालय के दिन प्रतिदिन की ज़रूरतों को पूरा कर पा रहा है। पिछले कुछ वर्षों से विश्वविद्यालय को गंभीर आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा। विश्वविद्यालय की आवश्यकताओं को 100 साल पहले निर्धारित शुल्क से पूरा नहीं किया जा सकता।

वहीं इलाहाबाद प्रशासन ने फीस वृद्धि को ‘समय की आवश्यकता’ और ‘भविष्य की योजनाओं के लिये ज़रूरी क़दम’ बताया है। जबकि कुलपति संगीता श्रीवास्तव ने कहा है कि यह क़दम छात्रों के कल्याण को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए इस उम्मीद के साथ लिया गया है कि छात्र खुद नौकरी देने वाले बनेंगे और न केवल नौकरी तलाशने वाले और विश्वविद्यालय दूर के प्रमुख संस्थानों में अपनी जगह लेने जा रहा है।

कार्य परिषद की बैठक में लगी मुहर

इलाहाबाद यूनिवर्सिटी की कुलपति प्रो. संगीता श्रीवास्तव की अध्यक्षता में 31 अगस्त को हुई कार्य परिषद की बैठक में सबसे पहले तो चार गुना फीस वृद्धि पर मुहर लगी। इसके साथ ही यूनिवर्सिटी में काम करने वाले विभिन्न श्रेणियों के विभिन्न कर्मचारियों के डेली वेजेस को बढ़ाने की मंजूरी भी दी गई। वर्किंग काउंसिल ने बैठक में फैसला लिया कि हिंदू हॉस्टल के कमरे साइंस फैकल्टी के अंडर ग्रेजुएट स्टूडेंट्स और जेके इंस्टीट्यूट के बी.टेक स्टूडेंट्स को एलॉट किए जाएंगे।

मीटिंग में ये भी तय किया गया कि कुल 184 कमरों में से 100 कमरे जेके इंस्टीट्यूट के छात्रों को दिए जाएंगे। वहीं 84 कमरे बीएससी स्टूडेंट्स को दिए जाएंगे। मीडिया को बताया गया है कि हिंदू हॉस्टल का बिजली का बिल 2.5 करोड़ रुपए बकाया है जो जेके इंस्टीट्यूट द्वारा भरा जाएगा। वाइस चांसलर की मदद से ये हॉस्टल मदन मोहन मालवीय यूनिवर्सिटी कॉलेज मैनेजमेंट कमेटी से लीज पर लिया गया था। एक रुपए प्रति साल के हिसाब से ये हॉस्टल 29 साल 11 महीने से लीज पर है।

इससे पहले जून महीने में इलाहाबाद विश्विद्यालय ने फ़ीस वृद्धि के प्रस्ताव को वित्त समिति और एकेडमिक काउंसिल ने मंजूरी दी थी। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने 1912 से 12 रुपये की अपरिवर्तित ट्यूशन फीस वसूलने के बाद अगले शैक्षणिक सत्र (2022-23) से परिसर में विभिन्न स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों के लिए वार्षिक शुल्क बढ़ाने का फैसला किया था।

इलाहाबाद यूनिवर्सिटी की जनसंपर्क अधिकारी जया कपूर के मुताबिक बढ़ा हुआ शुल्क बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) सहित देश के अन्य केंद्रीय विश्वविद्यालयों के बराबर होगा और केवल अगले शैक्षणिक सत्र से छात्रों के लिए लागू होगा और इस प्रकार, वर्तमान छात्र, में नामांकित इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में किसी भी पाठ्यक्रम को बढ़ी हुई फीस का भुगतान नहीं करना होगा।

इससे पहले जून 2022 में मीडिया ब्रीफिंग के दौरान जया कपूर ने एकेडमिक काउंसिल के हवाले से एक तानाशाही फ़रमान जारी करते हुए कहा था कि एकेडमिक काउंसिल ने यह भी महसूस किया कि ऐसे कई मामले हैं जिनमें सोशल मीडिया और मीडिया पर संस्थान के ख़िलाफ़ अपमानजनक पोस्ट करने के बाद विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठा खराब हुई है। यदि कोई छात्र लगातार इन टिप्पणियों को पोस्ट करता पाया जाता है, तो संबंधित छात्र के ख़िलाफ़ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी। यदि कोई फैकल्टी सदस्य इस तरह की टिप्पणी करता पाया गया तो कार्यकारिणी परिषद के अनुमोदन से कड़ी कार्रवाई की जाएगी, यह एकैडमिक काउंसिल का निर्णय था।

(प्रयागराज से जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)

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